इस अभिव्यक्ति की जान अंतिम पंक्तियाँ मेरी नहीं है मैंने उन्हें कहीं पढ़ा था। कहाँ अब यह भी मुझे याद नहीं है। कृपया इस बात को अन्यथा न लें।
स्त्री एक कोमल भाव के साथ एक कोमलता का एहसास दिलाता शब्द
जिसके पीछे छिपी होती है
एक माँ ,एक बहन ,एक बेटी और एक पत्नी
जो जन्म ही लेती एक सम्पूर्ण सृष्टि के रूप में
फिर भी एक पुरुष को अवसर देती है अपने साथ खड़े होने का
अपनी समग्रता और सम्पूर्णता में उसे श्रय देने का
इसलिए पत्नी के बाद माँ बन खुद को सम्पूर्ण समझती है वो
किन्तु, फिर भी संपूर्णता की तलाश कभी पूरी नहीं होती
क्यूंकि वक्त दर वक्त
यही पुरुष अपने अहंकार के चलते
उसे लोगों का कुरेदा हुआ ज़ख्म बना देता है
किन्तु फिर भी सारी वेदना को सहते हुए आगे बढ़ती है वो
खुद ज़ख्म होते हुए भी औरों के लिए मरहम का काम करती है वो
और उदहारण बनती है अगली स्त्री के लिए
किन्तु तब भी नहीं जान पाता वो नादान पुरुष
एक स्त्री के मन की यह ज़रा सी बात
के
जो समर में घाव खाता है उसी का मान होता है
छिपा उस वेदना में अमर बलिदान होता है
सृजन में चोट खाता है
छैनी और हथोड़ी का
वही पाषाण मंदिर में भगवान होता है ।
जो समर में घाव खाता है उसी का मान होता है
छिपा उस वेदना में अमर बलिदान होता है
सृजन में चोट खाता है
छैनी और हथोड़ी का
वही पाषाण मंदिर में भगवान होता है ।