Wednesday 22 July 2020

हम तुमको ना भूल पाये हैं ~


बहुत उदास शामें है इन दिनों
मायूसियों के साये है
फिर भी हम तुम को ना भूल पाए है
है फ़िज़ा इन दिनों कुछ ज्यादा ही ग़मगीन
के हो रहा है रुखसत हर रोज़ कोई अपना ही मेहजबीन
गर, घर खुदा का भी है तो क्या हुआ
हो रहा है दर्द के दिल है गम से फटा हुआ
जनाज़ों की बस्ती है पर किसी के ना सरमाये है
हम फिर भी तुम को ना भूल पाये हैं....पल्लवी

Thursday 16 July 2020

~चिराग~



चंद उदास शामें है और चंद स्याह रातें
चारों ओर एक अजीब सी खामोशी पसरी है
न पंछियो का कोई शोर है ना
पार्क में खेल रहे बच्चों की कोई चहचाहट
बस चंद मानसून की बारिशें है
और कुछ तुम्हारी बे पनहं मुहोब्बत
पर, ढूंढने पर भी एक खुशी का मोती नही मिलता
इस ग़म के सागर में गोते लगते बार बार
जहां देखो बस एक विलाप है
जिसके हैं अनगिनत आधार
आखिर क्यों चले गए तुम
यह दुनिया छोड़कर मेरे यार
अब तुम्हारे बिना यह जिंदगी है
महज़ एक जलता हुआ चिराग....

Tuesday 23 June 2020

~आखिर क्यों ~?


कुछ भी तो नहीं बदला प्रिय  
हर रोज़ सूरज यूं ही निकलता है
शाम यूं ही ढलती है
हवाएँ भी रोज़ इसी तरह तो चलती है, जैसे अभी चल रही है
पक्षियों का करलव भी नहीं बदला
हाँ यह बात ओर है कि अब उस गुन गुनाहट में मुझे वह मधुर सुर सुनाई नहीं देते
तुम्हारे घर के बाहर का भी तो यही नज़ारा होगा ना
बस इस नज़ारे को देखने वाली
इसे महसूस करने वाली तुम्हारी वो निश्चल नज़र नहीं है
सच तुम्हारी कमी बहुत खल रही है, न सिर्फ मुझे बल्कि हर उस व्यक्ति को
जिसने तुमसे प्यार किया, तुम्हें चाहा दिलो जान से
लेकिन दुनिया फिर भी चल रही है
 शायद इसी को कहते हैं
“शो मस्ट गो ओन”    
कहीं कोई परिवर्तन, कहीं कोई बदलाव नहीं आया तुम्हारे चले जाने से
फिर तुम क्यूँ चले गए प्रिय, आखिर क्यों....?
तुम्हारी याद हर पल आती है
दिल को तड़पती, आँखों को रुलाती है, रातों को जगाती है
केवल तुम्हारी ही तस्वीर, इन डब डबाई आँखों में जगमगाती है   
पल पल यह दिल कहता है, काश समय को मोड़कर वापस ला सकते हम
तो आज न तुम तन्हा होते न हम .... 
अब तो बस एक ही दुआ है जहां भी रहो खुश रहना प्रिय ईश्वर तुम्हें वहाँ शांति और सुकून प्रदान करे  

Saturday 30 May 2020

~अधूरापन~



तप्ती गरमी और कड़ाके की ठंड को सहती हुई यह वादियाँ ना जाने कितनी सदियों से प्रतीक्षा कर रही है उस आसमान के एक आलिंग कि, की जिसे पाकर मनो मोक्ष मिल जायेगा इन्हें

इनकी पथराई आंखों मे भी लहराए गा कभी जज़्बातों का पानी और फिर खेलेगा एक पत्थर का फूल इनके आँचल में,

पाषाण युग से आज तलक सिर्फ आसमान के एक बोसे मात्र से, झूम उठता है इनका मन, झट हरियाली की चुनर ओढ़ बन जाती है, यह दुल्हन

बेचारी मासूम है बहुत, नही जानती यह क्षणिकाएं नही बन सकती उनका जीवन यह महज़ एक छलावा है उन आवारा बादलों का, जो एक ही तीर से जाने कितने शिकार कर लेना चाहते हैं

इन वादियों के दामन में तो वह भी नही टिकना चाहते, टिक भी नहीं सकते, बह जाते हैं नीचे, तलहटी की ओर के आसान नही होता तपो भूमी पर यूँ हक जताना किसी का, क्योंकि प्रेम एक तपस्या ही तो है

अधूरेपन की पूर्ण परिभाषा प्रेम ही तो है, अधूरे शब्दों में समावेश प्रेम का ही तो है, फिर चाहे वो प्यार हो या त्याग आखिर प्रेम ही तो है, इन अधूरी वादियों का तप प्रेम ही तो है,

प्रेम जो है एक आस, जैसे मीरा की प्यास, राधा का इंतज़ार, तुलसी का प्यार, आखिर यह सब अधूरा होकर भी पूर्ण ही तो है,

इसलिए कभी अधूरे पन से निराश न हो, है मानव! जो अधूरे हैं , सही मायनो में वही पूरे हैं, मंजिल को पा लेना केवल  प्रेम नही होता, बल्कि सारी ज़िन्दगी एक अतृप्त सी प्यास के पीछे भटकना ही प्रेम होता हैमाना के जीवन

पूर्ण नही होता प्रेम के बिना, लेकिन प्रेम सच्चा वही है, जो कभी पूर्ण नही होता, जो ना बाटने से घटे न मारने से मरे, बिल्कुल ज्ञान की तरह प्रेम कभी कम नही होता।

Monday 25 May 2020

~प्यार ~


क्या कहूँ तुम से कि नि शब्द हूँ मैं आज
तुम्हारी बातें, जैसा मेरा श्रृंगार
सुनते ही मानो....मानो मेरे मन मंदिर में जैसे, बज उठते हैं हजारों सितार
एक नहीं, बल्कि कई सौ बार
उठती रहती हैं लहरें दूर.... कहीं मन के उस पार
आज भी सुनने को आतुर है मन, फिर एक बार वही कही सुनी
सुनी अनसुनी बातें, बार बार लगातार
पल प्रतिपल कि वो झंकार
कह नहीं पाती मैं तुम से, पर हाँ सच तो यही है
मैं सुनना चाहती हूँ तुम से तुम्हारे प्यार का इज़हार
वो प्यार
जो दिखता तो है, उस पार
पर नाजने क्यूँ रोक लेते हो तुम उस पर करके प्रहार
बेह क्यूँ नहीं जाने देते अपने अंदर के उस प्रेम आवेग को एक बार कि प्यार में नहीं होता कुछ सही गलत
एक बार या दो बार
डूब जाने दो उसमें यह संसार
यह मर्यादा कि लकीरें, यह संस्कारों की बेड़ियाँ, यह रिश्तों के बंधन, यह सामाजिक संगठन
कुछ नहीं रह जाता है शेष जब कभी होता है आत्मा से आत्मा का मिलन ....पल्लवी     

Friday 22 May 2020

~तुम ~



इतनी सुंदर तो न थी मैं, जितना आज तुमने मुझे बना दिया
कुछ यूं घुमाया शब्दों को, मानो एक दीपक जला दिया

गुज़र हुये दिन कुछ इस तरह याद आए
कि लहरों ने समंदर को नचा दिया

घुँघरू थे इन पाँव में कभी
तुम्हारे शब्दों ने देखो इन्हें नूपुर बना दिया

दब के रह गयी थी कहीं जो बातें
देखो आज मेरे पास आकर तुमने उन्हें जगा दिया

मिट्टी की खुशबू, कागज़ की सियाही, सागर की लहरें,
आँखों का काजल ना जाने तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

फूलों की खुशबू पौधों की रंगत लहराता आँचल जैसे हो पागल
तितली  के पंख, भौरे की गुंजन, देखो न, तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

सूरज की लाली, चाँद का टीका सितारों की बाली
वो बातें तुम्हारी और कुछ हमारी, क्या थी मैं और क्या थे तुम
देखो न प्रेम ने हमें क्या से क्या बना दिया....पल्लवी   

Thursday 13 February 2020

★~मुहोब्बत आसान नही होती~★

आज वैलेंटाइन डे है। अर्थात प्यार का दिन, प्यार करने वालों का दिन, लेकिन क्या प्यार का भी कोई दिन होना चाहिए ? आप अपने साथी से कितना प्यार करते है यह जताने के लिए आपको किसी विशेष दिन का इंतज़ार नही होना चाहिए।
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कभी महसूस किया है ऐसे प्यार को जहां जुबां खामोश होती है और आँखों से बातें होती है।
दिल किसी एक का धड़कता है और धड़कन कहीं और सुनाई देती है।
पसीजी हुई नरम हथेली में जब बाते आम होती है
उन कांपते ठंडे पड़े हाथों में बातें तमाम होती है
कुछ कही गयी, कुछ अनकही ख्वाइशें बेलगाम होती है
जहां गुलाब की कोमल पंखुड़ियों की कोमलता सिर्फ उसके नरम गुलाबी होंठों और सुर्ख गालों तक सीमित न रहकर
उनके बालों में लगे गुलाब की महक में भी एक मिठास सी महसूस होती है
जहां शरीर मायने नही रखता
बस आंखों को आंखों की प्यास होती है
जब दो दिल एक साथ धड़कते हैं
वहां शायद जन्मों की प्यास होती है
गुलाब आखिर गुलाब ही होता है,
हर एक गुलाम की महक लगभग समान ही होती है
फिर क्या फर्क पड़ता है गर रंग उसका कोई भी हो,
मुहोब्बत तो आखिर इत्र के समान होती है।
खबर हो ही जाती है ज़माने को, जब मुहोब्बत बे लगाम होती है।
कुछ पलों का रिश्ता नही होता जनाब
यह सारी ज़िन्दगी फिर इसी के नाम होती है
अक्सर मर मिटते है लोग शक्ल पर किसी की
मगर इसकी पहचान तो दिलों से होती है
दिल से दिल मिलता है तो स्याह रातें भी सुहानी शाम लगती है और जब वही दिल टूटता है तो
यही रातें अक्सर हाथों में जाम रखती हैं
कोई जाकर बता दे उन्हें,कि गोरा रंग, घनी ज़ुल्फ़ें, रसीले होंठ सुराही दार गर्दन,
बादामी आंखे, मुहोब्बत इन बंदिशों की मोहताज़ नही होती।
उनकी सावली रंगत भी मेरा कलाम होती है
मुहोब्बत वो नही होती जिसे मिल जाए मंज़िल
यह तो वो शय है जो ज़िन्दगी ए अंजाम होती है
बाकी यह वो ज़ख्म है जिसमे आशकि सारे आम होती है
खुद मिट के भी इसे ज़िंदा रखते है लोग
मीरा यूँ ही बदनाम न होती है
मुहोब्बत है जनाब आसान कहाँ होती है

Saturday 11 January 2020

सच और झूठ का महत्व



सच सच ही होता है और झूठ झूठ ही होता है फिर कहा जाता है किसी की भलाई के लिए बोला गया झूठ सच से बढ़कर होता है। लेकिन विडंबना देखिये कि फिर भी ''सत्यम शिवम सुंदरम'' ही कहा जाता है। हम मस्ती मज़ाक में भी सहजता से झूठ बोल जाते है और गंभीर विषय में भी, शायद इसलिए कि झूठ बोलने में हमें ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ता या फिर यूं कहें कि उसके परिणाम के बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ता। इसलिए कभी भी कहीं भी झूठ बोलना सच बोलने से ज्यादा आसान होता है/हो जाता है। लेकिन सच बोलना हर वक्त संभव नहीं होता। अर्थात सच बोलते वक्त दिमाग सौ बार सोचता है तब कहीं जाकर सच बोलने की हिम्मत आती है। फिर भी जुबान लड़खड़ा ही जाती है। तभी शायद सत्य की उपमा देने के लिए सदैव एकमात्र व्यक्ति सत्यवादी हरीश चंद्र का नाम ही लिया जाता है। नहीं ?

किन्तु यदि मैं अपनी बात करूँ तो मैं तो साफ दिल से कहती हूँ कि मैं हमेशा सच नहीं बोलती। हाँ मगर इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सदैव झूठ ही बोलती हूँ। जरूरत के अनुसार जहां बेवजह झूठ बोलने की जरूरत नहीं होती वहाँ सहजता से सच निकलता है और मन भी यही कहता है कि जबरन क्यूँ झूठ बोलना। ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं होता सभी के साथ होता है। मगर स्वीकारता कोई-कोई ही है। इसलिए कोशिश सदैव सच बोलने कि ही रहती है। किन्तु ज़रूरत पड़ने पर झूठ बोलने से भी नहीं हिचकिचाते हम, इसे आप मानव प्रवृति (human nature) का नाम भी दे सकते है।

कहते है झूठ बोलने से कभी किसी का भला नहीं होता। क्यूंकि झूठ की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। सच है!लेकिन वर्तमान हालातों को मद्दे नज़र रखते हुए तो मैंने झूठ बोलने के कारण अधिकतर लोगों का भला होते ही देखा। और झूठ की उम्र सच से ज्यादा लंबी देखी। सच ज़्यादातर तकलीफ देता है। कभी कभी यह तकलीफ़ क्षणिक होकर गर्व, क्षमा, और सम्मान में बदल जाती है। किन्तु अधिकतर सच सामने वाले व्यक्ति को दुख ही पहुंचता है और सम्बन्धों में दरार डाल जाता है। नतीजा प्रेम के धागे में गाँठ पड़ ही जाती है। लेकिन इस सब के बावजूद भी यह कहना गलत नहीं होगा कि सच और झूठ इंसान के जुआ रूपी जीवन से जुड़े वो दो पाँसे हैं जिन्हें इंसान समय और परिस्थितियों को देखते हुए चलता है। इसलिए कभी धर्म के नाम पर धर्म युद्ध में भी छल का सहारा लेकर सत्य को बचाया गया। जैसे महाभारत में पांडवों के साथ यदि श्रीकृष्ण न होते तो उनका यह धर्म युद्ध जीतना असंभव था। लेकिन इस धर्म युद्ध में विश्व कल्याण एवं मानव कल्याण हेतु धर्म को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने ही छल की शुरुआत की तो इस तरह छल का दूसरा नाम ही झूठ हुआ इसी तरह रामायण में भी बाली का वध हो या रावण का स्वयं भगवान को भी छल का सहारा लेना ही पड़ा। कुल मिलकर सच को बचाने के लिए ही सही मगर छल तो ईश्वर को भी करना ही पड़ा ना !!! तो हम तो फिर भी इंसान है। 

यह सब लिखकर मैं यह साबित नहीं करना चाहती कि मैं झूठ बोलने की पक्षधर हूँ। यह तो केवल इस झूठ सच के विषय पर मेरी एक सोच है। क्यूंकि यूं भी झूठ बोलने की आदत कोई अपनी माँ के पेट से सीखकर नहीं आता बल्कि हम स्वयं ही जाने अंजाने अपने बच्चों को छोटी-छोटी बातों के लिए झूठ बोलने का पाठ पढ़ा जाते हैं और हमें स्वयं ही आभास नहीं होता। इसलिए मैं यह नहीं कहती की झूठ सच से अच्छा होता है लेकिन यह ज़रूर कहूँगी की झूठ से यदि सब कुछ बिखर जाता है तो उसी झूठ से कई बार सभी कुछ संभल भी जाता है। क्यूंकि हर एक इंसान के जीवन में कुछ सच ऐसे भी होते हैं जिन पर यदि झूठ का पर्दा पड़ा रहे तो ज़िंदगी सुकून से कट जाती है। अधिकतर मामलों में झूठ ज़िंदगी बचा लेता है कभी बोलने वाले की स्वयं अपनी जिंदगी तो कभी उस सामने वाले इंसान की जिंदगी जिस से झूठ बोला जारहा है/गया हो। 

अन्तः बस इतना ही कहना चाहूंगी कि इंसान की ज़िंदगी में दोनों (झूठ और सच) का ही अपना एक विशेष स्थान है, एक विशेष महत्व है, जिसके चलते दोनों में से किसी एक को नकारा नहीं जा सकता।        

Tuesday 7 January 2020

जानेमन तुम कमाल करती हो।


जाने मन तुम कमाल करती हो...
उठते ही सुबह से सबका ख्याल करती हो
बच्चों को स्कूल भेज खुद काम पे निकलती हो
सारा दिन खट के जब घर में कदम रखती हो
चेहरे पर न शिकन कोई न थकान का कोई अंश
बच्चों के संग बच्चा बन जब हँसती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....

रात को भी अपने घर का सारा काम निपटा
पति के साथ प्रताड़ना सहकर भी
उसी पति का ख्याल रखती हो
उसकी लंबी हो आयु कि दुआ कर
हर रात अपना सब कुछ अर्पण करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....

घर से बेघर किये जाने पर भी
दूसरों के संग मन हल्का कर फिर से जी उठती हो
आंखों में नमी हंसी लबों पर
इस जुमले को तुम ही साकार करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो.....

अपने दम पर जीने वाली
अपने बच्चों को खुद कमाकर खाने वाली
एक जीवट स्त्री होकर भी
जाने क्यों तुम इतने जुल्मों सितम सहा करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो.....

नजाने किस मिट्टी से बनता है वो रब तुमको
जो हजार झंझवातों को सहकर भी तुम
हंसने मुस्कुराने का हुनहर रखती हो
कहाँ से लाती हो इतनी हिम्मत
कि सौ बार टूट के बिखरती हो
फिर भी हर सुबह खुद को समेट कर
एक नए दिन के साथ एक नयी शुरुआत करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....