आज क्या लिखूँ कि मन उलझा-उलझा सा है रास्ते पर चलते हुए जब छतरी के ऊपर गिरती पानी की बूँदें शोर मचाती है तो कभी उस शोर को सुन मन मयूर मचल उठता है और तब मेरे दिल से निकलता है बस एक यही गीत....
"रिमझिम गिरे सावन, मचल-मचल जाये मन,
भीगे आज इस मौसम,लागि कैसी यह अगन"
यूं तो यह बारिश का मौसम मेरा सबसे ज्यादा पसंदीदा मौसम है,
क्यूंकि मुझे बारिश में भीगना बहुत पसंद है
वह घर की बालकनी में हाथ बढ़ाकर गिरती हुई बूंदों को महसूस करना
क्यूंकि मुझे बारिश में भीगना बहुत पसंद है
वह घर की बालकनी में हाथ बढ़ाकर गिरती हुई बूंदों को महसूस करना
मुझे तो यूं लगता है
जैसे बारिश भी अपना हाथ बढ़ा रही है मेरी ओर
कि आओ मुझे छू लो,
मेरे साथ झूम लो गा लो
मेरे साथ झूम लो गा लो
ठीक किसी हिन्दी फिल्म की नायिका की तरह
घर के आँगन में जाकर गोल-गोल घूमना
गड्ढों में भरे पानी में "छई छपा छई, छपाके छाई"
की तर्ज़ पर छपाक छपाक खेलना
कितना बचकाना सा लगता है न, अब यह सब,
लेकिन यही तो वो यादें हैं जिनमें सभी का बचपन ज़िंदा है
हर वो बच्चा ज़िंदा है जो हर इंसान के बूढ़ा हो जाने पर भी
कहीं न कहीं उसके दिल के किसी कोने में छुप कर बैठा होता है
जिसे हर कोई ज़िंदा रखना तो चाहता है
मगर कुछ सामाजिक बंधनों के कारण उसे सामने नहीं ला पाता
और देखते ही देखते कितना कुछ बदल जाता है
यूं तो ज़िंदगी के हर पल में एक ध्वनि है, एक सुर है, एक संगीत है
मगर यह ज़रूरी नहीं कि हमें हर बार वो संगीत अच्छा ही लगे
कई बार यूं भी होता है
जब मन उस संगीत से परेशान हो कानों पर हाथ रखकर
उसे अनसुना कर देना चाहता है
मगर प्रकृति ने कब किसकी सुनी है
वो तो उस साथी की तरह है जो हमें कभी अकेला नहीं छोड़ती
चाहे ग़म हो या खुशी, हम चाहें या ना चाहे,
एक वही तो है जो पल-पल साथ निभाती चलती है ज़िंदगी का,
कभी महसूस किया है क्या
अकेली सड़क पर साथ चलने वाले पेड़ों, रास्तों, पगडंडियों
और आकाश के साथ-साथ आते जाते वाहनों की आवाजाही
फिर भी दूर तलक फैली खामोशी
जिसमें सिर्फ सुनाई देती है गिरती हुई बारिश की पदचाप
जैसे कोई साथ साथ चल रहा हो हमारे
मगर जब मुड़कर देखो तो दूर तक कोई नज़र नहीं आता
लेकिन फिर भी मुझे वो यह एहसास दिलाती है।
ज़िंदगी एक ख़मोश सफर नहीं
क्यूंकि मैं हूँ तुम्हारे साथ अब भी और तुम्हारे बाद भी
तुम्हारे अपनों का ख़्याल रखने के लिए....