Friday, 25 May 2012

चाँद से बातें ....

मन में बसे समंदर के साहिल की रेत पर
जब कुछ बातें कुछ यादें दस्तक दे जाती है
तो अक्सर मन उदास हो जाता है
और क्यूँ न हो 
आखिर उदासी भी
तो कभी-कभी बहुत खूबसूरत हुआ करती हैं
रोज़ की भागदौड़ से परे
जब ज़िंदगी अक्सर तन्हाइयों में मिला करती है
एक ऐसी तन्हाई जहां 
दूर-दूर तक फैला एकांत का विस्तार 
 जहाँ एकांत का हर हिस्सा अंधकार मे डूबा हुआ हो  
इतना घना अंधेरा हो कि सब कुछ एकदम साफ नजर आने लगे 
 वो कहते है न कि,अंधेरे में चीजें साफ नजर आने लगती है 
 तब शायद हर एक इंसान को अपनी जिंदगी का 
हर लम्हा बिखरा हुआ सा लगता है
तभी तो पहचान होती है इंसान की, खुद की खुद से  
और जब अँधेरों में बातें होती है खुद से,
तो नज़र आता है खुद के साथ-साथ
ज़िंदगी का भी असली चेहरा की असल ज़िंदगी है क्या
वरना जीने को तो सभी रोज़ ही जिया करते हैं
मगर कभी किसी की खुद से मुलाक़ात नहीं होती
तब अक्सर जब रातों को चाँद
सबके सो जाने के बाद चुपके से खिड़की से झाक कर पूछता है 
सो गयी क्या ओरों की तरह तुम भी
तो मन करता है बढ़कर गले लगा लूँ उसे
और पूछूं कहाँ थे अब तक पता है
कितनी देर से राह देख रही थी
मैं तुम्हारी और एक तुम हो की बादलों से
लुका छुपी खेलने में मस्त हो ,
और हो भी क्यूँ ना तुम्हारा तो बहुत पुराना याराना है ना
इन आवारा बादलों से
तुम्हें भला मेरी उदासी और मेरे अकेले पन से क्या मतलब
कोई अकेले पन की आग में जलता है
तो जला करे तुम्हारी बला से
क्यूंकि और के लिए तुम ठंडक का पैगाम लेकर आते हो  
दिन भर की थकन से चूर 
लोगों को चैन की नींद जो सुलाते हो तुम,
मगर मेरा क्या, मेरे लिए तो तुम्हारा आना 
यानि 
मेरी यादों की बारात मेरे बीते हुए दिन का पूरा लेखा जोखा
फिर चाहे वो अच्छा रहा हो या बुरा
क्यूंकि एक तुम ही तो जिसके साथ में बांटती हूँ
अपनी ज़िंदगी का हर एक अनुभव हर एक ख़्वाब
और एक तुम हो, कि उसको सुनेने के लिए भाव खाते हो
रहरह कर इंतज़ार करवाते हो
और जब इंतेहा होने लगती है मेरे इंतज़ार की
और मेरी आंखे किसी बहुत देर तलक
जल रही मोमबत्ती की तरह बुझने ही वाली होती है  
कि तुम अचानक से आकर पूछ लेते हो 
सो गयी क्या 
और में चौंक कर उठ जाती हूँ 
कि कहीं तुम मुझे सोता समझ कर 
मुझसे मिले बिना ही ना लौट जाओ 
क्यूंकि मुझे दुनिया में सारे पल गवा देना मंजूर है 
लेकिन तुम्हारे साथ बिताए वो चंद लम्हे खो देना 
मुझे ज़रा भी मंजूर नहीं 
जिसमें तुम अपनी गौद में मेरा सर रखकर 
अपनी ठंडी चाँदनी से मेरा सर सहलाते हो  
मेरी सारी बातों को पूरी तन्मयता से बिना किसी शिकायत के सुनते हो, 
कि जब तक मैं अपनी बातों से तुम्हें भी बौर कर-करके ऊंगा सा न करदू 
तुम बस चुप-चाप सुना करते हो मुझे 
कभी-कभी तो मेरी खामोशी को भी सुन लिया करते हो तुम 
तुम्हारी एक यही बात तो  है, जो मुझे अंदर से छु जाती है 
 कि तुम कभी मुझसे बोर नहीं होते 
न ही कभी मेरी बोरिंग और उबाऊ बातों को सुनकर  
तुम्हें नींद आती है  
कम से कम तब तक तो नहीं 
जब तक मैं खुद नहीं सो जाती 
पर तुमसे दूर जाऊँ भी तो कैसे तुम तो वो एहसास हो 
मेरे प्यार का, मेरे इंतज़ार का, मेरी यादों का, 
जिसके आने का कोई पल नहीं 
कोई क्रम नहीं .....