Friday 14 December 2012

एहसास


कभी कभी यह ज़िंदगी इतनी तन्हा लगती है की जैसे इसे किसी की आरज़ू ही नहीं
यूं लगता है कि जैसे किसी को मेरी जरूरत ही नहीं
न दोस्तों के पास समय है ना अपनों के पास कोई विषय, बात करने के लिए
सब अपनी ही दुनिया में मस्त है किसी को किसी की जरूरत ही नहीं
ढलते हुए सूरज की लालिमा के साथ तन्हा होने का एक अंधकार सा पसर जाता है
मन के किसी कोने में कहीं, और यकायक यह एहसास होने लगता है
जैसे समय का चक्र पल-पल कोई न कोई परीक्षा ले रहा हो मेरी
जिसमें न कोई आस है, ना प्यास है,गर कुछ है तो वो है मैं और मेरी तनहाई
यूं तो इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में कभी-कभी तनहाई भी अपनी सी लगती है
मगर कभी-कभी खुद को इस कदर तन्हा पाती हूँ मैं 
कि यूं लगता है कि किसी को मेरी जरूरत ही नहीं,
यूं तो तुम्हारे साथ होते हुए भी कई बार खुद को तन्हा महसूस किया है मैंने
क्यूंकि न जाने क्यूँ एक औपचारिक सा भाव है या स्वभाव है तुम्हारी बातों में 
मगर अपने पन का वो खिचाव नहीं,
जिसकी तलाश में शायद ना जाने कितने ही घुमावदार रस्तों पर भटकता है मन
आतित की परछाइयों का पीछा करते हुए वापस 
उस दौर में लौट जाने को व्याकुल हो उठता है मन 
जहां तनहाई के लिए वक्त ही नहीं था मेरे पास, कि यह सोच भी सकूँ मैं, 
कि क्या होता है तन्हा होना लेकिन फिर तालश वही आकर ख़त्म होती है मेरी, 
जहां से चले थे हम कदम दर कदम एक-एक करके सात वादों के साथ
शायद इसलिए तुम्हारे आने का इंतज़ार रहा करता है मेरी रूह में कहीं,
क्यूंकि जब साथ होते हो तुम तो गुज़र ही जाती है इस ज़िंदगी की हर एक श्याम
लेकिन जब साथ नहीं होते तुम तो खुद को और भी तन्हा पाती हूँ मैं,
और धीमे-धीमें सुलगा करता है मेरा मन, एक जलती हुई अगरबत्ती की तरह
क्यूंकि यूं तो साथ होते हुए भी तन्हा हुआ जा सकता है मेरे हमदम, मगर  
बशर्ते कि जिसके साथ आप हैं उसे तनहाई की हिफाजत करने का हुनर आता हो
तो क्या हुआ अगर तुम्हें अपनेपन का एहसास दिलाना 
या मेरे प्रति अपना प्यार जताना नहीं आता
बहुत से ऐसे लोग हैं इस दुनिया में जिन्हें प्यार तो है मगर प्यार जताना नहीं आता   
बावजूद इसके, बहुत अच्छे से जानती हूँ मैं,कि प्यार तुमको भी है, प्यार हमको भी है,
और सोचो तो ज़रा वो प्यार ही क्या जिसे महसूस करवाना पड़े,या जताना पड़े
वो भला प्यार कहाँ रहा, वो तो दिखावा हुआ प्यार नहीं,
प्यार तो बिन कहे, बिन बोले ही समझने वाला और रूह से महसूस करने वाला एहसास है ना
इसलिए शायद अब भी, नदी के दो किनारे से स्वभाव के बावजूद भी,
एक ही छत के नीचे जी पा रहे हैं हम क्यूंकि स्वभाव भले ही न मिले हों कभी हमारे एक दूजे से
मगर प्यार होने का एक एहसास ही काफी है, ज़िंदगी गुज़ार देने के लिए ....