दो जोड़ी आँखों के बीच
नये प्रस्फुटन का आगमन
खुशियों के सपनों का
मीठा समंदर
परवरिश कि सख्त
किन्तु कोमल दीवारों
के बीच
नन्हे परिंदो की उड़ान
और फल पकने से पहले ही
अचानक
उस मीठे समंदर का,
खारा हो जाना
इससे बड़ी पीड़ा
कि पराकाष्ठा ओर
कोई हो सकती है क्या
यूँ तो दर्द
कि कोई परिभाषा
नहीं होती
मगर
एक फूल के
खिलने से पहले ही
उसका बिखर जाना,
सपनीली आँखों
में उन्ही सपनों कि किरचोँ
का शूल बन
उन्हीं आँखों में
चुभ जाना
एक असहनीय पीड़ा
को जन्म देता है
क्यूंकि दर्द, कैसा भी हो
दर्द ही रहता है.
है ना...!
पल्लवी
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