Saturday, 30 May 2020

~अधूरापन~



तप्ती गरमी और कड़ाके की ठंड को सहती हुई यह वादियाँ ना जाने कितनी सदियों से प्रतीक्षा कर रही है उस आसमान के एक आलिंग कि, की जिसे पाकर मनो मोक्ष मिल जायेगा इन्हें

इनकी पथराई आंखों मे भी लहराए गा कभी जज़्बातों का पानी और फिर खेलेगा एक पत्थर का फूल इनके आँचल में,

पाषाण युग से आज तलक सिर्फ आसमान के एक बोसे मात्र से, झूम उठता है इनका मन, झट हरियाली की चुनर ओढ़ बन जाती है, यह दुल्हन

बेचारी मासूम है बहुत, नही जानती यह क्षणिकाएं नही बन सकती उनका जीवन यह महज़ एक छलावा है उन आवारा बादलों का, जो एक ही तीर से जाने कितने शिकार कर लेना चाहते हैं

इन वादियों के दामन में तो वह भी नही टिकना चाहते, टिक भी नहीं सकते, बह जाते हैं नीचे, तलहटी की ओर के आसान नही होता तपो भूमी पर यूँ हक जताना किसी का, क्योंकि प्रेम एक तपस्या ही तो है

अधूरेपन की पूर्ण परिभाषा प्रेम ही तो है, अधूरे शब्दों में समावेश प्रेम का ही तो है, फिर चाहे वो प्यार हो या त्याग आखिर प्रेम ही तो है, इन अधूरी वादियों का तप प्रेम ही तो है,

प्रेम जो है एक आस, जैसे मीरा की प्यास, राधा का इंतज़ार, तुलसी का प्यार, आखिर यह सब अधूरा होकर भी पूर्ण ही तो है,

इसलिए कभी अधूरे पन से निराश न हो, है मानव! जो अधूरे हैं , सही मायनो में वही पूरे हैं, मंजिल को पा लेना केवल  प्रेम नही होता, बल्कि सारी ज़िन्दगी एक अतृप्त सी प्यास के पीछे भटकना ही प्रेम होता हैमाना के जीवन

पूर्ण नही होता प्रेम के बिना, लेकिन प्रेम सच्चा वही है, जो कभी पूर्ण नही होता, जो ना बाटने से घटे न मारने से मरे, बिल्कुल ज्ञान की तरह प्रेम कभी कम नही होता।

Monday, 25 May 2020

~प्यार ~


क्या कहूँ तुम से कि नि शब्द हूँ मैं आज
तुम्हारी बातें, जैसा मेरा श्रृंगार
सुनते ही मानो....मानो मेरे मन मंदिर में जैसे, बज उठते हैं हजारों सितार
एक नहीं, बल्कि कई सौ बार
उठती रहती हैं लहरें दूर.... कहीं मन के उस पार
आज भी सुनने को आतुर है मन, फिर एक बार वही कही सुनी
सुनी अनसुनी बातें, बार बार लगातार
पल प्रतिपल कि वो झंकार
कह नहीं पाती मैं तुम से, पर हाँ सच तो यही है
मैं सुनना चाहती हूँ तुम से तुम्हारे प्यार का इज़हार
वो प्यार
जो दिखता तो है, उस पार
पर नाजने क्यूँ रोक लेते हो तुम उस पर करके प्रहार
बेह क्यूँ नहीं जाने देते अपने अंदर के उस प्रेम आवेग को एक बार कि प्यार में नहीं होता कुछ सही गलत
एक बार या दो बार
डूब जाने दो उसमें यह संसार
यह मर्यादा कि लकीरें, यह संस्कारों की बेड़ियाँ, यह रिश्तों के बंधन, यह सामाजिक संगठन
कुछ नहीं रह जाता है शेष जब कभी होता है आत्मा से आत्मा का मिलन ....पल्लवी     

Friday, 22 May 2020

~तुम ~



इतनी सुंदर तो न थी मैं, जितना आज तुमने मुझे बना दिया
कुछ यूं घुमाया शब्दों को, मानो एक दीपक जला दिया

गुज़र हुये दिन कुछ इस तरह याद आए
कि लहरों ने समंदर को नचा दिया

घुँघरू थे इन पाँव में कभी
तुम्हारे शब्दों ने देखो इन्हें नूपुर बना दिया

दब के रह गयी थी कहीं जो बातें
देखो आज मेरे पास आकर तुमने उन्हें जगा दिया

मिट्टी की खुशबू, कागज़ की सियाही, सागर की लहरें,
आँखों का काजल ना जाने तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

फूलों की खुशबू पौधों की रंगत लहराता आँचल जैसे हो पागल
तितली  के पंख, भौरे की गुंजन, देखो न, तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

सूरज की लाली, चाँद का टीका सितारों की बाली
वो बातें तुम्हारी और कुछ हमारी, क्या थी मैं और क्या थे तुम
देखो न प्रेम ने हमें क्या से क्या बना दिया....पल्लवी