Sunday 10 March 2024

चक्का

चक्कों से शुरु हुई जिंदगी
चक्कों पर ही खत्म हो जाती है

हम सोचते हैं चक्कों पर जीवन संभालना आसान हो जाएगा
किन्तु चक्कों पर ही ज़िन्दगी भारी होती चली जाती है

जन्म के साथ ही जिंदगी की गाड़ी
चक्कों पर आजाती है

फिर उम्र के साथ चक्के बदलते रहते हैं
लेकिन ज़िंदगी चक्को पर ही विराजमान रहती है

समय कब निकल जाता है पता भी नहीं चलता
चक्का चक्का करते करते एक दिन,

उन्हीं चक्कों पर यह जिंदगी गुजर जाती है
कभी हमें कोई धक्का दे रहा होता है

तो कभी कभी हम किसी को धकेल रहे होते है
यही चक्के कब जीवन चक्र बन जाते है

किसी को पता भी नहीं चलता
जिंदगी यूँ ही चक्का दर चक्का

एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे चक्के में
उलझ के रह जाती है और बस यूँही ढलकती चली जाती है.....पल्लवी

Tuesday 30 January 2024

स्त्री मन ~

 


स्त्री मन 

डर का चिंतन 

अंजान भय 

शब्दों की टूटन 

आँखों का पानी 

मौन की पुकार 

संस्कारों की बेड़ियाँ 

या 

सामाजिक बहिष्कार 

हजारों झंझवात 

लाखों अंतर्द्वंद 

अनगिनत मौन संवाद 

वजह 

आत्मविश्वास की कमी 

ग्रह -विग्रह की उलझन 

पारिवारिक पतवार 

टूटना बिखरना 

ना मानना हार 

जीवन के प्रति जिजीविषा 

हर बार, लगातार ....पल्लवी 

Friday 26 January 2024

एक चुप

एक चुप 

सालों का अंतर्द्व्न्द
एक आदत 
और 
तिल तिल मरता मन 
कसमसाती भावनाएं 
पल प्रतिपल 
उठती चितकर 
मौन समंदर उठती हुंकार 
बस एक चुप 
कारण 
अभिव्यक्ति का हनन 
या 
संस्कारों का भार 
एक तीव्र पीड़ा 
काश की बागडोर 
साथ कुछ भी नहीं 
सिवाय मौन के....पल्लवी