जब भी कभी किसी को प्यार होता है
तब हमेशा ही कोई अनदेखा, अंजाना
सा चेहरा बिन बांधे कोई डोर ऐसे खींचता है अपनी ओर
जैसे जन्मो जन्मांतर का रिश्ता हो उससे
जो अनेदेखा अंजाना होते हुए भी
बहुत ही अपना सा नज़र आता है।
जिसके जीवन मे आने के बाद
खेतों में लहराई सरसों कल परसों में बीते बरसों
सी हो जाती है ज़िंदगी चारों और बस खुशबू ही खुशबू
हुआ करती है मन महका-महका सा रहा करता है
बेवजह होंटों पर मुस्कान खिली रहती है
चेहरे और स्वभाव पर एक अनोखी आभा दमकती है।
हर मौसम खुश गवार सा नज़र आता है
प्रकृति के कण-कण से प्यार हो जाता है
प्रकर्ति ही नहीं बेजान आईने से भी प्यार हो जाता है
खुद को ही बार-बार देख मन बाग-बाग हो जाता है
आखिर ऐसा भी क्या छुपता होता है
उस अनदेखे अंजाने से चहरे में,
जिसके गुम हो जाने के बाद....
ज़िंदगी रेगिस्तान सी नज़र आती है
इतनी मायूस हो जाती है ज़िंदगी कि
फिर जीने की कोई चाह ही बाकी नहीं रह जाती है
जीने के लिए खुशियों में भी ग़म दिखाई देता है
मंदिर में भी भगवान नहीं पत्थर दिखाई देता है
कल तक जो हवा का एक झोंका किसी के गालों को छूकर
अपने नसीब पर इतराया करता था।
आज वही हवा थेपडा बन कर थप्पड़ मारती है
यह कैसी नदी बस गई है अब आँखों में
जिसे अपना सागर ही नहीं मिलता कहीं
बिखरते तो अब भी है, फूल कई किसी के चहरे पर कहीं
मगर अफसोस की उन फूलों की जगह अब मोतीयों ने ले ली है।
ऐसा क्यूँ होता है बार-बार क्या इसको ही कहते है प्यार ?
जिसके बारे में कहा जाता है कि
"हर इंसान को अपनी ज़िंदगी में
एक बार प्यार ज़रूर करना चाहिए
क्यूंकि प्यार इंसान को बहुत अच्छा बना देता है।"