Monday 27 February 2012

क्या इसको ही कहते हैं प्यार ....


जब भी कभी किसी को प्यार होता है 
तब हमेशा ही कोई अनदेखा, अंजाना 
सा चेहरा बिन बांधे कोई डोर ऐसे खींचता है अपनी ओर 
जैसे जन्मो जन्मांतर का रिश्ता हो उससे 
जो अनेदेखा अंजाना होते हुए भी 
बहुत ही अपना सा नज़र आता है।   

जिसके जीवन मे आने के बाद
खेतों में लहराई सरसों कल परसों में बीते बरसों
सी हो जाती है ज़िंदगी चारों और बस खुशबू ही खुशबू 
हुआ करती है मन महका-महका सा रहा करता है 
बेवजह होंटों पर मुस्कान खिली रहती है 
चेहरे और स्वभाव पर एक अनोखी आभा दमकती है।
  
हर मौसम खुश गवार सा नज़र आता है 
प्रकृति के कण-कण से प्यार हो जाता है
प्रकर्ति ही नहीं बेजान आईने से भी प्यार हो जाता है 
खुद को ही बार-बार देख मन बाग-बाग हो जाता है  
आखिर ऐसा भी क्या छुपता होता है 
उस अनदेखे अंजाने से चहरे में, 
जिसके गुम हो जाने के बाद....

ज़िंदगी रेगिस्तान सी नज़र आती है 
इतनी मायूस हो जाती है ज़िंदगी कि 
फिर जीने की कोई चाह ही बाकी नहीं रह जाती है  
जीने के लिए खुशियों में भी ग़म दिखाई देता है 
मंदिर में भी भगवान नहीं पत्थर दिखाई देता है
कल तक जो हवा का एक झोंका किसी के गालों को छूकर 
अपने नसीब पर इतराया करता था। 
  
आज वही हवा थेपडा बन कर थप्पड़ मारती है 
यह कैसी नदी बस गई है अब आँखों में 
जिसे अपना सागर ही नहीं मिलता कहीं 
बिखरते तो अब भी है, फूल कई किसी के चहरे पर कहीं 
मगर अफसोस की उन फूलों की जगह अब मोतीयों ने ले ली है।
ऐसा क्यूँ होता है बार-बार क्या इसको ही कहते है प्यार ?

जिसके बारे में कहा जाता है कि 

"हर इंसान को अपनी ज़िंदगी में 
एक बार प्यार ज़रूर करना चाहिए 
क्यूंकि प्यार इंसान को बहुत अच्छा बना देता है।"            

Tuesday 21 February 2012

फलसफ़ा ज़िंदगी का


यूं तो शायद आज आपको मेरी यह रचना पढ़कर 
ऐसा लगे जैसे यह तो वही बात हुई "ढ़ाक के तीन पात" 
मगर क्या करू यही सच है, समंदर की लहरों 
और साहिल से शुरू हुआ यह अभिव्यक्ति का कारवां 
आज फिर समंदर पर ही आ गया है 
कोशिश तो बहुत की मैंने ,की इस समंदर से निकल कर
कुछ लिखूँ मगर मेरे मन को मेरे आँखों को शायद 
और कोई नज़ारा रास ही नहीं आया कहीं इसलिए 
आज एक बार फिर 
समंदर और इंसानी भावनाओं से जुड़ी 
कुछ अपने आप से की हुई बात, कुछ मूलाकाते...
पूर्णिमा की रात जब चाँद आपने पूरे शबाब पर होता है 
तब इस समंदर की लहरे भी धारण कर लिया करती है
आवरण श्वेत चाँदी की मीन का जो मचल-मचल कर 
स्वागत कर रही होती हैं उस पूनम के चाँद का  
क्यूंकि उस चाँद की चंद किरणों ने दिया है नव जीवन उन लहरों को 
खुलके जश्न मनाने का, के तभी बिना किसी आहट  के 
धीरे से रात के आँचल से निकल 
जब सूर्य फैला देता है अपनी स्वर्णिम किरणे उन्हीं 
मतवाली लहर नुमा मीनो पर तो जैसा अचानक की बदल 
जाता है सारा नज़ारा और वो श्वेत चाँदी की मीन सहसा  
बदल जाती है सोने की मीन मे 
कितना अदबुद्ध होता है यह मंज़र जैसे यह लहरे लहर न रहकर 
मीन नज़र आने लगती है जैसे इंसान का मन पल में 
परिस्थिति के मुताबिक खुद को बदल ही लेता है  
ठीक वैसे ही यह लहरे रात दिन एक नया आवरण ओढ़
बहलालीय करती है अपना मन 
या शायद उन चाँद और सूरज का मन  
और देखा देती है एक ही पल में वो सारा नज़ारा वो सारे मंज़र 
इंसानी ज़िंदगी के, कभी आवेग 
तो कभी अलहड़ जवानी यह पानी की रवानी
कुछ गहरे अहसास तो कुछ छोड़े हुए अनमोल पल 
समंदर की गोद से निकाला हुआ कोई सच्चा मोती 
हो जैसे सच्चा प्यार का कोई अंश कभी चाँदी तो कभी 
सोना कभी मोती ,तो कभी लहरों की गूंज में 
गूँजता सन्नाटा हो जैसे किसी के मन को अंतमर्थन 
और भी नजाने क्या-क्या छुपा है सागर किनारे  
जिसे ढूँढने और समझ ने 
में ही गुज़र जाती है तमाम ज़िंदगी 
और फिर भी समझ नहीं पाते लोग फलसफा जिंदगी का....     

Thursday 16 February 2012

इंतज़ार ....

कभी दोस्ती का दिन, तो कभी आलिंगन का दिन,
तो कभी प्यार के इज़हार का दिन  
रोज़ कोई नया दिन आता है और आकर चला भी जाता है 
मगर,यदि कोई नहीं आता तो वह हो केवल तुम
जैसे एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार,
जिसमें दिन रात जला करता है मेरा मन,कभी सोचा है 
घंटों समंदर के किनारे खड़े होकर जब आती-जाती हर लहर 
को देखकर मन ही मन उठती है कोई कसक तब कैसा लगता होगा मुझे 
शायद तुमने कभी महसूस ही न किया हो, 
ईर्ष्या होने लगती है, इन सागर की लहरों से मुझे और ऐसा लगता है    
मुझसे तो कहीं ज्यादा अच्छी है इस साहिल की किस्मत  
जिसे समंदर के प्यार की लहरों में भीगने के 
लिए कभी नहीं गुजरना पड़ता इस "इंतज़ार" की पीड़ा से 
मगर इस दर्द और जलन के बावजूद भी   
मुझे गुरूर है अपने प्यार पर 
कि मैंने जिससे भी प्यार किया पूरी शिद्दत से प्यार किया। 
क्यूंकि प्यार खुदा की वो नेमत है, जो हर किसी को नहीं मिलती 
बहुत किस्मत से लोगों को प्यार मिलता है।  
मुझे भी मिला, मगर इंतज़ार के रूप में क्या पता यही मेरे प्यार की  परीक्षा हो शायद 
इसलिए मैंने अपने प्यार का नाम ही रख दिया है "इंतज़ार"     
जानते हो, तुम्हारे इंतज़ार में मेरी क्या हालत होती है,
कैसे जानोगे, तुमने तो किया ही नहीं कभी किसी का इंतज़ार
तुम्हें तो बिन मांगे सब मिला है कुदरत से, तुम क्या जानोगे 
कि इंतज़ार का यदि, अपना ही एक अलग मज़ा है 
तो अपने आप में एक पीड़ा भी है इंतज़ार
खैर जाने दो तुम नहीं समझोगे     
कैसा लगता है जब किसी का जानो दिल से हो "इंतज़ार"  
ओर वो संगदिल ही संग न हो, तो कैसा लगता है, तब    
आँखों मे नींद नहीं होती और शून्यता का गहरा समुंदर 
मन मे उतर ज्वारभाटे की तरह प्रेम की दीवारों से टकरा कर 
मेरे गुरूर को चूर-चूर कर देने का पुरजोर प्रयास करता रहता है ,
पता है क्यूँ ,क्यूंकि मेरे मन के अंतस में उठती हुई 
भावनाओं की लहरों को भी पाता है, कि मुझे कितना गुरु है अपने प्यार पर
तभी तो कहीं न कहीं भरोसा भी है मुझे खुद के प्यार पर 
वो भी इस भावना के साथ, कि बिना आग में तपाये 
तो सोने की भी परख नहीं होती 
तो मैं क्या चीज़ हूँ,और फिर आग तो आग ही है 
फिर चाहे वो सोने को तापये या मन को 
तपने पर तो जलन होगी ही न !!! फिर भी 
मुझे विश्वास है एक न एक दिन तुम ज़रूर आओगे 
और तब ख़त्म हो जाएगा मेरा यह इंतज़ार 
कहती तो मैं आज भी कुछ नहीं तुम से मगर हमेशा ही जला है, मेरा मन 
मेरा अस्तित्व, मेरा वजूद तुम्हारी प्रतिक्षा की इस अग्नि में सदा ही
इसलिए अपने इस इंतज़ार को ही मानकर तस्वीर तुम्हारी
अपने मन की बातें कर लिया करती हूँ क्या करूँ हूँ तो 
आखिर मैं भी एक इंसान ही इसलिए डर भी लगता है 
कभी-कभी कि कहीं ऐसा न हो   
कि मेरे इस इंतज़ार में केवल मौन ही शेष रह जाये     
इसलिए अब तो बस एक ही गुजारिश है तुमसे 
कि हो सके, तो इतना ख्याल रखना 
इतनी भी देर ना कर देना आने में
की मेरा इंतज़ार तुम्हारा इंतज़ार बन जाये  
और मन के अंदर के ज्वारभाटे के साथ-साथ 
यह शरीर रूपी समंदर भी शांत हो जाए 
जिसमें भावनाओं की लहरें उठा करती थी कभी 
वो खुद समंदर में मिल विलीन हो जाये 
और फिर शेष रह जाये वही मौन ,निशब्द ,स्तब्ध 
इंतज़ार !!!! 

Monday 13 February 2012

Happy Valentine's Day Friends....

फरवरी यानि प्यार का मौसम    
गुलाबों की गुलबियत लिए
गुलाबी-गुलाबी सा प्यार,
लाल-पीले गुलाबों के रंग सा रंगीन प्यार   
फूलों की खुशबों से महकता प्यार 
चौकलेट की मिठास सा मीठा-मीठा प्यार 
भोले से दिखने वाले "टेडी बीयर" सा मासूम प्यार 
तोहफों के आकर्षण सा आकर्षित करता हुआ सा प्यार 
यानि प्यार एक रूप अनेक,
तो कौन कहता है
प्यार सिर्फ रूहानी होता है,
कौन कहता है कि, प्यार सिर्फ जिस्मानी होता है 
अरे दोस्तों प्यार तो बस सिर्फ प्यार होता है 
फिर चाहे वो क्षणिक हो या अनंत अपार 
है तो वह भी प्यार,
फिर उसे चाहे कोई ख़ुशबू कहे, 
या 
खामोशी  
जो की सुनती है, कहा करती है,
जितनी नज़रें उतने प्यार के रूप 
और उसके पीछे केवल एक ही शब्द
एक ही एहसास,एक ही जज़्बात
प्यार,
तो कर दो आज सभी अपने प्यार का इज़हार,
क्यूंकि आगया है प्यार का त्यौहार
जो कि आज है  
क्या पता, कल हो न हो,
इसलिए   
happy valentine's day friends.... :)      

Thursday 9 February 2012

दर्द...


दिल के ज़ख़्मों से बूंद-बूंद रिस्ता दर्द 
जब कभी,जज़्ब होता चला जाता हैं कहीं 
 जैसे सुखी मिट्टी में पानी 
और परत दर परत जमता चला जाता है वो दिल का दर्द, 
जैसे किसी चीज़ पर चढ़ाई 
गई मिट्टी के लेप की कई परतें जो एक दिन 
कई परतों के चढ़ाये जाने कारण आ गिरती हैं नीचे
वैसे ही एक दिन जब दिल के दर्द की परतें 
छोड़ती हैं अपनी जड़ें और गिरती हैं 
मन के धरातल पर कहीं
तब आता है एक सैलाब और फूटता है एक ज्वालामुखी 
और उसमें से निकलती हैं, मरी हुई भावनाओं की 
कुछ लाशें, कुछ कुचले हुए जज़्बात 
और तड़पता,सिसकता हुआ सा खुद का वजूद...     

Monday 6 February 2012

मिर्च मसाला ...


क्या कहूँ लग रहा है आप सब मुझ पर पढ़कर शायद हसेंगे कि यह क्या कुछ भी लिख दिया है। मगर क्या करूँ जो महसूस किया उसे लिखे बिना रह भी नहीं सकती।

लाल मिर्च और नमक आपस में 
मिल कर बने एक मसाला 
कभी इस मसाले को खाया है 
संतरे या मौसमी के साथ 
या फिर सूखे हुए बेर या इमली के साथ 
कितना मज़ा आता है ना चटपटा स्वाद 
जैसे अंदर तक एक स्फूर्ति सी भर देता है 
फलों के साथ फलों का रस बढ़ाता सा मसाला 
खाने मे स्वाद भी लाता है यही एक मसाला 
कभी-कभी बहुत सी बातों में भी जान डाल देता है 
यही एक मसाला  
कभी सोचा है यदि सारे मसालों में 
यह दोनों ही ना हों तो भला 
क्या स्वाद रह जायेगा किसी भी खाने में
सब कुछ फीका बेस्वाद, बेजान सा खाना 
और तब न उस खाने में होगा 
कोई रूप, न रंगत, न निखार 
जैसे हो कोई मरीजों का खाना
 फिर एक पल एक खयाल आया 
ज़िंदगी भी तो एक पकवान की तरह ही है न 
अगर इसमें भी न हों सुख-दुख के खट्टे मीठे 
अनुभव या संघर्ष और सफलता या असफलता का  कोई स्वाद 
तो भला कितने बेस्वाद सी होगी न
 यह ज़िंदगी, उसमें भी किसी बेजान 
से खाने की तरह न कोई रंग होगा
न स्वाद ,न रंगत ,न निखार
बस एक मरीज के खाने सी 
बेस्वाद सी बिना नमक मिर्च की ज़िंदगी  
जैसे ज़िंदगी-ज़िंदगी नहीं मजबूरी हो कोई  
जिसे बस जीने के लिए जीना हो एक बार ..... 
    

Friday 3 February 2012

सत्यम शिवम सुंदरम ...


कहते है प्यार अमर होता है
प्यार करने वाले खुद मिट जाते है
मगर उनका प्यार कभी नहीं मिटता
हो सकता है यही सच भी हो
वरना क्यूँ जपते लोग नाम
हीर राँझा ,या सोनी मिहिवाल का
अगले पिछले जन्म का तो पता नहीं
हमे तो आज में जीना है
क्यूंकि आज जो है वही सत्य है
और सत्य ही शिव है
लेकिन अगर सत्य ही शिव है
तो फिर वो शिव कि तरह
सुंदर क्यूँ नहीं होता
शिव जिनका न कोई आदि है ना अंत
बिलकुल प्रेम कि तरह
तो फिर सत्य क्यूँ
प्रेम की तरह कोमल नहीं होता...जैसे मेरे और तुम्हारे जीवन का यह एक कड़वा सच
....................................................................................................
क्या हुआ जो, आज हम तुम साथ नहीं है
कभी तो साथ थे न हम
आज भी उन्हीं यादों के सहारे
गुजार जाएगी यह ज़िंदगी
न कभी मैं अकेली हो सकती हूँ
तुम्हारे बिना भी, और
न तुम ही कभी तन्हा हो सकते
हो मेरे बिना फिर हम चाहें न चाहें ....
मैं नहीं कहती की तुम बेवफा हो
और आज तुम जहां हो
उसके जिम्मेदार तो तुम खुद हो ,
क्यूंकि वक्त के हाथों फर्ज़ का हाथ
थमकर तो मैंने खुद बेफाई की तुमसे
और अब जब हम दोनों
की ज़िंदगी की राहें ही
अलग हो चुकी है
तो किसी को कोई हक ही कहा
रह जाता एक दूसरे को बेवफा कहने का
माना कि फर्ज़ की रहा में
मेरा कुछ फर्ज़ तुम्हारे लिए भी था
मगर शायद वो फर्ज़ उस
फर्ज़ से कम ही था जिसे निभाने के लिए
मैंने छोड़ दिया उसे
जो मुझे दिल से अज़्ज़िज़ था
जानते हो क्यूँ
क्यूंकि तुम से पहले अधिकार है
मुझ पर उनका जिन्होंने मुझे दिया
मेरा अस्तित्व तुम्हारी ज़िंदगी में आने के लिए .....
   
 

Wednesday 1 February 2012

क्या यही प्यार है


कभी सोचा है कि एक सितारों भरी रात से
कहीं ज्यादा रोशनी होती है एक चाँदनी रात में
क्यूँ हजारों की भीड़ में से
केवल एक चेहरा उतर जाता है
अंतस: मैं हमेशा के लिए फिर उसके बाद
भले ही कितने भी खूबसूरत चेहरे क्यूँ ना आए
ज़िंदगी में मगर उस एक चेहरे की परछाईं
जैसे छप कर रह जाती है
कागज़ से कोरे मन पर सदा के लिए
जैसे कोरे कागज़ पर
लिखावट के रूप मे स्याही
जज़्ब होती चली जाती है निरंतर
वैसे ही यह पागल मन
सारी ज़िंदगी बस उस एक
एहसास को नग्मा बना गुनगुनाया
करता है मन
"यूँ हीं कोई मिल गया था सारे राह चलते-चलते"
क्यूँ कोई भी चीज़ चाहे हो कोई मनमोहक गीत
या फिर किसी नाटक या कथा का कोई पात्र
जिसे देखकर, सुनकर या पढ़कर ऐसा लगता है
जैसे बस एक यही वह इंसान था जो इस पात्र
को इतनी शिद्दत से निभा सकता था
अगर कोई दूसरा होता,तो शायद इस पात्र के
साथ वैसा इंसाफ नहीं कर सकता था
या फिर हो असल ज़िंदगी में
आने वाला पहले प्यार का वह शौख झोंका
जो हर दिल को छू जाता है कभी न कभी
और उस एक झोंके के बाद कोई और हवा रास नहीं आती
भले ही वो कितनी भी सुहानी क्यूँ न हो
और हम उस मीठी सी याद में खोकर
अक्सर मौन से हो जाते है
क्या मौन ही एकमात्र जवाब है
दिल में उठते हुए एहसासों का
क्या अकेले में याद कर उन हसीन लम्हों को
यूँ मौन रहकर मुस्कराना प्यार है
या फिर उन एहसासों को ना चाहते हुए भी मारकर
वक्त की सूली पर टांग, फर्ज़ का नाम देकर मुकर जाना
प्यार है, या फिर एहसास ही नाम है इस प्यार का....