जिसकी एक करवट कभी रातों का जागरण दे जाती है
तो कभी उस ही ज़िंदगी की दूसरी करवट पर सुकून की नींद आ जाती है
और तब उस मीठी नींद से जागने का कभी मन नहीं होता
बिलकुल किसी हसीन ख़्वाब की तरह.....
तो कभी सागर की लहरों सी मुसकुराती है ज़िंदगी
किसी बच्चे के जन्म की तरह
किसी बंजर ज़मीन पर फूटे किसी बीज की तरह
एक लंबे अंधकार के बाद मिली किसी रोशनी की तरह
किसी थके हुए मुसाफिर को मिली ऊर्जा की तरह.....
जैसे किसी समंदर की कोई ठंडी सी लहर
तपती हुई धूप में जल रहे किसी मुसाफिर को
अचानक से आकर ठंडक दे जाती है
बेटियाँ भी तो वही ठंडी सी लहर की तरह ही होती है। है ना !!!
जो संतान पाने के ताप में जल रहे अपने अभिभावकों को
मातृ-पितृ के अनुपम रिश्ते से भिगो देती है
यानि कहीं न कहीं प्रकृति अपने आप में संतुलित और संतुष्ट नज़र आती है।
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तो हम क्यूँ उस लहर की ठंडक का आनंद नहीं ले पाते
क्यूँ उस लहर को आने से पहले ही रोक दिया जाता है,
उस सागर पर बांध बनाकर, जिस बांध के कारण कमजोर होता सागर
फिर कभी दे ही नहीं पाता कोई ठंडी लहर रूपी बेटी, न बेटे नुमा तूफान
तो फिर क्यूँ.....
हे मनुष्य तू इतना व्याकुल रहा करता है तू सदा
क्यूँ तुझे स्वीकार नहीं उस ईश्वर के आशीर्वाद रूप में मिली एक सुंदर कन्या
तुझे तो गर्वान्वित होना चाहिए
कि तेरे घर एक स्वस्थ बेटी ने जन्म लिया और तुझे पिता कहलाने का सम्मान दिया
ज़रा सोच अगर तुझे बेटा न बेटी,जो कुछ भी ना होता
जो होता भी, मगर यदि कोई विकृति साथ होती उसके,
तो क्या तब भी तू खुश होता?
नहीं क्यूंकि खुश होना तेरी फितरत में ही नहीं
तू तब भी था रोता, तू अब भी है रोता
ज़रा सोच ओ बंदे जो यह भी न होता और वो भी न होता
तो तेरा क्या होता
इसलिए जो मिला है उसे ईश्वर का आशीर्वाद और अनुकंपा मान
और आभार प्रकट कर, कि तुझे एक स्वस्थ संतान तो मिली।
वरना आज भी बहुतों को प्यास है उस एक ठंडी सी लहर के जरिये खुद को भिगो देने की ....