साहिल को छुने की चाह में
मचलती सागर की लहरें
जैसे मन की तरंगों ने
ओढ़ लिया हो
लहर नुमा कोई आवरण
न जाने ऐसी कितनी तरंगें
है हमारे मन की
जो मचलती है
सब कुछ पाने के लिए
क्यूंकि जो आज है, क्या पता
कल हो न हो
फिर क्या पता एक टुकड़ा साहिल
भी शायद इन लहरों में कटकर
न घुले,न मिले
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
पानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं ....
मचलती सागर की लहरें
जैसे मन की तरंगों ने
ओढ़ लिया हो
लहर नुमा कोई आवरण
न जाने ऐसी कितनी तरंगें
है हमारे मन की
जो मचलती है
सब कुछ पाने के लिए
क्यूंकि जो आज है, क्या पता
कल हो न हो
फिर क्या पता एक टुकड़ा साहिल
भी शायद इन लहरों में कटकर
न घुले,न मिले
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
पानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं ....
मन को छु गयी आपकी रचना ................
ReplyDeleteशुक्रिया रोशी जी ...यूं ही संपर्क बनाये रखें आभार
ReplyDeleteमन में रहना हो तो पानी की तरह ही रहना चाहिए. किनारे की तरह नहीं. इसे ही चित्त की कोमलता कहते हैं.
ReplyDeleteसाहिल को छुने की चाह में ,
ReplyDeleteमचलती सागर की लहरें.... !
न जाने ऐसी कितनी तरंगें ,
है हमारे मन की ,
सब कुछ पाने के लिए ,
क्यूंकि जो आज है, क्या पता ,
कल हो न हो.... !!
इंसानों की हकीकत ब्यान करती एक खुबशुरत रचना.... :)
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
ReplyDeleteपानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं ....
....बहुत सुंदर...
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
कल 23/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
ReplyDeleteपानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं ...
Bahut sundar bhav...
bahut umda bhaav bahut achcha likha hai.
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसादर बधाई....
behtarin abhivykti.....
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteवाह पल्लवी जी..बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबधाई.
आप मेरे शहर...मेरे ही कॉलेज से हैं :-)
क्यूंकि कट के घुल मिलजाना
ReplyDeleteपानी का स्वभाव होता है
किनारों का नहीं .... सच्ची बात!!
vaah..!!
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