Friday 16 November 2012

कसक ....

यूं तो हूँ मैं तुमसे जन्मी हूँ माँ 
मगर तुमने मुझे कभी अपना समझा ही नहीं माँ 
क्या सिर्फ इसलिए कि मैं एक लड़की थी 
या मेरा रंग ज़रा काला था
या फिर  
मेरी त्वचा ज़रा जरूरत से ज्यादा ही रूखी सुखी सी थी 
दिखने में शायद बहुत कुरूप थी मैं उस वक्त 
लेकिन क्या यह सब कारण एक माँ की ममता को 
अपने ही बच्चे के प्रति जो लगाव रहा करता है 
उसे कम करने में सक्षम है?
जो तुमने मेरा पल पल तिरस्कार किया 
मुझे अपनी बेटी कहने से इंकार किया 
यहाँ तक कि तुमने तो अपने पति, यानि मेरे पिता तक को 
जाने अंजाने अपमानित किया 
यह कह -कहकर कि यह मेरी बेटी नहीं 
यह तो अपने पिता की संतान है
इसलिए उन्हीं पर गया है, इसका रंग रूप

मेरा तो सिर्फ बेटा है 
जो मेरे जैसा दिखता है गोरा चिट्टा  
बल्कि मुझे जैसा ही सोचता भी है
लेकिन इस सब के बावजूद भी मुझे गर्व है माँ 
इस बात पर कि मैं अपने पिता की बेटी हूँ
 जो देखने में भले ही एक साधारण से आम इंसान है  
मगर वासत्व में एक बेहद नेक दिल इंसान भी हैं
जो इस दुनिया में बहुत कम पाये जाते हैं  
तो क्या हुआ जो उनका रंग काला है और मेरा भी 
तो क्या हुआ अगर उनकी त्वचा भी 
मेरी त्वचा कि तरह खराब है 
तो क्या हुआ जो वह एक फिल्मी हीरो कि तरह 
 अपने मन की बातें आपसे कभी जाहिर नहीं कर पाते
मगर इतने सालों में साथ रहते 
एहसास तो हुआ होगा आपको भी, कि वो कहें भले ही नहीं 

लेकिन कदर ही नहीं बल्कि प्यार भी करते हैं वो आपको 
मगर आपने मेरी तरह शायद उन्हें भी कभी अपना समझा ही नहीं 
इसलिए शायद आपने दुनिया की रीत के आगे 
 सिर्फ अपना फर्ज़ निभाय हैं 
प्यार नहीं किया कभी उनसे 
और न ही मुझसे 
क्यूँ माँ क्यूँ 
क्या दिखावा ही ज़िंदगी में सब कुछ है 
क्या वास्तविकता के कोई मायने नहीं ?
नहीं!!! कम से कम मेरी ज़िंदगी में तो यह बात सच नहीं 
क्यूंकि मेरे जीवन की वास्तविकता तो यह है कि  
इतना कुछ होने के बावजूद भी मुझे आज भी बहुत बुरा लगता है 
जब तुम किसी भी बात पर मुझे खुद से अलग करते हुए भईया का पक्ष लेती हो 
और यह कहती हो कि वो मेरे जैसा है 
और मैं अपने पिता जैसी हूँ 
फिर भले ही वो कोई हंसी मज़ाक कि ही बात क्यूँ न हो 
सच तो यह है माँ कि मैं और पापा आज भी आप से बहुत प्यार करते है 
और आपसे जुड़े रहना चाहते हैं 
बातों में भी और वास्तव में भी 
इसलिए कम से कम अब तो इस रंग भेद और बेटे बेटी के भेद को छोड़ो माँ 
और एक बार कह दो कि हाँ हमारी बेटी भी मेरे जैसी ही है। 
तो मेरे दिल को भी एक बार सूकून आजाये .....          

Monday 5 November 2012

सफर ज़िंदगी का ....


एक लंबी सड़क सी ज़िंदगी 
एक ऐसी सड़क 
जिसे तलाश है अपनी मंज़िल की 
वो सड़क जिसे अपने आप में ऐसा लगता है कि 
कभी तो खत्म होगा यह सफर ज़िंदगी का 
कभी तो मिलेगी मंज़िल 
मगर वक्त का पहिया हरपल यह एहसास दिलाया करता है कि 
एक बार जो चला जाऊन मैं  
तो लौटकर फिर कभी वापस नहीं आता 
पर क्या यही सच्चाई है ? 
नहीं मुझे तो ऐसा नहीं लगता 
ज़िंदगी की सड़कें भले ही कितनी भी लम्बी क्यूँ न हो 
मगर उस सफर के रास्ते में 
उस एक ज़िंदगी के न जाने कितने चक्र 
वक्त के साथ गतिमान रहते हुए घूमते रहते है 
और 
उन चक्रों में गया वक्त भी लौट-लौटकर आता रहता है 
क्यूंकि शायद ज़िंदगी कुछ भी अधूरा नहीं छोड़ती  
उस अंतिम वक्त में भी नहीं  
भले ही यह एहसास क्यूँ न हो सभी के मन के अंदर 
कि अभी तो बहुत से काम बाकी है 
बहुत सी जिम्मेदारियाँ निभाना बाकी है 
अभी अपने लिए तो जिया ही नहीं हमने 
अभी तो उस विषय में सोचना तक बाकी है  
मगर वास्तविकता तो कुछ और ही होती है 
जीवन का लालची इंसान 
जीवन पाने के चाह में ही पूरी ज़िंदगी बिता दिया करता है 
मगर यह नहीं सोच पाता कभी 
की ज़िंदगी अपना चक्र किसी न किसी रूप में पूरा कर ही लेती है 
कुछ अधूरा नहीं छूटता कभी, 
शायद इसी के आधार पर 
ऊपर वाला तय करता है सभी की मृत्यु 
क्यूंकि उसने तो पहले से ही सब तय कर रखा है 
कब, कहाँ, कैसे क्यूँ और किसका इस रंगमंच रूपी संसार से पर्दा उठेगा
और  
एक बार फिर पूरा होगा सफर ज़िंदगी का ......