देखा है कभी खुद के नज़रिये से आसमान को
देखने में एक सुंदर नारी के काले दुपट्टे में टंके
सितारों सी रात जिसके चेहरे पर लगी है चंद्र बिंदी
जिसने छुपा रखा है अपना चेहरा
उस सितारे जड़े दुपट्टे से
ताकि कोई भूल से भी देखना ले उस रात का दर्द
जो सागर की तरह गहरा है देखने में ऊपर से शांत
मगर अंदर से हलचल मचाते होंगे उसके भी जज़्बात
क्यूंकि इस इंसानी बेहरहम दुनिया में
मतलब परस्तों कि कमी जो नहीं है, कहीं
जहां एक इंसान दूसरे इंसान की मजबूरी और लाचारी
का फायदा उठाने से नहीं चुकता
वो लालची और खुदगर्ज़ इंसान भला क्या समझेगा
उस सजी हुई रात के पीछे बिखरे सन्नाटे और दर्द कि पराकाष्ठा को
क्यूँकि दर्द को समझने के लिए दिल में एहसासों और जज़्बातों
कि जरूरत होती है, जो अब ढूँढने से भी कहाँ मिलती है
अगर ना होता ऐसा तो टूटते हुए सितारे से भी
दुआ ना मांगते लोग......
पल्लवी