सर्द हवाओं में मेरे साथ साथ चलती
दूर बहुत दूर तलक मेरे साथ सूनी लंबी सड़क
जिस पर बिछे है
न जाने कितने अनगिनत लाखो करोड़ों
सूखे पत्ते नुमा ख्याल
जिनपर चलकर कदमों से आती हुई पदचाप
ऐसी महसूस होती है, मानो यह कोई पदचाप नहीं
बल्कि किसी गोरी के पैरों की पायल हो कोई
जिसकी मधुर झंकार सीधा दिल पर दस्तक देती है
लेकिन जब देखती हूँ पत्तों से रिक्त पेड़ को
तो ऐसा लगता है कि जैसे ज़िंदगी अपने अंतिम सफर पर पहुँचकर
इंतज़ार कर रही है
उस पल का, जब हवा का कोई एक झोंका आए
और उन बचे हुए प्रतीक्षा में लीन
पत्ते नुमा प्राणों को अपने साथ ले जाये
ताकि फिर एक बार जन्म ले सके, एक नयी ज़िंदगी
और
जीवन के संघर्षों से आहात, एक पुरानी हो चुकी ज़िंदगी को विराम मिल सके....
बेहद अनूठा अहसास होता है यह .....प्रकृति का मानवीकरण आपके रचित पंक्तियों में हुआ है .....!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : मेघ का मौसम झुका है
वाह ! वाह …… बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteतस्वीर कविता के अनुरुप है और कविता एक सुन्दर स्वरुप है।
ReplyDeleteवाह .... बेहतरीन भाव लिये अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
गहन पल्लवी ......छू गयी तुम्हारी रचना
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