यह प्रतियोगिता का मेला है
मंज़िले सामने है
हौंसले बुलंद है
पथ बड़ा कटीला है
पर जरा संभल के भईया
यह प्रतियोगिता का मेला है
किसी के पैर में है जूता
किसी के पैर में है चप्पल
तो कोई बिना ही इस सभी के
चल पड़ा अकेला है पर
जीतता वही है यहाँ
जिसकी जेब में धेला है
हुनर की नहीं है
यहाँ बिसात कोई
सब धन का ही झमेला है
पार कर जो यह कांटो का पथ
जो मंज़िल अपनी पा गए
जानते हैं वह सहज
कितनों को उन्होने
गर्त में ढकेला है
यह प्रतियोगिता का मेला है .....
पल्लवी
ना,ना इसे प्रतियोगिता नहीं कहते,ना ही कि जिसकी लाठी उसकी भैंस ... अज्ञानता के महासागर में सब ज्ञान के भ्रम में हैं । एक यंत्र आ गया है हाथ में, और सबने उसे अलादीन का चिराग बना दिया है
ReplyDeleteहा हा हा सही कहा आपने अलादीन का चिराग सच में ऐसा ही तो है यह यंत्र।
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