यूं तो सभी की ज़िंदगी एक किताब है
मगर तुम से मिलकर जाना कि
तुम भी तो एक बंद किताब की तरह ही हो
जिसकी परत दर परत, एक एक करके
मुझे हर एक पन्ने को खोलना है
और न सिर्फ खोलना है, बल्कि पढ़ना भी तो है
हाँ यही तो चाहते हो न तुम भी
कि मैं पढ़ सकूँ तुम्हारा मन
तुम्हारी ज़िंदगी की किताब से
ताकि तुम भी खुलकर महक सको, चहक सको
किसी बंद कली की तरह
क्यूंकि अक्सर जलती हुई अगरबत्ती सी ज़िंदगी
सुलगती हुई महकदार अगरबत्ती सी ही, तो हो जाना चाहिती है ना मेरे दोस्त ....
प्याज़ के छिलके है ये जिन्दगी ......
ReplyDeleteशुभकामनायें!
बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसादर.
जलकर महक के साथ धुआं भी छोडती जिंदगी !
ReplyDeleteनई पोस्ट काम अधुरा है
खोल दो सब पन्ने इस जिंदगी के किताब के ... फिर महकने दो खुली हवा में ... इसे जरूरत है सहारे की ...
ReplyDeleteफटाफट पढ़ डालो इससे पहले लाइब्रेरी से कोई और इशू करा ले :-))
ReplyDeleteकाफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteकविता की पंक्तियों के भाव बड़े रुमानी है। खास मित्रों को बहुत अच्छी लगेगी ये कविता।
ReplyDeleteक्या बात है। यही सब से मुश्किल है। कोई पढ़ भी ले तो अर्थ उसके अपने होते हैं।
ReplyDeleteजिन्दगी क्या है ....यह एक यक्ष प्रश्न है ....लेकिन जब कोई किसी के करीब जाता है तो वह उसे समझने की कोशिश करता है ....उसकी चेष्टा यह होती हैं कि वह सामने वाले को खुशी दे सके यही उसका प्रयास होता है .....लेकिन किसी को पढ़ना इतना आसान तो नहीं है न ...क्योँकि जब हम किसी की जिन्दगी का एक पन्ना पढ़ना शुरू करते हैं तो ....एकदम से नया पन्ना हमारे सामने आ जाता है और यह जीवन की वास्तविकता भी है ....अच्छा लगा यह पंक्तियाँ पढ़कर ....!!!!
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