कुछ भी तो नहीं बदला प्रिय
हर रोज़ सूरज यूं ही निकलता है
शाम यूं ही ढलती है
हवाएँ भी रोज़ इसी तरह तो चलती है, जैसे अभी चल रही है
पक्षियों का करलव भी नहीं बदला
हाँ यह बात ओर है कि अब उस गुन गुनाहट में मुझे वह मधुर सुर सुनाई
नहीं देते
तुम्हारे
घर के बाहर का भी तो यही नज़ारा होगा ना
बस
इस नज़ारे को देखने वाली
इसे महसूस करने वाली तुम्हारी वो निश्चल नज़र नहीं है
सच
तुम्हारी कमी बहुत खल रही है, न सिर्फ मुझे बल्कि हर उस व्यक्ति को
जिसने
तुमसे प्यार किया, तुम्हें चाहा दिलो जान से
लेकिन
दुनिया फिर भी चल रही है
शायद इसी को कहते हैं
“शो
मस्ट गो ओन”
कहीं
कोई परिवर्तन, कहीं कोई बदलाव नहीं आया तुम्हारे चले जाने से
फिर
तुम क्यूँ चले गए प्रिय, आखिर क्यों....?
तुम्हारी
याद हर पल आती है
दिल
को तड़पती, आँखों को रुलाती है, रातों को जगाती है
केवल
तुम्हारी ही तस्वीर, इन डब डबाई आँखों में जगमगाती है
पल
पल यह दिल कहता है, काश समय को मोड़कर वापस ला सकते हम
तो
आज न तुम तन्हा होते न हम ....
अब तो बस एक ही दुआ है जहां भी रहो खुश रहना प्रिय ईश्वर तुम्हें वहाँ शांति और सुकून प्रदान करे