देखा है कभी खुद के नज़रिये से आसमान को
देखने में एक सुंदर नारी के काले दुपट्टे में टंके
सितारों सी रात जिसके चेहरे पर लगी है चंद्र बिंदी
जिसने छुपा रखा है अपना चेहरा
उस सितारे जड़े दुपट्टे से
ताकि कोई भूल से भी देखना ले उस रात का दर्द
जो सागर की तरह गहरा है देखने में ऊपर से शांत
मगर अंदर से हलचल मचाते होंगे उसके भी जज़्बात
क्यूंकि इस इंसानी बेहरहम दुनिया में
मतलब परस्तों कि कमी जो नहीं है, कहीं
जहां एक इंसान दूसरे इंसान की मजबूरी और लाचारी
का फायदा उठाने से नहीं चुकता
वो लालची और खुदगर्ज़ इंसान भला क्या समझेगा
उस सजी हुई रात के पीछे बिखरे सन्नाटे और दर्द कि पराकाष्ठा को
क्यूँकि दर्द को समझने के लिए दिल में एहसासों और जज़्बातों
कि जरूरत होती है, जो अब ढूँढने से भी कहाँ मिलती है
अगर ना होता ऐसा तो टूटते हुए सितारे से भी
दुआ ना मांगते लोग......
पल्लवी
behtareen
ReplyDeleteसुन्दर भावों से भरी सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteकुछ अलग सी पर मार्मिक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteइस इंसानी बेहरहम दुनिया मे ,
ReplyDeleteमतलब परस्तों कि कमी जो नहीं है ,
कहीं जहां एक इंसान दूसरे इंसान की मजबूरी और ,
लाचारी का फायदा उठाने से नहीं चुकता ,
आपके लेख्य में आपका दर्द और समाज की बेहरमी की तस्वीर झलक रहा है.... !!!!
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.... :):)
एक टूटते सितारे से दुआ माँगना....एक नया अर्थ दिया है आपकी कविता ने. खूबसूरत.
ReplyDeleteवाह जी सुंदर
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteक्या बात है ..बेहतरीन भाव ..
ReplyDeleteमार्मिक एवं अंतरतम को छूती रचना....
ReplyDeleteसराहनीय.....
क्या यही गणतंत्र है
पल्लवी जी,बहुत सुंदर रचना, अभिव्यक्ति अच्छी लगी.,
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 02-02 -20 12 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज...गम भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब .