Tuesday, 13 December 2011

ज़िंदगी के स्पर्श (एक नज़रिया )


ऊन के गोले सी 
गोल-गोल ज़िंदगी 
कभी नर्म तो कभी गर्म
सी ज़िंदगी
उलझे हुए ऊन के ताने बाने से 
बुनी हुई ज़िंदगी 
समंदर में उठने वाली 
हर लहर के उतार चढ़ाव 
सी बहती ज़िंदगी 
जिसकी हर एक लहर
का रिश्ता है सागर से  
जैसे ऊन के धागों
से आपस में मिलकर
बना होता है 
कोई निर्माण
जिसमें छुपी होती है
 माँ के हाथों की नरमी और अंचल की गर्मी  
जिसका आधार होता है  
एक नर्म स्पर्श 
जैसे बारिश का धरती से 
धरती का नदिया से 
नदिया का सागर से 
सागर का लहरों से
और लहरों का साहिल से
वैसे ही कभी-कभी 
ज़िंदगी के बदलते मौसम 
में ज़रूरी हो जाता है
शीतल पड़ी हुई 
ज़िंदगी को 
प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना ..... 


14 comments:

  1. जिसकी हर एक लहर
    का रिश्ता है सागर से
    जैसे ऊन के धागों
    से आपस में मिलकर
    बना होता है
    कोई निर्माण

    बहुत खूब!
    मुझे तो आपकी सर्वश्रेष्ठ कविता लगी यह ।

    सादर

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  2. वोह! आपका यह भी ब्लॉग है! हमने जाना ही नहीं बहुत अच्छा...लिखी हैं आप... प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....

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  3. वाह कितने कोमल भावो को संजोया है।

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  4. achha likha hai pallavi !!

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  5. आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट "नकेनवाद" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  6. वैसे ही कभी-कभी
    ज़िंदगी के बदलते मौसम
    में ज़रूरी हो जाता है
    शीतल पड़ी हुई
    ज़िंदगी को
    प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....

    सच है

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  7. bahut acchi rachna, very sweet...

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  8. बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

    संजय भास्कर
    आदत...मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  9. बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति!

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  10. ज़िंदगी के बदलते मौसम
    में ज़रूरी हो जाता है
    शीतल पड़ी हुई
    ज़िंदगी को
    प्यार भरे रिश्तों की गर्माहट देना .....

    sach me rishto me garmahat bani rahe, yahi sabse jaruri hai:)
    pyari si rachna!!

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