Friday, 27 January 2012

दुआ ना मांगते लोग ....

देखा है कभी खुद के नज़रिये से आसमान को 
देखने में एक सुंदर नारी के काले दुपट्टे में टंके  
सितारों सी रात जिसके चेहरे पर लगी है चंद्र बिंदी 
जिसने छुपा रखा है अपना चेहरा 
उस सितारे जड़े दुपट्टे से
ताकि कोई भूल से भी देखना ले उस रात का दर्द 
जो सागर की तरह गहरा है देखने में ऊपर से शांत 
मगर अंदर से हलचल मचाते होंगे उसके भी जज़्बात 
क्यूंकि इस इंसानी बेहरहम दुनिया में 
मतलब परस्तों कि कमी जो नहीं है, कहीं 
जहां एक इंसान दूसरे इंसान की मजबूरी और लाचारी 
का फायदा उठाने से नहीं चुकता 
वो लालची और खुदगर्ज़ इंसान भला क्या समझेगा 
उस सजी हुई रात के पीछे बिखरे सन्नाटे और दर्द कि पराकाष्ठा को  
क्यूँकि दर्द को समझने के लिए दिल में एहसासों और जज़्बातों
कि जरूरत होती है, जो अब ढूँढने से भी कहाँ मिलती है 
अगर ना होता ऐसा तो टूटते हुए सितारे से भी 
दुआ ना मांगते लोग......
पल्लवी 

Wednesday, 25 January 2012

अस्तित्व ज़िंदगी का ....


ज़िंदगी एक रूप अनेक 
बचपन के रंगों से सजी झरने सी ज़िंदगी 
जवानी के रंग लिए नदिया सी मदमाती ज़िंदगी
तो कभी सागर की तरह ठेहराव लिए शांत सी ज़िंदगी
जब कोशिश की समझने की यह फलसफा ज़िंदगी का तो पाया की  
अस्तित्व कभी ख़त्म नहीं होता ज़िंदगी का 
लेकिन जिस तरह पानी एक झील और सागर के रूप में 
ठहरा होते भी बहता दिखाई देता है
जिससे पता चलता है ज़िंदा है अभी अस्तित्व 
पानी के बहाव का, वैसे ही ज़िंदगी कभी मिटती नहीं    
चाहे हो पौधों का जीवन जो बीज या जड़ों के रूप रूप में 
भी ज़िंदा रहा करता है बरसों जैसे 
माता-पिता का अस्तित्व रहता है 
सदा अपने बच्चों के संस्कारों में 
और प्यार का अस्तित्व 
सदा रहा करता है स्म्रतियों में कहीं 
जैसे किसी इत्र की महक जो 
ज़ेहन में बस जाये एक बार
तो फिर कभी भुलाई नहीं जाती
जैसे रात का अस्तित्व जिंदा रहा करता है 
दिन की रोशनी में कहीं
रात के अंधेर को मिटाने के लिए  
नींदों को रोशना किया करते है ख़ाब
देखो ना बिना रोशनी कुछ भी तो नहीं  
कौन कहता है जाने वाले चले जाते है 
और सिर्फ यादें रह जाती है 
कोई कहीं नहीं जाता सब हमारे आस पास ही 
होते हैं जिन्हें देख भले ही न पाये हम 
मगर उन्हें हर पल ज़रूर महसूस किया जा सकता है उनके अंशों में कहीं .....      
पल्लवी 

Saturday, 21 January 2012

जीवन रूपी अग्नि ...


गीली मिट्टी के बर्तन सी ज़िंदगी
जैसे हो हमारा बचपन
जिसे कुम्हार अपने हाथों से 
सहेज कर बनाता है एक घड़ा और एक सुराही  
दोनों को ही डाल देता है आग मे
तपाकर पक्का करने के लिए 
बिना किसी भेद के क्यूंकि 
उसे अपने दोनों ही बर्तन प्यारे है
वह तो दोनों को ही 
आग में तपा कर पक्का करना चाहता है   
चाहे वो सुराही हो या घड़ा 
और ना ही आग ही भेद करती है दोनों को 
पक्का कर मजबूती प्रदान करने में 
तो फिर क्यूँ हम भेद करने 
लगते है जीवन रूपी आग में 
एक स्त्री को ज्यादा पक्का करने के लिए
क्या एक पुरुष को भी
उस ही जीवन अग्नि में तपकर 
उतना ही पक्का होना ज़रूरी नहीं 
जितना की एक स्त्री के लिए है
तो फिर क्यूँ भूल जाते हैं हम 
जब वही आग जरूरत से ज़्यादा हो जाये 
तो जला भी सकती है उन्हीं बर्तनो को
मगर एक स्त्री को जीवन रूपी आग में
एक बेटी के रूप में, तो कभी एक बहु के रूप में  
छोड़कर जैसे भूल ही जाते हैं हम
और छोड़ देते हैं उसे सदा के लिए 
उस आग में जलने को 
जिसमें वह चुप रहकर भी जलती है 
और यदि बोलना चाहे कुछ 
तो जला दी जाती
क्यूँ नारी जीवन बचपन से लेकर 
अतिम सांस तक एक अग्नि परीक्षा 
ही बना रहता है और जब तक 
एहसास हो हमें उस तपिश का 
तब तक शेष रह जाता है
केवल धुआँ और राख़
कभी भावनाओं के रूप मे,
तो कभी मिटे हुए अस्तित्व को याद करने के लिए ....      

Thursday, 19 January 2012

वक्त साथ दे तो कुछ बात बने ....

 बहुत देर तक चाँद को देखा है कभी
ऐसा लगता है जैसे एक सफ़ेद
चीनी की प्लेट हो और उस 
सफ़ेद चाँद की प्लेट 
पर ऊपर खड़े 
होकर ऊपर से   
जब देखा मैंनेधरती को 
तो मुझे ऐसा लगा वो चाँद 
जिस पर हम खड़े है
वह हमारा वर्तमान है 
और वो जो दूर कहीं नीला 
सा एक बिन्दु नज़र आरहा है 
वह है हमारा अपना अतीत 
बहुत ध्यान से नज़रें गाड़ा कर 
देखा तो ऐसा लगा 
जैसे मन खो गया है 
उस अतीत की गहराइयों में कहीं 
जब उस अतीत की ऊंची नीची पहाड़ियों 
नदियों और झरनो की तरह 
पानी बन बह रहे जज़्बातों को देखा 
तो उस पानी में 
प्यार के सच्चे मोती के 
कुछ कण से मिले
जो समय के बहाव के कारण 
शायद मेरे हाथों से 
फिसल कर वहीं गिर गए थे
मगर शायद हमारी भावनाओं के 
समंदर ने उन प्यार के कणों की रक्षा की
तभी वक्त का दरिया भी उन्हे 
अपने साथ बहाकर ना लेजा सका
शायद इसलिए
आज इतने बरसों बाद भी मुझे मिले 
मेरे सच्चे प्यार के कुछ बिखरे हुए से कण
जिन्हें देखकर एक बार फिर
मेरे दिल से आवाज आई की 
प्यार तब भी था, प्यार अब अभी है
क्यूंकि यह वक्त ही है 
जिसने हमें जुदा किया था 
और आज भी यह वक्त ही है 
जिसने यह एहसास जगाया 
प्यार कभी नहीं मिटता 
और आज भी यह वक्त ही है     
जो हमें फिर मिलाएगा  
तो अब 
अगर वक्त साथ दे तो कुछ बात बने....

Monday, 16 January 2012

किताब ज़िंदगी की ...


ज़िंदगी की किताब में 
एहसासों के पन्ने होते है  
जिन पन्नो पर कभी लिखी 
होती है मन की अभिव्यक्ति
तो कभी कुछ
कहे अनकहे से जज़्बात 
खुद से ही करी हुई हजारों बातें 
सागर से गहरे एहसास 
जिनसे समय के साथ बने 
न जाने कितने अनुभव लिखे होते हैं  
कभी कुछ अच्छे, तो कुछ बुरे भी 
और हर एक पन्ने पर लगा होता है एक बूक मार्क 
कभी एक मुस्कान का, तो कभी आँसुओं का  
जिनसे निर्माण हुआ कुछ भूली बिसरी यादों का 
इरादों का, कुछ सपनों का,कुछ अपनों का  
हर एक पन्ने पर बुना हुआ एक सपना 
जो था कभी अपना 
मगर अब देखो तो लगता है 
जैसे किसी मकड़ी का टूटा हुआ सा जाल 
जिसके टूट जाने पर भी उसमें जकड़ी हुई है एक मकड़ी 
क्यूंकि सपनों का मोह कभी छूटता ही नहीं 
और इसे पहले कोई छुड़ा सके अपना मोह 
अपने ही किसी सपने से 
पलट जाता है ज़िंदगी की किताब का एक और पन्ना 
फिर कोई नई उम्मीद और नाय सपना लिए 
कोशिश करने लगते है हम
हर एक नए पन्ने पर नए सिरे से 
ज़िंदगी की किताब का एक और नया पन्ना
लिखने के लिए 
मगर कितनी अजीब किताब है यह ज़िंदगी 
जिसे केवल खुद ही पढ़ा जा सकता है 
यदि दो भी किसी को पढ़ने के लिए यह किताब   
तो जाने क्यूँ उस पढ़ने वाले को हर एक पन्ना 
जैसे कोरा कागज़ ही नज़र आता है 
और हम यह आस लिए तांकते
रह जाते की शायद
यही हो वो जो समझ सके हमें
हमारी इस किताब के जरिये ही सही
मगर इसी नाकाम कोशिश में
एक दिन भर जाती है यह पूरी किताब
ज़िंदगी की ......
पल्लवी   

Friday, 13 January 2012

क्या तुम्हें याद है ...


दिल जब भी उदास होता है  
क्यूँ अक्सर यही होता है 
पीछे वजह होती है तेरे भूल जाने की
 क्यूँ तुझे कुछ नहीं याद होता है
क्यूँ हर चीज़ याद रह जाती है मुझे
जिस-जिस में तू शामिल होता है, 
चाहे हो वो पहले प्यार की पहली मुलाक़ात ,
या हो इज़हारे मोहोब्बत का दिन ,
जब कुछ इज़हार हुआ था 
शायद हमको प्यार हुआ था 
और जब विवाह के पवित्र बंधन में बंध 
दो से एक हुए थे हम,
यहाँ तक कि जब वही विवाह का बंधन,
बंधन बना गया था हमारे लिए ,
तब से लेकर आज तक 
हर छोटी बड़ी बात, वो प्यारे से एहसास,
कुछ अनछुए जज़्बात  
आज कहा खो गए वो पल 
जब दिल में मची है हलचल,
जब उठ रहीं हैं मन के समंदर में 
कुछ भूली बिसरी यादों की लहरें 
जो दे रही हैं दस्तक 
मेरी ज़िंदगी में ठहरे हुए तूफान को 
,  और कह रहीं है तुम से कि बस 
एक बार खोल दो तुम अपने मन के द्वार को 
 और साथ ले जाने दो मुझे 
तुम्हारे अंदर की सारी कड़वाहट,
मगर तुम हो जो खोलना ही नहीं चाहते
 अब अपने मन के वह द्वार 
शायद इसलिए     
 मैं जज़्ब कर लेती हूँ
उन लहरों का खरा पानी अपनी आँखों में 
यह आस लिए कि शायद 
 मेरी उन नाम आँखों को देखर फिर याद आ जाये तुम्हें 
वो नाम, वो चहरा, वो बातें, वो मुलाकातें   
जिसे देखकर टूट जाये शायद 
तुम्हारे मन के कमरे की वो दीवार
और बेह जाये वो भावनाओं का 
समंदर फिर एक बार
सिर्फ मेरे लिए ..... 

Thursday, 12 January 2012

ज़िंदगी के कुछ (सुहाने पल)...



यूँ तो ज़िंदगी में हर मोड़ पर 
सुख दुःख आते जाते ही रहते है 
जैसे सर्दियों का सर्द मौसम अक्सर 
लोगों को उदास बना जाता है
क्योंकि घर के बाहर कोई ना नज़र आता है 
मगर यूँ उदास और निराश होकर जीये 
तो क्या जीये, मज़ा तो तब आता है
जब वही कोहरे में छुपा सूरज 
निखर के बाहर आता है 
कभी जब खुद को गर्म कपड़ों में लपेटे 
ठंड में कपन्ती सुकुड़ती  
निकलती हूँ घर के बाहर 
इस उम्मीन्द के साथ   
सर्दी में सर्द पड़ी अपनी ज़िंदगी 
को तुम्हारे प्यार से गरमा सकूँ 
तो सर्द सुबहा में भी धुंध की ओट में 
से चुपके-चुपके मुझे देखकर 
मुसकुराता हुआ सूरज ऐसा नज़र आता है
जैसे तुम्हारा मुसकुराता हुआ चहरा 
कर रहा हो मेरा स्वागत 
एक नई ताज़गी से भरी सुबह के लिए
जो भर देता है मुझ में 
 एक नया जोश और आत्मविश्वास  
हर दिन ज़िंदगी से लड़ने के लिए 
जिसे देख, भर जाती हूँ मैं नई स्फुर्ति से 
सारा दिन तुम बिन बिताने के लिए 
और फिर जब रोज़ की 
भागदौड़ के बाद थक कर मन करता है 
कुछ पल सुकून से बिताने के लिए तो 
इंतज़ार होता है तुम्हारा ढलती 
महकती शाम के साथ 
तुम्हारा भी साथ पाने के लिए तब     
  तुम्हारा वही सूरजमुखी सा चहरा 
बन जाता है मेरे लिए रातरानी सा 
मुझे महकाने के लिए 
और सर्दी की सर्द रातों में 
मुझे मीठे महँकते सपनों से सजी
 चैन और सुकून की नींद सुलाने के लिए..
.पल्लवी

Monday, 9 January 2012

भावनायें....

लिखने जाती हूँ जब 
कोरे कागज़ पर अपने 
जज़्बात तो ऐसा लगता है 
जैसी सियाही के रूप में 
मन की अभिव्यक्ति पिघल-पिघल 
कर बह रही हो भावनाओं में 
सागर की तरह, 
जिसका हर एक शब्द  
जो दिखने में ऊपर से 
बहुत शांत दिखाई देता है 
मगर अंतस में उठ रहा है सेलाब
भावनाओं का 
कुछ कही-अनकही सी भावनायें 
कुछ जानी पहचानी सी भावनायें 
कुछ बनती बिखरती भावनायें 
जैसे साहिल पर पड़ी रेत 
से बने हुए सपनों के महल  
तब तक टीके रहते हैं 
जब तक रेत 
नम होती है वक्त रूपी सूरज 
की तपिश पाते ही 
खो जाती है सारी नमी 
और टूट कर बिखर जाता है 
उन रेत के महलों 
का अस्तित्व 
मन की भावनाओं की तरह....  

Friday, 6 January 2012

आखिर क्या है यह ज़िंदगी....


समंदर में उठती लहरें 
जैसी पानी सी बहती हुई ज़िंदगी 
ऊँची-नीची लहरों सी 
पल-पल बदलती ज़िंदगी 
समंदर के पानी की तरह 
कभी गहरी, तो कभी, उथली सी ज़िंदगी 
नदिया और सागर के मिलन
सी कभी मीठी तो कभी 
खारे पानी सी खारी ज़िंदगी,
आखिर क्या है यह ज़िंदगी
जैसे पहेली हो कोई  
जिसका शायद कोई जवाब नहीं 
अपनी होते हुए भी
  जानी-अनजानी सी ज़िंदगी
जैसे कुछ कही-अनकही सी बातें
जो आँखों-आँखों में होकर भी 
रह जाती हैं अधूरी   
कुछ ऐसे सवाल जिनका 
शायद कभी कोई जवाब ही नहीं होता, 
अगर कुछ होता है,
तो वह है केवल मौन, एक ऐसी खामोशी 
एक ऐसा सन्नाटा जो सुनाई देता है  
लहरों के शोर गुल मैं भी 
जिसमें अक्सर तलाश होती है 
 खुद के अस्तित्व की, खुद के वजूद की
जैसे मंदिर की घण्टियों के शोर 
में भी आभास होता है शांति का 
आखिर क्यूँ और कहाँ से आभास होता है 
इतने शोर गुल में भी पसरे सन्नाटे का           
जैसे दूर .......तक नज़र डालने पर भी कभी 
सागर का दूसरा किनारा नज़र नहीं आता 
 ठीक वैस ही, उस ज़िंदगी पर नज़र डालकर 
  भी देखा है कभी,
उस ज़िंदगी का भी  
कभी कोई ओर-छोर नज़र नहीं आता 
बस बहते पानी सी गुज़रती चली जाती है 
यह ज़िंदगी और हम, साहिल की रेत की तरह 
जज़्ब करते चले जाते हैं ज़िंदगी में उठती हुई लहरों के थपेड़ों को 
और नाम देदेते हैं उसे 
मेरे अनुभव ..... :)

Wednesday, 4 January 2012

यादों में भीगा मन

सागर किनारे एकांत में 
अकेले बैठकर कभी सोचा है 
मन रूपी समंदर के तट पर आती 
हुई यादों की हर लहर 
छूकर गुज़र जाती है 
मन को,
जैसे साहिल को छूकर गुज़र जाती हैं लहरें 
और लौटते हुए 
दे जाती है, एक नम एहसास, 
जिसकी नमी अंतस में उतर कर 
न सिर्फ मन को, बल्कि आँखों 
को भी कर जाती है गीला 
फेर्क सिर्फ इतना होता है कि,
यादों की लहर का पानी
कभी पानी मीठा होता है, तो कभी खारा  
दूर.... कहीं किसी सागर किनारे  
उठती हुई ऊँची लहरों का पानी 
जब हल्की बारिश सी बूंदों की तरह 
भिगो जाता है तन  
तब न सिर्फ तन, बल्कि मन भी  
तृप्त हो जाता है,
जैसे प्यासे रगिस्तान को मिला हो पानी 
जैसे वात्सल्य के लिए तरसते शिशु को मिली हो ममता 
जैसे भक्त को मिले हो भगवान 
जैसे दो प्यार करने वाले प्रीमियों को बरसों जुदाई के बाद मिला हो मिलन 
इसे ज्यादा भी और कुछ हो सकती है क्या तृप्ति कि परिभाषा .......