Wednesday, 19 June 2013

गंगा की व्यथा ....


मेरा नाम है गंगा
हाँ हूँ, मैं ही हूँ गंगा
वो गंगा
जिसे तुम ने
अपने सर माथे लगाया
बच्चों को मेरा नाम
लेले कर नहलाया,
जो कुछ भी मिला सकते थे
तुम, तुम ने मेरे आँचल
में वो सब कुछ मिलाया

न सोचा एक बार भी
मेरे लिए कि गंदगी
से मुझे भी हो सकती है
तकलीफ़, असहनिए पीड़ा
यह कहाँ का इंसाफ है
पाप तुम करो
और सज़ा मैं भुगतूँ ?
लेकिन फिर भी
मैं चुप रही...

मैंने आज तक कभी
कुछ न कहा
तुमने पूजा पाठ
और भक्ति के आडंबर
के नाम पर मुझे पल-पल छला
मैं चुप रही....
तुमने बीमारी से भरे शवों को
मुझ में घोला
मैं तब भी चुप रही...

यहाँ तक के तुम ने
मेरे जीवन, मेरे प्रवाह तक को
मुझ पर बांध बना-बना कर रोका
मैं तब भी चुप रही
कई बार मैंने तुम्हें
अपने संकेत दिये
कई बार चाह कि
तुम मेरी चुप्पी को समझो

मेरी पीड़ा को
स्वयं महसूस करो
चंद लोगों ने
शायद समझा भी मुझे
इसलिए गंगा सफाई अभियान भी चलाया
मगर हाये रह मंहगाई
उन चंद लोगों को भी
अमानुषता रही है खाई

मैं शिव के सर चढ़ कर बैठी
लेकिन एक दिन
उनके गले लग कर क्या रोली
तुम से सहा नहीं गया

अब जब फूटा है
मेरा कहर तो सहो,
सहना ही होगा तुमको
आज भुगतनी ही होगी
तुम्हें भी वही पीड़ा
जो आज तक तुम
मुझे देते आए हो

माना कि मैं माँ हूँ
मगर इसका अर्थ, यह तो नहीं
कि तुम अपने कुकर्मों से
मेरा अस्तित्व ,
मेरा वजूद ही मिटा डालो
मत भूलो अगर मैं एक माँ होने के नाते
तुम्हें जन्म दे सकती हूँ
तुम्हारे पापो को
अपने आँचल से धो सकती हूँ

तो मैं ही तुम्हें
पल भर में
घर से बेघर भी कर सकती हूँ
हाँ हूँ मैं गंगा,
जो गर चाहूँ तो
भगवान को भी
अपने जल से पवित्र कर दूँ
और जो ना चाहूँ
तो हज़ारो ज़िंदगियों को

पल भर में यूं ही मसल के खाक कर दूँ
अब भी कह रही हूँ मैं
चेंत सको तो चेंत जाओ
माँ के अंचाल में यूं जहर ना मिलाओ....           

18 comments:

  1. प्रकृति स्वयं ही बदला ले लेती है .... बहुत सार्थक रचना ।

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  2. सार्थक और खुबसूरत रचना

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  3. सार्थक भावों की अभिव्यक्ति आभार . यू.पी.की डबल ग्रुप बिजली आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN मर्द की हकीकत

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  4. भस्मासुर अपने आप चेता है कभी ,अपना नाश-नृत्य रोक देगा ऐसा लगता तो नहीं .सारे लक्षण सर्वनाश के दिखाई दे रहे हैं!

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  5. Bahut khoob bhabhi ji, sunder rachna hai

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  6. प्राकृति के इस रोद्र रूप को समझना होगा ... माँ गंगा के विलाप को भी समझना होगा ...

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  7. गंगा की वेदना को बखूबी उकेरा है

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  8. बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ! गंगा के धैर्य को जब इतना अधिक आजमाया जाएगा तो उसका कुपित होना अवश्यम्भावी है ! अब यह हाहाकार क्यों ...? सार्थक प्रस्तुति !

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  9. प्रकृति‍ का क्रोध समझ आता है

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  10. बहु बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति.....हैट्स ऑफ ।

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  11. अब भी न चेते तो परिणाम और भी दुखद हो सकते हैं...बहुत सारगर्भित, सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  12. प्रभावकारी प्रस्तुति.बधाई!

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  13. आपने माँ गंगा की वेदना को सार्थक रूप मेँ व्यक्त किया है । इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई । सस्नेह

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  14. गंगा की धाराओं को बहने दो अविरल
    नहीं तो जीवन बन जाएगा मुश्किल......अच्‍छी चिंता व्‍यक्‍त की है।

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  15. वाह! यहाँ तो आपने मेरे विचारों को पहले से ही विस्तार दे रखा है। साम्य देखकर मैं दंग रह गया >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/06/pralay-plavan.html

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