कभी यूं भी होता है कि
अक्सर किसी नदी किनारे शाम के वक्त
उस नदी के निर्मल जल में पैरों को डालकर बैठना
मुझे बहुत अच्छा लगता है
न सिर्फ बैठना बल्कि
घर लौटते हुए परिंदो के करलव के साथ
देखना उस सूर्य को अस्त होते हुए,
ना जाने क्यूँ उस अस्त हुए सूर्य को देख
अठखेलियाँ करता है मेरा मन
बिलकुल उसी सूर्य की आठखेलियों की भांति
जैसे वह सूर्य बदलता है अपना रंग
उस आकाश गंगा में नहा कर
खुद को शीतल करने के लिए,
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उस वक्त बिखर जाते हैं
उस विशाल आकाश गंगा में भी नजाने कितने ही रंग
कभी सिलेटी, तो कभी नीला, तो कभी गुलाबी सा मोहक रंग
तब उन रंगों को देखकर
मेरे मन के अंदर भी बिखर जाते है
भांति-भांति के रंग,
कभी एक मुस्कुराहट, तो कभी आँखों में नमी
कभी क्रोध की ज्वाला, तो कभी आत्म संतुष्टि का भाव
ठीक वैसे ही
जैसे आकाश गंगा में अस्त होता हुआ सूर्य कई रंग बदलता है,
उस वक्त ऐसा प्रतीत होता है मानो ,
जैसे यह आकाशा गंगा का रंग नही,
यह रंग है हमारी ज़िंदगी का,
क्यूंकि हमारी ज़िंदगी भी तो,
एक नदी के प्रवाह की तरह ही बहती चलती है,
शुरुआत में एक अबोध शिशु जैसी
निर्मल, कोमल, निश्छल
लेकिन समय की एक हलचल
हमारी ज़िंदगी की नदी को
एक नयी दिशा देने में सक्षम सिद्ध होती है
और उस हलचल में हिचकोले खाता हमारा अस्तित्व
कभी वियोग, कभी मिलाप, या कभी विछोह का संताप
सहते हुए बस डूबता उभरता रहता है
और एक दिन यह ज़िंदगी की नदी भी
जा मिलती है उस सागर में
जहां से फिर कभी कोई वापस नहीं आता....
आकाश में बिखरे हुए ,कई अनोखे रंग
ReplyDeleteजीवन एक नदी है ,मिलती सागर संग
मिलती सागर संग,लौटकर फिर न जाए
नया रूप धर दुनिया में,फिर वापस आए
जीवन के यही रंग है,करो न मन को निराश
रात-दिन होता जीवन में ,रहता वही आकाश,,,,,,
पल्लवी जी,,,बहुत दिनों बाद पढकर अच्छा लगा,,,आभार
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
बहुत ख़ूबसूरती से अपने भावों को पिरोया है आपने, बधाई |
ReplyDeleteसहते हुए बस डूबता उभरता रहता है
ReplyDeleteऔर एक दिन यह ज़िंदगी की नदी भी
जा मिलती है उस सागर में
जहां से फिर कभी कोई वापस नहीं आता....
BEAUTIFUL LINES AND FEELINGS
आप सभी का आभार ...:) कृपया यूँ ही संपर्क बनाये रखें...
ReplyDeleteजीवन-नदी के प्रवाह के साथ-साथ चली है यह कविता. सुंदर.
ReplyDeleteएक दिन यह ज़िंदगी की नदी भी
ReplyDeleteजा मिलती है उस सागर में
जहां से फिर कभी कोई वापस नहीं आता....
बहुत ही बढिया प्रस्तुति ...आभार
पल्लवी जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'पसंद' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 25 अगस्त को 'सूर्यास्त और मेरा मन...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए आभार।
Deletenatural flow of life beautiful lines
ReplyDeleteऔर एक दिन यह ज़िंदगी की नदी भी
ReplyDeleteजा मिलती है उस सागर में
जहां से फिर कभी कोई वापस नहीं आता....
ये तो जीवन की रीत है .. उस महासागर में सभी को जाना है एक दिन ... भावमय रचा है इस काव्य का केनवास ...
जहां से फिर कभी कोई वापस नहीं आता....
ReplyDeleteबहुत ही बढिया प्रस्तुति ...आभार
जिन्दगी का रंगीन भावमय चित्रण
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