समंदर का दर्द तो सभी महसूस करते है
लेकिन क्या कभी किसी ने
उसके किनारे पड़ी रेत के दर्द को भी महसूस किया है
शायद नहीं,
क्यूंकि लोगों को तो अक्सर
सिर्फ आँसू बहाने वालों का ही दर्द दिखाई देता है
मौन रहकर जो दर्द सहे
वह भला कब किसको दिखाई दिया है
कुछ वैसा ही हाल है उस रेत का
जो समंदर के किनारे पड़ी रहकर
उसके सारे आँसुओं को दिन रात पीकर भी मौन रहा करती है
मगर फिर भी उसके बारे में कभी कोई कुछ नहीं सोचता
लोगों को अगर कुछ दिखाई देता है
तो केवल उस समंदर की खामोशी
रेत का मौन तो किसी को कभी ना दिखाई देता है
और ना ही कभी किसी ने उसकी खामोशी को सुनने की कोशिश ही की होगी कभी
अरे ज़रा तो सोचो ओ मुसाफिरों
जो खुद किसी के आँसुओं को अपने अंदर जज़्ब करते-करते
खुद खोखली हो चुकी है
वो भला किसी के सपनों के महलो को कैसे एक मजबूती दे सकती है
मगर फिर भी लोग उसके अंचल में गढ़ते हैं अपने सपनों के महल
और जब तक साथ देता है उसका सबल वो बनाने देती है अपने ऊपर वो महल
मगर संमदर की एक लेहर आकर जैसे उसके दर्द को जागा जाती है
और उस पर बना वो सपनों का महल टूट कर बिखर जाता है
आदत से मजबूर इंसान बड़ी बेरहमी से
उसके बचे हुए अंशों पर अपने पैरों की ठोकर से वार करता हुआ निकल जाता है
बिना एक बार भी यह सोचे
कि कुछ देर पहले यही वो रेत थी
जिसने उसे अपने सपनों को कुछ पल के लिए ही सही
गढ़ने का ,उसे साकार रूप में देखने का एक मौका दिया था...
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
पल्लवी जी आप की ये पोस्ट पढ़ कर किसी का एक शे'र पेश करता हूँ ....
ReplyDeleteमुहँ की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द जाने कौन
आवाजों के शहरों में
ख़ामोशी को पहचाने कौन .....?
शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर बात कही है आपने .एक सार्थक सन्देश देती प्रस्तुति आभार . मुलायम मन की पीड़ा साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
ReplyDeleteबहुत संवेदनापूर्ण !
ReplyDeleteरेत सा समय फिसल कर वापस नहीं आता
ReplyDeleteखारा समुन्द्र भी प्यासे की प्यास नहीं बुझाता
बहुत सुंदर -अभिव्यक्ति
बहुत ही बढ़िया ..सही कहा मौन रहकर दुःख सहना बहुत बड़ी बात है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअहसासों को उद्वेलित करती बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteगहरे एहसास लिए है आपकी रचना ... भावपूर्ण ... रेट के एहसास के साथ जीवन के दर्द को समेटने का प्रयास ... बहुत उम्दा ...
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव लिए हुए आपकी यह रचना बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित करती है । बधाई । सस्नेह
ReplyDeleteरेत के महलों के भी आंसू हैं
ReplyDeleteबनानेवाले उसे ये भी सोचें
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