Sunday, 11 December 2011

यादों की नमी ....


मन रूपी समंदर ,में उठती हुई कुछ 
अनकही सी अनजानी सी लहरें 
जो कभी छू जाती है 
मेरे अस्तित्व को 
तो अन्यास ही यादआ जाती है 
कुछ भूली बिसरी यादें 
 जिसमें छलक जाती है वो बचपन की यादें,
वो गुड़ियों की शादी,वो सावन के झूले, 
वो कॉलेज़ की मस्ती,वो प्यार रूमानी   
वो बारिश का पानी,
 जो आज भी भिगो जाता है 
मेरे मन को जैसे 
समंदर की लहरें भिगो जाती है
 साहिल को 
और साहिल की रेत 
उन्हीं लहरों को अपने अंदर
 जज़्ब कर लेती है ऐसे 
   जैसे कभी कोई मन, 
अपने अंदर जज़्ब
कर लेता है, 
किसी की यादों को 
और ज़िंदगी की तप्ती धूप में 
वही नमी काम आती है 
जलते हुए मन को शीतल करने के लिए .... 

13 comments:

  1. जीवन में जीवन की नमी ही जीवन भरती है. सुंदर कविता.

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  2. कल 13/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. ज़िंदगी की तप्ती धूप में
    वही नमी काम आती है
    जलते हुए मन को शीतल करने के लिए ....

    GOOD WORK KEEP IT UP...

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  4. पल्लवी जी,आपके मन के रुपी समंदर से निकली अनजानी सी लहरें तो भाव विभोर कर रहीं हैं जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.

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  5. दूसरे ब्लॉग पर मेरे कमेंट्स दिखाई नहीं दे रहे हैं ... स्पैम में चले जाते हैं शायद .. आप स्पैम चेक कीजिये .

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  6. bahut sundar :)
    mere blog par aapka swagat hai.

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  7. मेरा पहले दिया हुआ कमेन्ट नहीं दिखायी दे रहा...बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  8. पता नहीं अंकल spam में भी नहीं है ...कोई बात नहीं,मेरे ब्लॉग पर दुबारा आने के लिए शुक्रिया....

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  9. बड़ी सुन्दर प्रस्तुति...
    सादर..

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