Sunday, 10 November 2013

ज़िंदगी


यूं तो सभी की ज़िंदगी एक किताब है 
मगर तुम से मिलकर जाना कि 
तुम भी तो एक बंद किताब की तरह ही हो 
जिसकी परत दर परत, एक एक करके
मुझे हर एक पन्ने को खोलना है 
और न सिर्फ खोलना है, बल्कि पढ़ना भी तो है
हाँ यही तो चाहते हो न तुम भी 
कि मैं पढ़ सकूँ तुम्हारा मन 
तुम्हारी ज़िंदगी की किताब से 
ताकि तुम भी खुलकर महक सको, चहक सको 
किसी बंद कली की तरह
क्यूंकि अक्सर जलती हुई अगरबत्ती सी ज़िंदगी 
सुलगती हुई महकदार अगरबत्ती सी ही, तो हो जाना चाहिती है ना मेरे दोस्त ....      

9 comments:

  1. प्याज़ के छिलके है ये जिन्दगी ......
    शुभकामनायें!

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति.
    सादर.

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  3. जलकर महक के साथ धुआं भी छोडती जिंदगी !
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  4. खोल दो सब पन्ने इस जिंदगी के किताब के ... फिर महकने दो खुली हवा में ... इसे जरूरत है सहारे की ...

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  5. फटाफट पढ़ डालो इससे पहले लाइब्रेरी से कोई और इशू करा ले :-))

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  6. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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  7. कविता की पंक्तियों के भाव बड़े रुमानी है। खास मित्रों को बहुत अच्‍छी लगेगी ये कविता।

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  8. क्या बात है। यही सब से मुश्किल है। कोई पढ़ भी ले तो अर्थ उसके अपने होते हैं।

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  9. जिन्दगी क्या है ....यह एक यक्ष प्रश्न है ....लेकिन जब कोई किसी के करीब जाता है तो वह उसे समझने की कोशिश करता है ....उसकी चेष्टा यह होती हैं कि वह सामने वाले को खुशी दे सके यही उसका प्रयास होता है .....लेकिन किसी को पढ़ना इतना आसान तो नहीं है न ...क्योँकि जब हम किसी की जिन्दगी का एक पन्ना पढ़ना शुरू करते हैं तो ....एकदम से नया पन्ना हमारे सामने आ जाता है और यह जीवन की वास्तविकता भी है ....अच्छा लगा यह पंक्तियाँ पढ़कर ....!!!!

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