Friday, 30 December 2011

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....

वक्त का पहिया न रुका है कभी 
न रुकेगा कभी किसी के लिए 
हर साल एक नया साल आता है 
तो एक पुराना साल जाता है 
यह आना जाना 
बस यूं हीं चलता-चला जाता है
ज़िंदगी का भी तो कुछ यही 
सिलसिला है 
जो न रुकती है कभी, किसी के लिए 
हर साल एक नई ज़िंदगी जन्म लेती है 
तो एक पूरानी ज़िंदगी देह त्याग देती है 
और जीवन का यह सिलसिला भी
यूं चलता रहता है
एक कभी ख़त्म न होने वाला सिलसिला 
जैसे सागर कि बाहों में मौजों का सिलसिला 
ठीक इसी तरह 
आप सभी के जीवन में भी यह 
 सागर कि लहरों रूपी खुशियों का 
सिलसिला कभी न रुके, कभी न थमे 
बस इस ही मंगल कामना के साथ 
आप सभी को नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें  
  

Wednesday, 28 December 2011

पहले प्यार का एहसास


पहले प्यार का वो पहला 
सागर नुमा 
गहरा एहसास 
सागर की बाहों में मचलती लहरें 
प्रेमियों के मन में मचलती 
हुई भावनायें हो जैसे, 
साहिल को छूने के लिए 
जैसे मचलती है लहरेंऔर 
साहिल की रेत उन लहरों को अपने 
अंदर जज़्ब कर लेती है 
जैसे आत्मा में प्रेम समा जाता है 
तब उस गहराई में जाकर होता है
एक ऐसे सच्चे प्रेम का निर्माण 
जैसे सिपीं में 
छुपा सच्चा मोती हो कोई  
प्रमियों का मन भी, 
तो मचलता है वैसे ही ,
बस एक बार अपने पहले प्यार 
के पहले स्पर्श के लिए 
पहले प्यार का वो 
पहला स्पर्श 
जो न केवल तन, बल्कि मन पर 
भी छोड़ जाता है अपने अस्तित्व 
की वो अमिट छाप 
जिसे चाहकर भी कोई
कभी भुला नहीं पाता ....

Thursday, 22 December 2011



क्या तुमने कभी देखा है
किसी सागर को रंग बदले हुए 
क्या सच में ऐसा ही होता है, 
या ब्रह्म है ये मेरे अंतस का..... 
सुबह सवेरे जब सूरज आता है अपनी लालिमा 
लिए तब बिखर जाती  है
एक सुनहरी सी चादर समंदर के लहरों पर 
और जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है......
तब जैसे सूरज की तपिश से पिघलता जाता है आसमान 
और कर देता हैं इस सुनहरी चादर को नीला
उसी सूरज के ढलने तक... 
एक ही दिन में, न जाने कितने स्वरूप बदल जाते हैं 
इस एक ही मंजर के ..
.मगर हर घड़ी बदलते स्वरूप की इस पीढ़ा को
 कोई नहीं सुन पाता 
सोचा है कभी क्यूँ ?
क्यूंकि शायद रोज़ के कोलहाल से भरी ज़िंदगी
कभी मौका ही नहीं देती 
कि कभी सागर किनारे बैठकर सोच भी सको,
 कि क्यूँ खारा है 
आखिर इतना 
समंदर का पानी 
क्यूँ मन की तरंगो की तरह मचलती लहरें
.रात के सनाटे में अकसर बदल जाती है 
जैसे सागर की चीख़ों में मगर खुद में ही मग्न लोग कभी
महसूस ही नहीं कर पाते इस समंदर में उठती
आवेग और पीढ़ा से भरी लहरों कि आह का अंतर्नाद   क्यूँ ???
क्यूंकि शायद कुछ बातें खामोशी के साथ ही अच्छी लगती है ... :)  

Wednesday, 21 December 2011

मन की लहरें

साहिल को छुने की चाह में
मचलती सागर की लहरें
जैसे मन की तरंगों ने
ओढ़ लिया हो
लहर नुमा कोई आवरण
न जाने ऐसी कितनी तरंगें
 है हमारे मन की
जो मचलती है
सब कुछ पाने के लिए
क्यूंकि जो आज है, क्या पता
कल हो न हो
फिर क्या पता एक टुकड़ा साहिल
भी शायद इन लहरों में कटकर
न घुले,न मिले
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
पानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं ....   

Monday, 19 December 2011

ठंडक की तलाश ....


ज़िंदगी की तप्ति 
धूप में तप-तप कर 
जब थोड़ा सी ठंडक पाने 
की चाह में,  
कभी निकलती हूँ घर से 
तो सबसे पहले याद आता है
समंदर का वो किनारा 
जिसकी नम और ठंडी रेत
पर चलकर किए थे हमने  
कुछ वादे, वो इरादे
जिनमें गहराई थी कभी 
समंदर की तरह
जिसमें प्यार और विश्वास भी था 
समंदर की तरह जहां दूर... तक नज़र
डालने पर भी दिखाई देता था
सागर नुमा  
सिर्फ तुम्हारा गहरा प्यार
जिसमें उठती हुई
 तुम्हारे 
प्यार की ठंडी-ठंडी लहरें 
भिगो जाती थी मेरे 
अंतस को तुम्हारे प्यार से  
जिसका सागर ही, कि तरह 
कोई किनारा न था,
मगर अब सोचती हूँ, 
तो लगता है 
जैसे ज़िंदगी में उड़ती गरम हवाओं ने 
सुखा कर उस ठंडी रेत को 
बदल दिया है शायद,
रेगिस्तान की तप्ति 
रेत में 
जिसने सुखा दिया है 
अब शायद प्यार का वो 
गहरा सागर भी 
जैसे बंजर ज़मीन हो कोई 
जिसमें अब कोई जीवन सांस नहीं लेता ....  

    

Saturday, 17 December 2011

अतीत....

कहते है, अतीत सभी का होता है 
 किसी का अच्छा 
तो किसी का बुरा 
अतीत के आईने से झाँकती यादें 
जैसे हिलते हुए पानी में  
धीरे-धीरे उतरता हुआ सा 
कोई प्रतिबिंब
जो, आहिस्ता-आहिस्ता 
साफ होता चला जाता है 
जैसे दर्पण हो कोई 
अतीत यदि मधुर हो  
तो अनायास ही उभर आती है 
उस प्रतिबिंब पर 
एक मोहक सी मुस्कान
जैसे पूर्णिमा के दिन 
जब चाँद अपने पूरे रुबाब पर 
हो कर बिखेरता है
सागर की लहरों पर अपनी मदमती छटा 
तो ऐसा लगता है
 जैसे लहरों ने औढ
लिया हो कोई सुनहरी आवरण 
मगर जब वही अतीत हो
 भयावह  
तो वही पूरनमासी बन जाती है, 
अमावस की रात
तब वही खूबसूरत लहरें 
धर लेती हैं काली नागन का रूप 
और डस लेती हैं, न सिर्फ 
वर्तमान को
बल्कि भविष्य को भी,
यह सब देख
 जब उतर 
आता है आँखों की नदीया में
 भरा खरा पानी 
तब उस खारे पानी से मिल
 बन जाता है 
 दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
जिसमें बना प्रतिबिंब
 डराता ही नहीं,
बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को  .... 

Wednesday, 14 December 2011

इंतज़ार

इंतज़ार
भला क्या होता है इंतज़ार 
वो जो कभी ख़त्म ही न हो 
वही होता है न इंतज़ार ........

जो कभी किसी का ख़त्म 
न हुआ है, न होगा कभी 
वही होता है, ना इंतज़ार  
कभी मीठा, तो कभी 
खट्टा लगता है,
इंतज़ार,
जैसे नदी को सागर 
से मिलने का इंतज़ार, 
सूखी धरती को, बारिश का इंतज़ार,
जैसे भूखे को रोटी का,
प्यासे को पानी का,
गरीब को लक्ष्मी का,  
और न जाने कितने ऐसे इंतज़ार है
जिनका कभी अंत होकर भी अंत नहीं होता
एक ख़त्म तो अगले ही पल 
दूसरा शुरू हो जाता है इंतज़ार,
ज़िंदगी का दूसरा
नाम ही हो,जैसे इंतज़ार, 
इंतज़ार के क्षणों में 
वक्त रुक सा जाता है 
जैसे ऊपर से शांत दिखने वाला 
सागर अपने अंतस में हो 
रही छटपटाहटों को छुपाये हुए शांत 
नज़र आता है
ठीक वैसे ही शायद हमारे
अंतस मन में उठ रही उथल पुथल
को भी हम अपने चहरे पर लगाकर
एक अनचाही सी मुस्कान
अपने अंदर छुपाये
रहते है, अपनी ज़िंदगी में 
आने वाले हर-एक छोटे बड़े पलों का
इंतज़ार ... 

Tuesday, 13 December 2011

ज़िंदगी के स्पर्श (एक नज़रिया )


ऊन के गोले सी 
गोल-गोल ज़िंदगी 
कभी नर्म तो कभी गर्म
सी ज़िंदगी
उलझे हुए ऊन के ताने बाने से 
बुनी हुई ज़िंदगी 
समंदर में उठने वाली 
हर लहर के उतार चढ़ाव 
सी बहती ज़िंदगी 
जिसकी हर एक लहर
का रिश्ता है सागर से  
जैसे ऊन के धागों
से आपस में मिलकर
बना होता है 
कोई निर्माण
जिसमें छुपी होती है
 माँ के हाथों की नरमी और अंचल की गर्मी  
जिसका आधार होता है  
एक नर्म स्पर्श 
जैसे बारिश का धरती से 
धरती का नदिया से 
नदिया का सागर से 
सागर का लहरों से
और लहरों का साहिल से
वैसे ही कभी-कभी 
ज़िंदगी के बदलते मौसम 
में ज़रूरी हो जाता है
शीतल पड़ी हुई 
ज़िंदगी को 
प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना ..... 


Sunday, 11 December 2011

यादों की नमी ....


मन रूपी समंदर ,में उठती हुई कुछ 
अनकही सी अनजानी सी लहरें 
जो कभी छू जाती है 
मेरे अस्तित्व को 
तो अन्यास ही यादआ जाती है 
कुछ भूली बिसरी यादें 
 जिसमें छलक जाती है वो बचपन की यादें,
वो गुड़ियों की शादी,वो सावन के झूले, 
वो कॉलेज़ की मस्ती,वो प्यार रूमानी   
वो बारिश का पानी,
 जो आज भी भिगो जाता है 
मेरे मन को जैसे 
समंदर की लहरें भिगो जाती है
 साहिल को 
और साहिल की रेत 
उन्हीं लहरों को अपने अंदर
 जज़्ब कर लेती है ऐसे 
   जैसे कभी कोई मन, 
अपने अंदर जज़्ब
कर लेता है, 
किसी की यादों को 
और ज़िंदगी की तप्ती धूप में 
वही नमी काम आती है 
जलते हुए मन को शीतल करने के लिए .... 

Saturday, 10 December 2011

अटूट विश्वास



प्यार में एक बार विश्वास 
क्या टूट जाये तो  
ज़िंदगी ही बेगानी,
 बेमानी सी नज़र आने लगती है,
मगर उस प्यार और विश्वास का 
क्या जिसके बारे 
में मैं जानता हूँ कि  
मैं भले ही उनके साथ 
विश्वासघाती क्यूँ न 
बन जाऊँ मगर वो मेरा 
 साथ निभाये गे खुदा की तरह
कहकर बेटा, यदि ज़िंदगी
के समंदर 
में कुछ उठती 
हुई तूफ़ानी लहरों को 
 पार करना है, तो थाम लो हाथ मेरा, 
और मैं बडा ही स्वार्थी बन कहता हूँ  
 हाथ आप मेरा नहीं,
 मैं आपका थामना चाहता हूँ ,
 क्यूँकि शायद मुझको खुद पर ही विश्वास नहीं,
 कब छोड़ दूँ मैं आपका साथ और हाथ,
 मगर आप पर है, 
मुझको सम्पूर्ण विश्वास,
 कि मैं भले ही छोड दूँ  
आपका हाथ,
 मगर आप कभी नहीं छोड़ोगे मेरा हाथ,
क्यूँकि आपका और मेरा रिश्ता,
 तो समंदर की लहरों और साहिल का सा है , 
जो कुछ भी नहीं 
ले जाती आपने साथ
बल्कि महफूज़ करके सभी 
को छोड़ जाती है,
 साहिल पर बिना किसी
  शर्त के यही तो रिश्ता है, न मेरा 
आपसे 
है न मम्मा है न पापा ....!!! 


Thursday, 8 December 2011

बेबफ़ाई


आज तक प्यार में मरने वालों 
के बारे में तो बहुत 
सुना होगा ना तुमने  
मगर क्या 
कभी यह सुना है 
कि किसी को इतना प्यार 
मिला कि 
प्यार पाकर ही वो पल-पल मर 
रहा हो,नहीं ना,
लेकिन सच यही है,  
कैसे कहूँ तुम से 
कि मैं तुम्हारे इस असीम 
और बेपनाह  
प्यार के काबिल नहीं, 
मैं तो वो बेवफ़ा हूँ 
जिसे भावनाओं के 
एक झोंके ने
झोंक दिया हमेशा के लिए 
पश्चयताप कि 
उस कभी न बुझने वाली आग में, 
जहां तुम्हारे प्यार का बेपनाह 
समंदर होते हुए भी, 
सूखा पड़ा हुआ है, मेरा अस्तित्व,  
जहां तुम्हारा सच्चा प्रेम  
कचोटता है, 
मेरे वजूद को, 
जिसके चलते न मैं मर ही सकती हूँ 
और न हीं मैं जी सकती हूँ 
जैसे खाई हुई 
मछ्ली का कांटा 
जो न निगलते बनता है 
और 
न उगलते... 

Wednesday, 7 December 2011

यादें


जीवन के इस मोड़ पर 
आज भले ही तुम 
मुझे ना पहचानो या 
पहचान कर भी 
अंजान बन जाओ 
 क्यूंकि शायद आज
  इस बेरहम समाज के खोखले बंधनों
 ने तुम्हें मजबूर कर दिया है
खुद से एक अजनबी की ज़िंदगी
जीने के लिए
जिसके चलते
 तुम्हारे
जीवन में मेरा कोई अस्तित्व
ही नहीं बाकी रहा है अब,  
तुमने भले ही,
 मिटा दिया हो मेरे वजूद को 
अपनी ज़िंदगी से
हमेशा के लिए 
जैसे रेत पर लिखे नाम को 
को समंदर की लहर मिटा जाती है 
मगर मेरे मन रूपी समंदर में 
 तुम्हारे साथ 
गुज़ारे हुए लम्हों की रूमानी लहरें  
 आज भी
 उसी अंदाज़ में उठा करती है
जैसे मचल जाते हैं किनारे साहिलों को छूने के लिए  
और मैं उन लहरों में,
 अपनी यादों की कश्ती लिए 
बस डूबती 
चली जाती हूँ। ....  

तलाश ...


ज़िंदगी की राह में
क्या सभी को
कोई ऐसा हमसफर मिल पाता है 
जो जज़्ब करले, अपने अंदर,
 हमारे सभी एहसासों को
जैसे सुखी मिट्टी अपने अंदर समा लेती है,
 पानी की बूंदों को
और दे जाती हैं,
 एक मनमोहक सी महक,
 मन को लुभाने के लिए 
जैसे रेत अपने अंदर जज़्ब कर लेती है 
 समंदर की अलहड़ लहरों का पानी, 
ख़ुद गीली हो कर भी शांत भाव से ओरों को देती है 
उनके सपनों का आशियाँ बनाने एक मौका ,एक ख़्वाब
जो उनको ना सिर्फ,
 खुलकर जीने की प्रेरणा देता है 
बल्कि कुछ देर के लिए इस हकीकत की 
बेरहम दुनिया से दूर बहुत दूर ले जाता है
एक काल्पनिक स्वप्न लोक में 
जहां केवल अपनी मन मर्ज़ी से जीने की 
आजादी होती है 
 जहाँ न कोई रस्म-ओ-रिवाज का कोई 
बंधन होता है 
और न ही बेरहम समाज के खोखले उसूल 
जो मजबूर कर देते हैं, एक इंसान 
को 
बेमानी सी बिना किसी वजूद की 
तालश में भटकती ज़िंदगी जीने के लिए ,
क्या कोई है ऐसा 
आपकी ज़िंदगी में
 जो ख़ुद में आपके मन के कोलाहल
 और सभी अवसादों को समेटे
 होने के बावजूद भी
 शांत मन से, दे सके, 
आपको , 
 आपके जीवन का वो मार्ग, 
जहाँ आडंबरों की कोई जगह नहीं.... 

Monday, 5 December 2011

जीवन का सच (एक नज़रिया )


जीवन का सच क्या है,
शायद सुख और दुख,
इन्हीं दो ताने बाने से ही तो बुना होता है न हमारा जीवन 
 सुख-दुख क्या हैं
 और इनको किस प्रकार एक अलग नज़रिये से देखा जा सकता है।
जैसे सुख-दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 
एक के बिना, जैसे दूसरा अधूरा है,
  जैसे एक नारी और एक पुरुष एक दूसरे के बिना अधूरे हैं 
 इतना अधूरे कि एक के बिना दूसरे के अस्तित्व, 
कि कल्पना भी नहीं कि जा सकती।
 इसी तरह सुख-दुख एक इंसान रूपी माँ के दो बच्चों की तरहा है 
दुख एक शरारती बच्चा है, 
 जो सदेव अपनी माँ के आस-पास घूमता रहता है
 और उसे परेशान किया करता है।  
मगर सुख उस ही माँ का लाड़ला और सब से प्रिय बच्चा है, 
 जिसे माँ बेहद प्यार करती है
 और चाहती है,कि वह सदैव उसके साथ रहे,
उसके पास रहे,
 मगर वो है, 
कि हमेशा अपनी माँ के साथ आँख मिचौली ही खेलना पसंद करता है। 
 ऐसी कितनी बातें हैं,
 जो इन सुख-दुख को देखने का एक अलग ही नज़रिया रखती है। 
 जैसे सुख एक जलती हुई फुलझड़ी है, 
 जो ज़रा देर जलकर मन को खुश कर देती है। 
  और पलक झपकते ही बुझ जाती है,
मगर दुख एक जलती हुई अगरबत्ती के समान होता है
 जो देर तक जला करता है
 और अपनी खुशबू से इंसान को देर तक महकाया करता है। 
या फिर समय
 जो इस सुख-दुख को एक अलग परिभाषा देता है,
क्यूँकि अच्छे वक्त कि एक बुरी आदत होती है,
 कि वो बीत जाता है।  
उसी प्रकार बुरे वक्त कि भी,
 एक अच्छी अदात होती है,
 कि वो भी बीत ही जाता है।
या फिर दुखों का क्या है
दुख तो फ्री में मिलते हैं
मगर सुख की कीमत तो देनी ही पड़ती है।   
कहते हैं हर दुख आने वाले सुख कि चिट्ठी होती है ,
जैसे हर रात की सुबह होती है,
 इसलिए शायद, 
सुख और दुख को ध्यान मे रखकर
 ही वो गीत लिखा गया होगा
 कि रही मनवा दुख कि चिंता क्यूँ सताती है। 
 दुख तो अपना साथी है।
आपको क्या लगता है
ज़िंदगी को देखने का,
क्या यह नज़रिया सही है।