यूं तो कहने को महिला दिवस है
लेकिन क्या फायदा ऐसे दिवस का जो महज़ कहने को आता है
और आकर यूं ही चला जाता है
ना नारी ही नारी का सम्मान करती है यहाँ
और न ही पुरुष ही करता है
सब भक्षण ही करना चाहते है
कोई संरक्षण करना नहीं चाहता कभी
वैसे तो मैं, अर्थात मैं नारी अपने आप में ही सम्पूर्ण हूँ
इतनी सम्पूर्ण कि मैं अगर चाहूँ तो एक ही झटके में बदल सकती हूँ
इस संसार का भूत, भविष्य और वर्तमान
मगर करती नहीं हूँ मैं ऐसा
क्या करूँ आदत से मजबूर हूँ ना,
इसलिए सदा खुद से पहले तुम्हारे बारे में सोचती हूँ
तुम खुश रहो और सफलता के साथ-साथ एक स्वस्थ एवं दीर्घ आयु जियो
बस यही एक कामना तो किया करती हूँ मैं दिन रात
मगर यह क्या
तुम ने तो मेरे इस रूप को, मेरी कमजोरी समझ लिया
हे नादान पुरुष तुम क्यूँ भूल गए जिस से तुम जन्में हो
वो अगर तुम्हें जन्म देकर तुम्हारा भरण, पोषण और रक्षण कर सकती है
तो वक्त आने पर वही तुम्हारा भक्षण भी कर सकती है
मत भूलो जो मौन है वो कमजोर नहीं
इसलिए किसी को इतना भी मत सताओ और न झुकाओ
कि विपरीत वार में वो तुम्हें कहीं का ना छोड़े
और तुम आसमान से गिरे खजूर में अटके की भांति
धरती पर पड़े क्षत विक्षत नज़र आओ
शुक्र करो कि मैंने छोड़ी नहीं है, अब तक अपनी कुछ आदतें
कि अब भी एक उम्मीद बाकी है मेरे मन में तुम्हारे प्रति
क्यूंकि जन्म से तो कोई बुरा नहीं होता
न स्त्री, न पुरुष
यह तो वक्त और हालात हैं, जो इंसान को नासमझ बना दिया करते है
इसलिए शायद नारी भी स्वयं नारी की दुश्मन हो जाती है कभी-कभी
लेकिन नादानी तो सभी से हो सकती है
क्यूंकि हम इंसान तो है ही
गलतियों का पुतला
मगर वो कहते हैं न गलतियाँ माफ की जा सकती है
मगर गुनाह नहीं,
इसलिए मेरे चेहरे की सोम्यता और शांति की परीक्षा न लो
क्यूंकि शांति हमेशा संतोष नहीं देती
कई बार वही शांति तूफान से पहले की शांति का रूप भी हो सकती है...
गलतिया माफ़ की जा सकती है ..पर गुनाह नही !!!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ...सुंदर लेख ..बधाई!
कि अब भी एक उम्मीद बाकी है मेरे मन में तुम्हारे प्रति.......वास्तव में यही भाव है,जिसने नारी को अभी तक सहनशील बना रखा है, अन्यथा तो क्या हो जाता अभी तक, उसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। बहुत सुन्दर वर्णन परिस्थितियों का।
ReplyDeleteपल्लवी जी ,आपने सही कहा,की गुनाह माफ़ नही किया जा सकता,,उम्दा अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (10-03-2013) के चर्चा मंच 1179 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteकिसी शायर ने कहा भी है -
ReplyDeleteकहिये तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए
कितना अच्छा हो, अगर साल 2013 में यह नज़ारा देखने को मिले कि परंपरागत और आधुनिक समाज में यह होड़ लगे कि देखें कौन औरत को हिफ़ाज़त और सम्मान देने में दूसरे को पछाड़ता है ?
मज़बूत इरादे और सकारात्मक प्रतियोगिता के ज़रिये हम औरतों को वह सब दे सकते हैं, जो उनका वाजिब हक़ है।
वर्ष का एक दिन 'महिला-दिवस' तो बाकी के 364 दिन किसके?
ReplyDeleteगलती सिर्फ एक या दो बार ही होती है | उसके बाद गलती गुनाह ही कहलाती है और उस गुनाह को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता | आपने सही कहा एक दम | बढ़िया |
ReplyDeleteसुन्दर भाव सम्प्रेषण.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया -
हर हर बम बम
umda prastuti
ReplyDeleteमहिला दिवस है तो उसकी सार्थकता भी हो.....
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए सार्थक प्रस्तुति.आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteमेरी परीक्षा न लो ... सच है नारी के संयम की सीमा आने से पहले पुरुष को समझना होगा ...
ReplyDeleteनारी का सम्मान हो तभी इस दिवस की भी सार्थकता है .... सुन्दर भावमय रचना ...
सुंदर भाव ,बधाई
ReplyDeleteनीलकंठ भोले की महिमा
बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर
.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावों को अभिव्यक्त करती लाइन आपकी चेतावनी का सम्मान करते हुए . महा शिवरात्रि की शुभकामना
सच, कब तक परीक्षा लोगे...बहुत सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteनादानी तो सबसे होती है चाहे मर्द हो या औरत . .. गुनाह नहीं होना चाहिए
ReplyDeletelatest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
latest postमहाशिव रात्रि
बढ़िया ...
ReplyDeleteumda rachna.... behtareen..:)
ReplyDeleteगलती तो माफ की जा सकती है लेकिन गुनाह नहीँ । एकदम सत्य और वजनदार बात कही आपने । सार्थक रचना । बधाई ।
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