Wednesday, 26 September 2012

यादों की इमारत

यूं तो आज तुमसे मिले बिछड़े कई साल होने को आए 
मगर आज भी ऐसा लगता है 
जैसे आज की ही बात हो 
यूं होने को तो बात तुमसे आज भी होती है, रोज़ 
जब कभी भी मैं तन्हा होती हूँ 
उस वक्त तुमसे बात क्या 
मैं तो तुम्हें देख भी सकती हूँ और छू भी सकती हूँ 
क्यूंकि तुम कोई मेरा गुज़रा हुआ कल नहीं हो  
बल्कि मेरे अंदर का एहसास हो
जिसे सिर्फ मैं ही महसूस कर सकती हूँ
क्यूंकि एहसास कभी मरा नहीं करते  
लेकिन फिर भी नजाने क्यूँ
तुम्हारे इतने करीब होते हुए भी 
मेरे मन के अंदर तुमसे कहने वाली बहुत सी बातें है 
जो परत-दर-परत मेरी दिल की दीवारों पर हर रोज़ 
किसी रंग की भांति चढ़ती जाती हैं 
शायद यह सोचकर की कभी तो मिलोगे तुम, 
तब सब कहूँगी तुमसे 
एक-एक बात बताऊँगी तुम्हें 
और तब तुम्हें दिखाऊँगी मैं अपने दिल के वो बात रूपी सारे रंग 
जो शायद मैं तुम से मिलने की आस में, 
अपने दिल पर बस चढ़ती गयी थी  
जो आज एक दीवार पर पड़ी किसी रंग की एक पपड़ी के रूप में 
तुम्हारे सामने गिरने को आतुर है 
मगर सुनो डर भी बहुत लगता है मुझे, कहीं ऐसा न हो 
की तुम लौटकर वापस ही ना आओ, या हम अब कभी मिल ही ना पायें 
तो फिर क्या होगा, तब कहीं ऐसा न हो की  
यह दीवार पर पड़ी कई परतों से बनी एक पपड़ी दीवार समेत ही गिर जाये
और शेष रह जाये महज़ वो खाली खंडहर 
जो कभी तुम्हारी यादों से सजी एक खूबसूरत इमारत हुआ करती था ....  
   
  

Friday, 14 September 2012

चाहत


यूं तो ज़िंदगी ने बहुत कुछ दिया है हमें 
इसलिए तो आज सभी ने दिलोजान से चाहा है हमें  
यह मेरी ज़िंदगी का दिया हुआ कोई तौहफा ही है जो आज   
 तूने भी अपने गले से लगाया है हमें,
यही काफी न था शायद चाहत के लिए उनकी 
इसलिए उन्होने अपने सपनों में बसाया है हमें  
वरना यूं तो ना जाने कितनी आँखों ने ख्वाबों में देखा है हमें 
यह और बात है कि हम ही न कर सके मुहब्बत 
किसी ओर से तुझे चाहने के बाद
वरना इस मुहब्बत में अपने कदमो तले तो बहुतों को झुकया है हमने 
हैं नतीजा शायद इस बात का यही के 
उनके पहलू में है आज प्यार तो क्या, हमारे भी दामन में आज आग सही
कि अब तो बस गुज़र रही है ज़िंदगी यूं ही 
ए-खुदा की चाहतों का हुजूम होते हुए भी अब इस दिल को 
किसी की कोई,ख्वाइश ही नहीं 
क्यूंकि बस एक तेरी याद ही काफी है 
हमें एहसास ए मुहब्बत याद दिलाने के लिए कि जिसमें
तेरे होते हुए भी बस एक तेरी चाहत ही नहीं 
अगर कुछ है तो वो   
सौ दर्द हैं....सौ राहतें....सब मिला....हम नशीन..एक तू ही नहीं ..... 

Monday, 3 September 2012

प्यार का एक गीत...


सागर किनारे साहिल की रेत पर 
न जाने कितनी बार लिखा मैंने तुम्हारा नाम 
मगर हर बार उसे कोई न कोई सगार की लहर आकर मिटा गयी 
मगर मैंने हार ना मानी कभी, मैं हर बार लिखती गयी और वो हर बार मिटाती गयी 
उसी तरह तुमने भी शायद मेरे नाम को 
अपने ज़ेहन से मिटाने की एक नाकाम कोशिश की है 
मगर यह कोई उस साहिल की रेत पर लिखे नाम की  तरह  
 लिखा गया प्यार का पैगाम नहीं कि   
जिसे समंदर की कोई भी लेहर ,जब चाहे आकर अपने आग़ोश में लेले 
बल्कि यह तो तुम्हारे दिल के कागज़ पर वक्त की कलम से लिखा गया
 मेरी मुहब्बत का पैगाम है जिसे इस ज़माने के सागर की 
कोई भी बगावत रूपी लेहर आकर 
यूं हीं नहीं मिटा सकती कभी 
जानते हो क्यूँ ,क्यूंकि हर लेहर का साहिल से एक नाता होता है 
इसलिए तो लेहरें भी गए वक्त की तरह  लौट-लौट कर वापस आती है 
उसी साहिल को छूकर बार-बार महसूस करने के लिए
हाँ मैंने खुद भी महसूस किया है 
उन लहरों के आवेग में भी छिपा हुआ संगीत
तेरे मेरे प्यार का एक गीत की   
 तेरा मुझसे है, पहले का नाता कोई 
यूं हीं नहीं दिल लुभाता कोई 
जाने तू ....या ....जाने ना .....माने तू ...या ...माने ना .....