Sunday, 29 April 2012

ज़िंदगी


ज़िंदगी एक ऐसा शब्द जिसके हर नज़र में एक अलग ही मायने है 
कोई कहता है ज़िंदगी एक किताब है 
तो कोई कहता है बारिश का पानी 
कोई कहता है आग का दरिया
तो कोई कहता है सागर का पानी 
कोई सागर की लहरें तो कोई तेरी मेरी कहानी 
जैसे इस ज़िंदगी को देखने के लिए 
परखने के लिए जितनी आँखें उतने ही दृष्टिकोण 
मगर आज तक कोई न समझ सका है 
इस ज़िंदगी का फलसफा
आखिर यह ज़िंदगी है क्या एक सवाल ?
जिसके न जाने कितने जवाब 
मुझे लगता है ज़िंदगी एक मकान की तरह है
जिसमें आतित की यादों के कई सारे झरोखे हैं 
किसी भी एक खिड़की या झरोखे में खड़े होकर देख लो 
एक अलग ही दुनिया नज़र आती है 
कभी उस दुनिया में लौट जाने को मन करता है 
तो कभी-कभी उस ही खिड़की के दरवाजे 
हमेशा के लिए बंद कर देने को भी मन करता है
कभी यूं भी होता है कि  
उसी झरोखे के बंद किवाड़ के नीचे से बहती हुई हवा सी 
कोई मीठी सी याद छुपके से आकर आपके होंठों पर 
एक मोहक सी मुस्कान बिखेर जाती है 
तब अक्सर उस मोहक सी यादों के बीच हम सुन
नहीं पाते उस ज़िंदगीनुमा मकान के दरवाजे के बाहर दस्तक देती
भविष्यवाणियाँ को ,
जो उस वक्त निर्धारित कर रही होती है हमारा भविष्य   
तो कभी यूं भी होता है कि उस ज़िंदगी के मकान के बाहर ही 
उमड़ रहे होते है कुछ अंधड़ जिनकी आवाज़ 
हमें झँझोड़ कर वर्तमान में ला खड़ा करती है
लेकिन तब भी वो हिला नहीं पाती उस ज़िंदगी के मकान को कभी 
जिसकी नींव होती है खुद ज़िंदगी
उम्मीद, आस्था और विश्वास 
जिसके आधार पर खड़ा होता है
एक नहीं कई ज़िंदगीयों का एक मकान.....      

10 comments:

  1. ज़िन्दगी को आपने एक अलग परिभाषा दी है। अच्छी लगी।

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  2. जिन्दगी अलग२ मायने बताती सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  3. जिसकी नींव होती है खुद ज़िंदगी
    उम्मीद, आस्था और विश्वास
    जिसके आधार पर खड़ा होता है
    एक नहीं कई ज़िंदगीयों का एक मकान.....

    ....बहुत सच कहा है...कोमल अहसासों से सजी सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...

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  4. लेकिन तब भी वो हिला नहीं पाती उस ज़िंदगी के मकान को कभी
    जिसकी नींव होती है खुद ज़िंदगी
    उम्मीद, आस्था और विश्वास
    और फिर यही सच है ....
    बहुत खूबसूरत रचना

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  5. ज़िंदगी
    दिन का शोर है
    जो रात की
    खामोशी में
    डूब जाता है ....


    सुंदर प्रस्तुति

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  6. Sach me apne jindagi ko bahut yatharthparak dhang se aur behad khubsurati ke sath vyakhyayit kiya hai....badhiya rachna...
    Hemant

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  7. जीवन यही है ...
    शुभकामनायें पल्लवी !

    मेरी रचना क्यों लिखी गयी ?
    यह मुझको याद नहीं शायद ,
    हाँ, कवर पेज से शुरू हुई ,
    है ,एक कहानी जीवन की !
    क्या मतलब बतलाऊँ तुमको, जो चाहे अर्थ लगा लेना
    संकेतों से इंगित करता, बस यही कहानी जीवन की !

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  8. कोई कहता है ज़िंदगी एक किताब है
    तो कोई कहता है बारिश का पानी
    कोई कहता है आग का दरिया
    तो कोई कहता है सागर का पानी
    कोई सागर की लहरें
    तो कोई तेरी मेरी कहानी

    सच, बड़ी उलझन तो है ज़िंदगी के अर्थ को ले'कर…

    आदरणीया पल्लवी जी
    नमस्कार !

    बहुत श्रम से आपने अपनी कविता में ज़िंदगी को व्याख्यायित करने का प्रयास किया है साधुवाद !
    आपका नज़रिया भी सही है
    ज़िंदगी एक मकान की तरह है
    (अच्छा निष्कर्ष निकाला आपने )
    जिसकी नींव होती है खुद ज़िंदगी
    उम्मीद, आस्था और विश्वास
    जिसके आधार पर खड़ा होता है
    एक नहीं कई ज़िंदगियों का एक मकान.....


    मैंने कहा है -
    ज़िंदगी दर्द का फ़साना है !
    हर घड़ी सांस को गंवाना है !

    जीते रहना है , मरते जाना है !
    ख़ुद को खोना है , ख़ुद को पाना है !

    चांद-तारे सजा’ तसव्वुर में ,
    तपते सहरा में चलते जाना है !

    जलते शोलों के दरमियां जा’कर ,
    बर्फ के टुकड़े ढूंढ़ लाना है !

    ©copyright by : Rajendra Swarnkar

    पूरी रचना यहां पढ़ी होगी आपने…
    ज़िंदगी दर्द का फ़साना है !

    मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. सुन्दर भावपूर्ण रचना...बहुत बहुत बधाई...

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  10. लेकिन तब भी वो हिला नहीं पाती उस ज़िंदगी के मकान को कभी
    जिसकी नींव होती है खुद ज़िंदगी
    उम्मीद, आस्था और विश्वास
    जिसके आधार पर खड़ा होता है
    एक नहीं कई ज़िंदगीयों का एक मकान.....

    ......बिलकुल सच...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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