ऊन के गोले सी
गोल-गोल ज़िंदगी
कभी नर्म तो कभी गर्म
सी ज़िंदगी
उलझे हुए ऊन के ताने बाने से
बुनी हुई ज़िंदगी
समंदर में उठने वाली
हर लहर के उतार चढ़ाव
सी बहती ज़िंदगी
जिसकी हर एक लहर
का रिश्ता है सागर से
जैसे ऊन के धागों
से आपस में मिलकर
बना होता है
से आपस में मिलकर
बना होता है
कोई निर्माण
जिसमें छुपी होती है
माँ के हाथों की नरमी और अंचल की गर्मी
जिसका आधार होता है
एक नर्म स्पर्श
जैसे बारिश का धरती से
धरती का नदिया से
नदिया का सागर से
सागर का लहरों से
और लहरों का साहिल से
वैसे ही कभी-कभी
ज़िंदगी के बदलते मौसम
में ज़रूरी हो जाता है
शीतल पड़ी हुई
ज़िंदगी को
प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....
जिसकी हर एक लहर
ReplyDeleteका रिश्ता है सागर से
जैसे ऊन के धागों
से आपस में मिलकर
बना होता है
कोई निर्माण
बहुत खूब!
मुझे तो आपकी सर्वश्रेष्ठ कविता लगी यह ।
सादर
वोह! आपका यह भी ब्लॉग है! हमने जाना ही नहीं बहुत अच्छा...लिखी हैं आप... प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....
ReplyDeleteवाह कितने कोमल भावो को संजोया है।
ReplyDeletevery nice :)
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteachha likha hai pallavi !!
ReplyDeleteआपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट "नकेनवाद" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवैसे ही कभी-कभी
ReplyDeleteज़िंदगी के बदलते मौसम
में ज़रूरी हो जाता है
शीतल पड़ी हुई
ज़िंदगी को
प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....
सच है
bahut acchi rachna, very sweet...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
संजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteज़िंदगी के बदलते मौसम
ReplyDeleteमें ज़रूरी हो जाता है
शीतल पड़ी हुई
ज़िंदगी को
प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....
sach me rishto me garmahat bani rahe, yahi sabse jaruri hai:)
pyari si rachna!!
Sundar
ReplyDeleteRead many of your poems... it was a beautiful experience... badhai!
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