तप्ती गरमी और कड़ाके की ठंड को सहती हुई यह वादियाँ ना जाने कितनी सदियों से प्रतीक्षा कर रही है उस आसमान के एक आलिंग कि, की जिसे पाकर मनो मोक्ष मिल जायेगा इन्हें
इनकी पथराई आंखों मे भी लहराए गा कभी जज़्बातों का पानी और फिर खेलेगा एक पत्थर का फूल इनके आँचल में,
पाषाण युग से आज तलक सिर्फ आसमान के एक बोसे मात्र से, झूम उठता है इनका मन, झट हरियाली की चुनर ओढ़ बन जाती है, यह दुल्हन
बेचारी मासूम है बहुत, नही जानती यह क्षणिकाएं नही बन सकती उनका जीवन यह महज़ एक छलावा है उन आवारा बादलों का, जो एक ही तीर से जाने कितने शिकार कर लेना चाहते हैं
इन वादियों के दामन में तो वह भी नही टिकना चाहते, टिक भी नहीं सकते, बह जाते हैं नीचे, तलहटी की ओर के आसान नही होता तपो भूमी पर यूँ हक जताना किसी का, क्योंकि प्रेम एक तपस्या ही तो है
अधूरेपन की पूर्ण परिभाषा प्रेम ही तो है, अधूरे शब्दों में समावेश प्रेम का ही तो है, फिर चाहे वो प्यार हो या त्याग आखिर प्रेम ही तो है, इन अधूरी वादियों का तप प्रेम ही तो है,
प्रेम जो है एक आस, जैसे मीरा की प्यास, राधा का इंतज़ार, तुलसी का प्यार, आखिर यह सब अधूरा होकर भी पूर्ण ही तो है,
इसलिए कभी अधूरे पन से निराश न हो, है मानव! जो अधूरे हैं , सही मायनो में वही पूरे हैं, मंजिल को पा लेना केवल प्रेम नही होता, बल्कि सारी ज़िन्दगी एक अतृप्त सी प्यास के पीछे भटकना ही प्रेम होता हैमाना के जीवन
पूर्ण नही होता प्रेम के बिना, लेकिन प्रेम सच्चा वही है, जो कभी पूर्ण नही होता, जो ना बाटने से घटे न मारने से मरे, बिल्कुल ज्ञान की तरह प्रेम कभी कम नही होता।
कमाल है
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत गहरा विषय है पर साथ ही साथ बहुत अच्छा विवरण प्रस्तुत किया आपने।
ReplyDeleteप्रेम सच्चा-झूठा नहीं होता बल्कि व्यक्ति सच्चा-झूठा होता है. प्रेम को पूर्ण, अधूरा, सच्चा झूठा आदि जैसी भ्रामक शब्दावली ने ही इंसानों से दूर कर दिया है. उसका स्वरूप बदरंग कर दिया है.
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ReplyDeleteअधूरेपन की पूर्ण परिभाषा प्रेम ही तो है, अधूरे शब्दों में समावेश प्रेम का ही तो है, फिर चाहे वो प्यार हो या त्याग आखिर प्रेम ही तो है, इन अधूरी वादियों का तप प्रेम ही तो है,
प्रेम जो है एक आस, जैसे मीरा की प्यास, राधा का इंतज़ार, तुलसी का प्यार, आखिर यह सब अधूरा होकर भी पूर्ण ही तो है
बहुत खूब
आप सभी का आभार सहित धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रेम हमेशा प्रेम रहता है
ReplyDeleteप्रेम तो बस प्रेम में ही भासता है .........अधूरापन ही प्रेम की मुकम्मलता है
ReplyDeleteप्रकृति बस प्रेम ही प्रेम, अधूरा रहे या पूरा।
ReplyDeleteप्रेम.शाश्वत है चाहे जिस रूप में हो ।
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ধন্যবাদ সুন্দর পোস্ট শেয়ার করার জন্য। আমরা ঢাকা সব সারা বাংলাদেশে বাসা বদল ।
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