Friday, 30 August 2024

आँखें ~👁️👁️

आँखें जो बिना तलवार ही घायल करने का हुनर रखती है, जो जानना हो कभी किसी भी स्त्री को तो पढ़ो उसकी आँखें...! 

उसकी आँखों में ही छिपे होते हैं उसके सभी मनोभाव 

ध्यान से देखोगे तो देख पाओगे

जो जुबां कह नहीं पाती वो सच बोलती है आँखें...!

कोई चाहे ना चाहे, राजे दिल खोलती है आँखें...!!

स्त्री जीवन की कमी, उसके मन का खालीपन 

या फिर उसके जीवन की सफलता का उल्लास 

उसका अहम् या फिर उसके मन में छिपी कोई आस 

जो वो हुई बेहद ही खूबसूरत तो तुम्हें दिख सकता है उसका घमंड भी

जो ना भी वो हुई सुंदर तो क्या हुआ...?

चाहत तो उसकी तब भी वही ही रही

क्यूंकि सुंदर दिखना, हर स्त्री की एक बड़ी चाहत जो होती है...! 

जिसके लिए ना जाने किए जाते हैं कितने ही प्रपंच....!!

रंग को हल्का किया जाता है, बालों को रंग दिया जाता है, 

धंस गयी हो जो आँखें भले ही

पर उनमें भी काजल नुमा कालिख को भर दिया जाता है!

सूखे बेरंग होंठों को भी नकली रंगत से रंग दिया जाता है...!!

इस एक कमी को भरने के लिए

ना जाने क्या कुछ नहीं किया जाता है...!!

लेकिन तब भी काजल की अंधीयारी ग़ालियों से सच बोलती है आँखें

दिल में जो छिपे हैं वह राज खोलती हैं आँखें...!!

जिस किसी के जीवन की जो कमी होती है.

जुबाँ चाहे कुछ बोले ना बोले पढ़ने वाला मिले तो सच बोलती हैं आँखें....!!!


पल्लवी

Sunday, 10 March 2024

चक्का

चक्कों से शुरु हुई जिंदगी
चक्कों पर ही खत्म हो जाती है

हम सोचते हैं चक्कों पर जीवन संभालना आसान हो जाएगा
किन्तु चक्कों पर ही ज़िन्दगी भारी होती चली जाती है

जन्म के साथ ही जिंदगी की गाड़ी
चक्कों पर आजाती है

फिर उम्र के साथ चक्के बदलते रहते हैं
लेकिन ज़िंदगी चक्को पर ही विराजमान रहती है

समय कब निकल जाता है पता भी नहीं चलता
चक्का चक्का करते करते एक दिन,

उन्हीं चक्कों पर यह जिंदगी गुजर जाती है
कभी हमें कोई धक्का दे रहा होता है

तो कभी कभी हम किसी को धकेल रहे होते है
यही चक्के कब जीवन चक्र बन जाते है

किसी को पता भी नहीं चलता
जिंदगी यूँ ही चक्का दर चक्का

एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे चक्के में
उलझ के रह जाती है और बस यूँही ढलकती चली जाती है.....पल्लवी

Tuesday, 30 January 2024

स्त्री मन ~

 


स्त्री मन 

डर का चिंतन 

अंजान भय 

शब्दों की टूटन 

आँखों का पानी 

मौन की पुकार 

संस्कारों की बेड़ियाँ 

या 

सामाजिक बहिष्कार 

हजारों झंझवात 

लाखों अंतर्द्वंद 

अनगिनत मौन संवाद 

वजह 

आत्मविश्वास की कमी 

ग्रह -विग्रह की उलझन 

पारिवारिक पतवार 

टूटना बिखरना 

ना मानना हार 

जीवन के प्रति जिजीविषा 

हर बार, लगातार ....पल्लवी 

Friday, 26 January 2024

एक चुप

एक चुप 

सालों का अंतर्द्व्न्द
एक आदत 
और 
तिल तिल मरता मन 
कसमसाती भावनाएं 
पल प्रतिपल 
उठती चितकर 
मौन समंदर उठती हुंकार 
बस एक चुप 
कारण 
अभिव्यक्ति का हनन 
या 
संस्कारों का भार 
एक तीव्र पीड़ा 
काश की बागडोर 
साथ कुछ भी नहीं 
सिवाय मौन के....पल्लवी   
 

Tuesday, 4 April 2023

मौसम की क्या कहे रे मनवा ~

मौसम की क्या कहे रे मनवा

पल पल रंग बदलता है

अभी धूप थी अभी छाँव है

बारिश होने को बेताब है

मौसम का यह क्या हिसाब है

बे मौसम बारिश जो हो गई

कितनी फसलें नष्ट हो गई

अन्नदाता की आँखें देखो

आँखें उनकी नम हो गई

मौसम हंसा और मौन हो गया

बीमारियों का जन्म हो गया

एक जाती है एक आती है

इंसा का जिस्म अब

मानो इनका घर होगया

शेष रह गयी सिर्फ दवाएं

आती जाती यह मुस्काएँ

मौसम तब भी पल पल

छिन छिन रंग अपना बस बदले जाये

मौसम की क्या कहे रे मनवा.... पल्लवी

Tuesday, 14 February 2023

~वेलेंटाइन डे स्पेशल ~



वात्सल्य की इस तलाश में

एक उम्र के बाद

फिर इसे पाने में

एक उम्र गुज़र जाती है

कभी हम नहीं होते

तो कभी वह छाँव गुज़र जाती है

भाग्यशाली हूँ मैं कि

आज भी मेरे सर पर इनका साया है

प्रार्थना है बस यही

स्वस्थ एवं खुश रहे

वह सदा

जिन्होंने हम पर

सदा ही यह प्यार लुटाया है... पल्लवी

Sunday, 5 February 2023

~यह प्रतियोगिता का मेला है ~



यह प्रतियोगिता का मेला है 

मंज़िले सामने है 

हौंसले बुलंद है 

पथ बड़ा कटीला है 

पर जरा संभल के भईया 

यह प्रतियोगिता का मेला है 

किसी के पैर में है जूता 

किसी के पैर में है चप्पल 

तो कोई बिना ही इस सभी के 

चल पड़ा अकेला है पर 

जीतता वही है यहाँ 

जिसकी जेब में धेला है 

हुनर की नहीं है

यहाँ बिसात कोई 

सब धन का ही झमेला है 

पार कर जो यह कांटो का पथ 

जो मंज़िल अपनी पा गए 

जानते हैं वह सहज 

कितनों को उन्होने 

गर्त में ढकेला है 

यह प्रतियोगिता का मेला है .....

पल्लवी  

Tuesday, 17 January 2023

दो जोड़ी आँखें

 दो जोड़ी आँखों के बीच

नये प्रस्फुटन का आगमन

खुशियों के सपनों का

मीठा समंदर

परवरिश कि सख्त

किन्तु कोमल दीवारों

के बीच

नन्हे परिंदो की उड़ान

और फल पकने से पहले ही

अचानक

उस मीठे समंदर का,

खारा हो जाना

इससे बड़ी पीड़ा

कि पराकाष्ठा ओर

कोई हो सकती है क्या

यूँ तो दर्द

कि कोई परिभाषा

नहीं होती

मगर

एक फूल के

खिलने से पहले ही

उसका बिखर जाना,

सपनीली आँखों

में उन्ही सपनों कि किरचोँ 

का शूल बन

उन्हीं आँखों में

चुभ जाना

एक असहनीय पीड़ा

को जन्म देता है

क्यूंकि दर्द, कैसा भी हो 

दर्द ही रहता है.

है ना...!

पल्लवी 

Saturday, 7 January 2023

यह जरूरी तो नहीं





हर प्रेम कहानी सपनों के जैसी खूबसूरत ही हो
यह जरुरी तो नहीं
हर एक प्रेम कहानी में कोई राजा हो या रानी हो
यह जरुरी तो नहीं
कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी होकर भी पूरी कहलाती है
कई बार प्रेम में धोखा होता है,
दर्द होता, जान भी चली जाती है
और हत्या तक हो जाती है
पर उसका अर्थ यह नहीं कि वैसा प्रेम,
प्रेम नहीं होता
प्रेम कि एक लौ सभी के अंदर जगमगाती है
कभी मंजिल मिल जाती है
तो कभी कभी मंजिल पीछे भी छूट जाती है
कई बार हम ही रास्ता भटक जाते है
और मंजिल आगे निकल जाती है
पर प्यार का जुगुनू तो यदा कदा
कहीं ना कहीं टिम टिमाता ही रहता है
जो शायद ज़िंदा होने की निशानी होती है
प्यार में बोले गए संवाद हमेशा
प्रेम की चाशनी में पगे हुए हों
यह जरुरी तो नहीं
कभी कभी प्यार में नीम की गोली भी खानी पड़ती है
पर इसका अर्थ यह तो नहीं होता
कि प्यार नहीं है अब पहले सा
प्यार तो पहले भी था, अब भी है,
पर उसका सामने बने रहना जरुरी तो नहीं
कभी कभी ज्यादा मिठास भी कीड़े लगा देती है
फिर चाहे वो मिठास भोजन की हो या रिश्तों कि,
स्वस्थ रखना है यदि संबंधों को
और अपने अपनों को तो आँख दिखानी ही पड़ती है
हर प्यार में एक कहानी हो यह जरुरी तो नहीं....पल्लवी

Sunday, 1 January 2023

गुलाब 🌹

"अभिनव इमरोज" पत्रिका में प्रकाशित मेरी लिखी यह कविता

आज भी जब पुरानी डायरी के पन्ने पलटती हूँ
कुछ खामोश दस्तावेज़ों कि महक से महक्ति हूँ
माना के हर पन्ने में गुलाब नहीं होते पर
इन लफ़्ज़ों में है खुशबु तेरी सासों कि
के यादों के गुलिस्तान कभी ख़ाक नहीं होते,
के हर किसी कि ज़िन्दगी के हिस्सों में गुलाब नहीं होते
वो जो होते है बहुत खास,वो शब्दों के मोहताज़ नहीं होते
जिनके हिस्से में आते है सिर्फ कांटे
वह लोग भी लाजवाब होते है
के आसान नहीं होता
दिल में आग रखना और होंटों पे गुलाब रखना
यूँ हीं नहीं कोई बन जाता है अपना
डूबती कश्तीयों के अक्सर किनारे आम होते हैं,
कहने को बहुत साधारण पर बहुत ख़ास ओ आम होते हैं
यह वो दिल के रिश्ते है साहब
जहाँ लोग बड़ी शान से बदनाम होते है
यादों के यह मोती कोई आम नहीं होते
कीमत उनकी केवल वही जानता है
जिसके दामन में यह दाग़ नहीं होते
होता है अगर यह मर्ज़ ए आम कोई तो
गुलाब को पाने कि चाह में
यह आशिक यूँ सरे बाज़ार कभी गुलफाम नहीं होते
काँटों पर चलना पड़ता है, रिश्तों में ढालना पड़ता है अग्नि में तपना पड़ता है,
अपने को पाने कि खातिर
जब अपनों से लड़ना पड़ता है और ज़हर भी पीना पड़ता है
मोहोब्बतों के किस्से यूँ ही आम नहीं होते
के हर किसी कि ज़िन्दगी में गुलाब नहीं होते,
वो जो होते है बहुत ख़ास, वो शब्दों के मोहताज़ नहीं होते.....
पल्लवी

Wednesday, 21 December 2022

खरपतवार

 बिकुल खरपतवार की तरह होती हैं औरतें

जरा प्यार भर जल मिला नहीं,
कि तुरंत उगने लगता है इनका अस्तित्व
और फिर ऐसी मजबूत होती चली जाती है
इनके प्यार से भरी जडे
कि क्या जान और क्या बेजान
सभी को अपने मोह पाश में बाँध
फिर बहुत सताती हैं, यह औरतें
घर छूट जाता है घर वाले छूट जाते हैं
सभी से बेमेल रिश्तों को भी
बड़ी शिद्दत से निभाती हैं
यह औरतें,
बिलकुल किसी खरपतवार सी
हर जगह उग आती हैं यह औरतें
कभी बेटी, कभी बहन, कभी माँ,
तो कभी पत्नी बन
ना जाने क्या क्या सहती हुई भी
जी जाती हैं यह औरतें,
पैदा होते ही प्यार से प्यार निभाती हैं
तो कई बार
समाज के नाम पर
बली का बकरा बना
पेट में ही मार दी जाती हैं, यह औरतें
तो कभी चंद पैसों की खातिर
बेंची और खरीदी जाती है यह औरतें
इतना ही नहीं
हज़ारों बार टूटकर
किसी मसले हुए फूल की तरह
हर रोज़ पीसकर बेखर दीं जाती है, यह औरतें
फिर भी अपनों कि खातिर
अपने जिस्म का कतरा कतरा
बहाकर भी, अपने प्रेम को निभाती है यह औरतें
जीवन के इतने झंझवातों को
झेलकर भी
किसी जिजीविषा से कम नहीं होती यह औरतें
पूंजी होती हैं जीवन की,
समय आने पर
संजीवनी भी बन जाती हैं यह औरतें,
सच हर परिवार कि जड़ें
एक मजबूत नीव होती हैं यह औरतें
यह औरतें ना होती तो कुछ भी ना होता
जीवन का सार सुर संगीत भी ना होता
जीवन का हर रस पिलाती हैऔरतें
बिलकुल किसी खरपतवार सी
हर जगह उग आती हैं यह औरतें...
पल्लवी

Saturday, 10 December 2022

पत्थर

अकेला खड़ा

वो देखा करता है रहा

आँखों में लिए चंद प्रश्न

कोई आकर क्यों पूछता नहीं

उसका मर्म

उसने वहाँ खड़े होकर

जन्म से मृत्यु तक का सफर देखा

सोखा है अंश ईश्वर की शक्ति

तो वहीं देखा है उसने बल भक्ति का

वो कहता है

कहीं ना कहीं हूँ मील का पत्थर मैं भी

कि यह उपलब्धि है मेरे समय काल की

यूँ तो एक पत्थर ही हूँ मैं

हाँ उस जगह का पत्थर

जिससे होती है पहचान भगवान की.....

Wednesday, 9 November 2022

~भागती ज़िंदगी में कुछ छूटते रिश्ते तो कभी टूटते रिश्ते ~



बेशक बदलते वक़्त के साथ खुद को बदलते हम 

समय की कदम ताल से, ताल मिलाते हम 

इस अनचाही सी कोशिश में, खुद को झोंकते हम 

इस वक़्त की आपाधापी में, यह नहीं जानते हम 

थोड़ी कुछ पाने कि चाह में कितनों को खोते हम....

 

बचपन छूटा आयी जवानी, कुछ दोस्त बने, कुछ दिलजानी 

फिर आया मौसम कुछ बनने का, सपनों को पूरा करने का, 

कुछ के हिस्से आयी नौकरी, कुछ के हिस्से आयी चाकरी 

कुछ ने किए बस सपने पूरे, कुछ ने किया बस अपनों को पूरा 

बस इस सब आपाधापी में, कुछ रिश्ते पीछे छूट गए 

वो बाजू वाले काका से, वो छज्जे वाली मौसी से 

नातों के पापड़ सब सूख गए 

बरनी जो ना हिलायी रिश्तों की बरसों, कब संबंध सारे टूट गए 

जीवन की इस आपाधापी में कुछ रिश्ते पुराने छूट गए, कुछ टूट गए 

मर मर के जिये जिन रिश्तों को, वो वक़्त आने पर टूट गए 

खून पसीना डाल डाल के जिन नन्हें पौधों को सींचा था 

वही पौधे जब खुद झाड़ बने, पंथी को सहारा देना भूल गए 

कुछ ऐसा नाता टूटा रुचियों से, जीवन का सुर ही टूट गया 

के दिल से दिल के जो रिश्ते थे,चंद अल्फ़ाज़ों से टूट गए 

जीवन की इस आपाधापी में कुछ रिश्ते पुराने छूट गए कुछ टूट गए ..... 

Saturday, 17 April 2021

~पता ही नहीं चला ~



अटकन चटकन का ले काफ़िला, कब आगे हम चल निकले थे 

कब भटकन की राह पर बढ़ गए 

पता ही नहीं चला ...

कुछ साथ है, कुछ साथ थे, कुछ दोस्त पुराने कब पीछे छूटे 

पता ही नहीं चला ...

नए जोश में हटकर चलने, आशाओं के दीप जालने 

कब हम जा के हवा से भिड़ गए 

पता ही नहीं चला...

इस चलने में, गिर गिर पड़ने और संभलने

युग कितने ही बीत गए कुछ 

पता ही नहीं चला...

इसी उधेड़ बुन के चलने में, कुछ उलझने सुलझाने में 

कब बच्चे से बड़े हो गए 

पता ही नहीं चला...

कुछ दोस्त पुराने, नए जमाने संग ताल बैठाने 

कभी ताल मिलाने कब अटके, कब निकल गए

 पता ही नहीं चला...

आँख खुली जब हम ने जाना, हम भी चलना सीख गए 

इस सपने से जगने में हाय, कितने सावन बीत गए 

पता ही नहीं चला...

अब भी प्यार देर नहीं है, समझ सको तो समझो इशारे 

हम में तुम में प्राण वही है 

पता ही नहीं चला... पल्लवी 

   

Tuesday, 23 February 2021

माँ प्रकृति का प्रसाद

कभी- कभी कुछ तस्वीरें ले तो ली जाती हैं खेल-खेल में 

लेकिन बाद में उन्हें देखने पर बहुत कुछ समझ में आता है 

जैसे कि यह तस्वीर, 

इस तस्वीर को देखकर मन में यह विचार आया 

कि जैसे माँ प्रकृति ने आशाओं और उम्मीदों से भरा यह सिक्का 

मेरे हाथ पर रखते हुए धीरे से मुझसे कहा था उस रोज़ 

कि लो बेटा मेरी ओर से तुमको यह एक छोटी सी भेंट 

इसे सदा अपने पास संभाल कर, संजो कर रखना 

और 

जब भी किसी और को इसकी जरूरत हो 

तब उसे यह देने में क्षण भर की भी देरी ना करना 

आज कल बहुत जरूरत है ना इसकी सभी को, 

हर किसी के मन में एक उदासियों और अंधकार से भरा एक कोना है 

जो घर कर गया है सभी के मन में 

जिसके कारण जीना तो चाहते हैं लोग, 

किन्तु सहज रूप से जी नहीं पा रहे हैं 

जीवन एक दिखावा बनकर रह गया 

हर कोई उस पार जाना चाहता तो है 

पर किसी के पास मांझी नहीं है, 

तो किसी के पास पतवार नहीं है, 

यूं भी बेटा इस भवसागर से पार जाना आसान नहीं है 

लेकिन शायद यह सिक्का उस अंधेरे कोने में हल्की सी ही सही 

पर आशा की एक छोटी सी रोशनी भर दे 

जिसकी जगमगाहट स्वयं की नाव और स्वयं की पतवार 

बनाकर उस भवसागर में बढ़ने का हौंसला दे दे 

इसलिए रखो इससे अपने पास और बाँटते चलो हर बार 

यह कभी न खत्म होने वाली दौलत है 

जो सिर्फ अमीरों को जागीर नहीं, बल्कि गरीबों का सहारा है 

एक ऐसा सहारा जिसकी जरूरत आज के समय में सभी को है 

इसलिए तुम जरा भी फिक्र मत करो 

बस खुले और साफ मन से बांटो 

फिर देखना, एक दिन यह दुनिया वापस उतनी ही खूबसूरत होगी 

जितनी कि हम आज केवल किताबों में पढ़ा और चित्रों में देखा करते हैं।

Wednesday, 22 July 2020

हम तुमको ना भूल पाये हैं ~


बहुत उदास शामें है इन दिनों
मायूसियों के साये है
फिर भी हम तुम को ना भूल पाए है
है फ़िज़ा इन दिनों कुछ ज्यादा ही ग़मगीन
के हो रहा है रुखसत हर रोज़ कोई अपना ही मेहजबीन
गर, घर खुदा का भी है तो क्या हुआ
हो रहा है दर्द के दिल है गम से फटा हुआ
जनाज़ों की बस्ती है पर किसी के ना सरमाये है
हम फिर भी तुम को ना भूल पाये हैं....पल्लवी

Thursday, 16 July 2020

~चिराग~



चंद उदास शामें है और चंद स्याह रातें
चारों ओर एक अजीब सी खामोशी पसरी है
न पंछियो का कोई शोर है ना
पार्क में खेल रहे बच्चों की कोई चहचाहट
बस चंद मानसून की बारिशें है
और कुछ तुम्हारी बे पनहं मुहोब्बत
पर, ढूंढने पर भी एक खुशी का मोती नही मिलता
इस ग़म के सागर में गोते लगते बार बार
जहां देखो बस एक विलाप है
जिसके हैं अनगिनत आधार
आखिर क्यों चले गए तुम
यह दुनिया छोड़कर मेरे यार
अब तुम्हारे बिना यह जिंदगी है
महज़ एक जलता हुआ चिराग....

Tuesday, 23 June 2020

~आखिर क्यों ~?


कुछ भी तो नहीं बदला प्रिय  
हर रोज़ सूरज यूं ही निकलता है
शाम यूं ही ढलती है
हवाएँ भी रोज़ इसी तरह तो चलती है, जैसे अभी चल रही है
पक्षियों का करलव भी नहीं बदला
हाँ यह बात ओर है कि अब उस गुन गुनाहट में मुझे वह मधुर सुर सुनाई नहीं देते
तुम्हारे घर के बाहर का भी तो यही नज़ारा होगा ना
बस इस नज़ारे को देखने वाली
इसे महसूस करने वाली तुम्हारी वो निश्चल नज़र नहीं है
सच तुम्हारी कमी बहुत खल रही है, न सिर्फ मुझे बल्कि हर उस व्यक्ति को
जिसने तुमसे प्यार किया, तुम्हें चाहा दिलो जान से
लेकिन दुनिया फिर भी चल रही है
 शायद इसी को कहते हैं
“शो मस्ट गो ओन”    
कहीं कोई परिवर्तन, कहीं कोई बदलाव नहीं आया तुम्हारे चले जाने से
फिर तुम क्यूँ चले गए प्रिय, आखिर क्यों....?
तुम्हारी याद हर पल आती है
दिल को तड़पती, आँखों को रुलाती है, रातों को जगाती है
केवल तुम्हारी ही तस्वीर, इन डब डबाई आँखों में जगमगाती है   
पल पल यह दिल कहता है, काश समय को मोड़कर वापस ला सकते हम
तो आज न तुम तन्हा होते न हम .... 
अब तो बस एक ही दुआ है जहां भी रहो खुश रहना प्रिय ईश्वर तुम्हें वहाँ शांति और सुकून प्रदान करे  

Saturday, 30 May 2020

~अधूरापन~



तप्ती गरमी और कड़ाके की ठंड को सहती हुई यह वादियाँ ना जाने कितनी सदियों से प्रतीक्षा कर रही है उस आसमान के एक आलिंग कि, की जिसे पाकर मनो मोक्ष मिल जायेगा इन्हें

इनकी पथराई आंखों मे भी लहराए गा कभी जज़्बातों का पानी और फिर खेलेगा एक पत्थर का फूल इनके आँचल में,

पाषाण युग से आज तलक सिर्फ आसमान के एक बोसे मात्र से, झूम उठता है इनका मन, झट हरियाली की चुनर ओढ़ बन जाती है, यह दुल्हन

बेचारी मासूम है बहुत, नही जानती यह क्षणिकाएं नही बन सकती उनका जीवन यह महज़ एक छलावा है उन आवारा बादलों का, जो एक ही तीर से जाने कितने शिकार कर लेना चाहते हैं

इन वादियों के दामन में तो वह भी नही टिकना चाहते, टिक भी नहीं सकते, बह जाते हैं नीचे, तलहटी की ओर के आसान नही होता तपो भूमी पर यूँ हक जताना किसी का, क्योंकि प्रेम एक तपस्या ही तो है

अधूरेपन की पूर्ण परिभाषा प्रेम ही तो है, अधूरे शब्दों में समावेश प्रेम का ही तो है, फिर चाहे वो प्यार हो या त्याग आखिर प्रेम ही तो है, इन अधूरी वादियों का तप प्रेम ही तो है,

प्रेम जो है एक आस, जैसे मीरा की प्यास, राधा का इंतज़ार, तुलसी का प्यार, आखिर यह सब अधूरा होकर भी पूर्ण ही तो है,

इसलिए कभी अधूरे पन से निराश न हो, है मानव! जो अधूरे हैं , सही मायनो में वही पूरे हैं, मंजिल को पा लेना केवल  प्रेम नही होता, बल्कि सारी ज़िन्दगी एक अतृप्त सी प्यास के पीछे भटकना ही प्रेम होता हैमाना के जीवन

पूर्ण नही होता प्रेम के बिना, लेकिन प्रेम सच्चा वही है, जो कभी पूर्ण नही होता, जो ना बाटने से घटे न मारने से मरे, बिल्कुल ज्ञान की तरह प्रेम कभी कम नही होता।

Monday, 25 May 2020

~प्यार ~


क्या कहूँ तुम से कि नि शब्द हूँ मैं आज
तुम्हारी बातें, जैसा मेरा श्रृंगार
सुनते ही मानो....मानो मेरे मन मंदिर में जैसे, बज उठते हैं हजारों सितार
एक नहीं, बल्कि कई सौ बार
उठती रहती हैं लहरें दूर.... कहीं मन के उस पार
आज भी सुनने को आतुर है मन, फिर एक बार वही कही सुनी
सुनी अनसुनी बातें, बार बार लगातार
पल प्रतिपल कि वो झंकार
कह नहीं पाती मैं तुम से, पर हाँ सच तो यही है
मैं सुनना चाहती हूँ तुम से तुम्हारे प्यार का इज़हार
वो प्यार
जो दिखता तो है, उस पार
पर नाजने क्यूँ रोक लेते हो तुम उस पर करके प्रहार
बेह क्यूँ नहीं जाने देते अपने अंदर के उस प्रेम आवेग को एक बार कि प्यार में नहीं होता कुछ सही गलत
एक बार या दो बार
डूब जाने दो उसमें यह संसार
यह मर्यादा कि लकीरें, यह संस्कारों की बेड़ियाँ, यह रिश्तों के बंधन, यह सामाजिक संगठन
कुछ नहीं रह जाता है शेष जब कभी होता है आत्मा से आत्मा का मिलन ....पल्लवी     

Friday, 22 May 2020

~तुम ~



इतनी सुंदर तो न थी मैं, जितना आज तुमने मुझे बना दिया
कुछ यूं घुमाया शब्दों को, मानो एक दीपक जला दिया

गुज़र हुये दिन कुछ इस तरह याद आए
कि लहरों ने समंदर को नचा दिया

घुँघरू थे इन पाँव में कभी
तुम्हारे शब्दों ने देखो इन्हें नूपुर बना दिया

दब के रह गयी थी कहीं जो बातें
देखो आज मेरे पास आकर तुमने उन्हें जगा दिया

मिट्टी की खुशबू, कागज़ की सियाही, सागर की लहरें,
आँखों का काजल ना जाने तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

फूलों की खुशबू पौधों की रंगत लहराता आँचल जैसे हो पागल
तितली  के पंख, भौरे की गुंजन, देखो न, तुमने मुझे क्या क्या बना दिया

सूरज की लाली, चाँद का टीका सितारों की बाली
वो बातें तुम्हारी और कुछ हमारी, क्या थी मैं और क्या थे तुम
देखो न प्रेम ने हमें क्या से क्या बना दिया....पल्लवी   

Thursday, 13 February 2020

★~मुहोब्बत आसान नही होती~★

आज वैलेंटाइन डे है। अर्थात प्यार का दिन, प्यार करने वालों का दिन, लेकिन क्या प्यार का भी कोई दिन होना चाहिए ? आप अपने साथी से कितना प्यार करते है यह जताने के लिए आपको किसी विशेष दिन का इंतज़ार नही होना चाहिए।
…................................................................................

कभी महसूस किया है ऐसे प्यार को जहां जुबां खामोश होती है और आँखों से बातें होती है।
दिल किसी एक का धड़कता है और धड़कन कहीं और सुनाई देती है।
पसीजी हुई नरम हथेली में जब बाते आम होती है
उन कांपते ठंडे पड़े हाथों में बातें तमाम होती है
कुछ कही गयी, कुछ अनकही ख्वाइशें बेलगाम होती है
जहां गुलाब की कोमल पंखुड़ियों की कोमलता सिर्फ उसके नरम गुलाबी होंठों और सुर्ख गालों तक सीमित न रहकर
उनके बालों में लगे गुलाब की महक में भी एक मिठास सी महसूस होती है
जहां शरीर मायने नही रखता
बस आंखों को आंखों की प्यास होती है
जब दो दिल एक साथ धड़कते हैं
वहां शायद जन्मों की प्यास होती है
गुलाब आखिर गुलाब ही होता है,
हर एक गुलाम की महक लगभग समान ही होती है
फिर क्या फर्क पड़ता है गर रंग उसका कोई भी हो,
मुहोब्बत तो आखिर इत्र के समान होती है।
खबर हो ही जाती है ज़माने को, जब मुहोब्बत बे लगाम होती है।
कुछ पलों का रिश्ता नही होता जनाब
यह सारी ज़िन्दगी फिर इसी के नाम होती है
अक्सर मर मिटते है लोग शक्ल पर किसी की
मगर इसकी पहचान तो दिलों से होती है
दिल से दिल मिलता है तो स्याह रातें भी सुहानी शाम लगती है और जब वही दिल टूटता है तो
यही रातें अक्सर हाथों में जाम रखती हैं
कोई जाकर बता दे उन्हें,कि गोरा रंग, घनी ज़ुल्फ़ें, रसीले होंठ सुराही दार गर्दन,
बादामी आंखे, मुहोब्बत इन बंदिशों की मोहताज़ नही होती।
उनकी सावली रंगत भी मेरा कलाम होती है
मुहोब्बत वो नही होती जिसे मिल जाए मंज़िल
यह तो वो शय है जो ज़िन्दगी ए अंजाम होती है
बाकी यह वो ज़ख्म है जिसमे आशकि सारे आम होती है
खुद मिट के भी इसे ज़िंदा रखते है लोग
मीरा यूँ ही बदनाम न होती है
मुहोब्बत है जनाब आसान कहाँ होती है

Saturday, 11 January 2020

सच और झूठ का महत्व



सच सच ही होता है और झूठ झूठ ही होता है फिर कहा जाता है किसी की भलाई के लिए बोला गया झूठ सच से बढ़कर होता है। लेकिन विडंबना देखिये कि फिर भी ''सत्यम शिवम सुंदरम'' ही कहा जाता है। हम मस्ती मज़ाक में भी सहजता से झूठ बोल जाते है और गंभीर विषय में भी, शायद इसलिए कि झूठ बोलने में हमें ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ता या फिर यूं कहें कि उसके परिणाम के बारे में ज्यादा सोचना नहीं पड़ता। इसलिए कभी भी कहीं भी झूठ बोलना सच बोलने से ज्यादा आसान होता है/हो जाता है। लेकिन सच बोलना हर वक्त संभव नहीं होता। अर्थात सच बोलते वक्त दिमाग सौ बार सोचता है तब कहीं जाकर सच बोलने की हिम्मत आती है। फिर भी जुबान लड़खड़ा ही जाती है। तभी शायद सत्य की उपमा देने के लिए सदैव एकमात्र व्यक्ति सत्यवादी हरीश चंद्र का नाम ही लिया जाता है। नहीं ?

किन्तु यदि मैं अपनी बात करूँ तो मैं तो साफ दिल से कहती हूँ कि मैं हमेशा सच नहीं बोलती। हाँ मगर इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सदैव झूठ ही बोलती हूँ। जरूरत के अनुसार जहां बेवजह झूठ बोलने की जरूरत नहीं होती वहाँ सहजता से सच निकलता है और मन भी यही कहता है कि जबरन क्यूँ झूठ बोलना। ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं होता सभी के साथ होता है। मगर स्वीकारता कोई-कोई ही है। इसलिए कोशिश सदैव सच बोलने कि ही रहती है। किन्तु ज़रूरत पड़ने पर झूठ बोलने से भी नहीं हिचकिचाते हम, इसे आप मानव प्रवृति (human nature) का नाम भी दे सकते है।

कहते है झूठ बोलने से कभी किसी का भला नहीं होता। क्यूंकि झूठ की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। सच है!लेकिन वर्तमान हालातों को मद्दे नज़र रखते हुए तो मैंने झूठ बोलने के कारण अधिकतर लोगों का भला होते ही देखा। और झूठ की उम्र सच से ज्यादा लंबी देखी। सच ज़्यादातर तकलीफ देता है। कभी कभी यह तकलीफ़ क्षणिक होकर गर्व, क्षमा, और सम्मान में बदल जाती है। किन्तु अधिकतर सच सामने वाले व्यक्ति को दुख ही पहुंचता है और सम्बन्धों में दरार डाल जाता है। नतीजा प्रेम के धागे में गाँठ पड़ ही जाती है। लेकिन इस सब के बावजूद भी यह कहना गलत नहीं होगा कि सच और झूठ इंसान के जुआ रूपी जीवन से जुड़े वो दो पाँसे हैं जिन्हें इंसान समय और परिस्थितियों को देखते हुए चलता है। इसलिए कभी धर्म के नाम पर धर्म युद्ध में भी छल का सहारा लेकर सत्य को बचाया गया। जैसे महाभारत में पांडवों के साथ यदि श्रीकृष्ण न होते तो उनका यह धर्म युद्ध जीतना असंभव था। लेकिन इस धर्म युद्ध में विश्व कल्याण एवं मानव कल्याण हेतु धर्म को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने ही छल की शुरुआत की तो इस तरह छल का दूसरा नाम ही झूठ हुआ इसी तरह रामायण में भी बाली का वध हो या रावण का स्वयं भगवान को भी छल का सहारा लेना ही पड़ा। कुल मिलकर सच को बचाने के लिए ही सही मगर छल तो ईश्वर को भी करना ही पड़ा ना !!! तो हम तो फिर भी इंसान है। 

यह सब लिखकर मैं यह साबित नहीं करना चाहती कि मैं झूठ बोलने की पक्षधर हूँ। यह तो केवल इस झूठ सच के विषय पर मेरी एक सोच है। क्यूंकि यूं भी झूठ बोलने की आदत कोई अपनी माँ के पेट से सीखकर नहीं आता बल्कि हम स्वयं ही जाने अंजाने अपने बच्चों को छोटी-छोटी बातों के लिए झूठ बोलने का पाठ पढ़ा जाते हैं और हमें स्वयं ही आभास नहीं होता। इसलिए मैं यह नहीं कहती की झूठ सच से अच्छा होता है लेकिन यह ज़रूर कहूँगी की झूठ से यदि सब कुछ बिखर जाता है तो उसी झूठ से कई बार सभी कुछ संभल भी जाता है। क्यूंकि हर एक इंसान के जीवन में कुछ सच ऐसे भी होते हैं जिन पर यदि झूठ का पर्दा पड़ा रहे तो ज़िंदगी सुकून से कट जाती है। अधिकतर मामलों में झूठ ज़िंदगी बचा लेता है कभी बोलने वाले की स्वयं अपनी जिंदगी तो कभी उस सामने वाले इंसान की जिंदगी जिस से झूठ बोला जारहा है/गया हो। 

अन्तः बस इतना ही कहना चाहूंगी कि इंसान की ज़िंदगी में दोनों (झूठ और सच) का ही अपना एक विशेष स्थान है, एक विशेष महत्व है, जिसके चलते दोनों में से किसी एक को नकारा नहीं जा सकता।        

Tuesday, 7 January 2020

जानेमन तुम कमाल करती हो।


जाने मन तुम कमाल करती हो...
उठते ही सुबह से सबका ख्याल करती हो
बच्चों को स्कूल भेज खुद काम पे निकलती हो
सारा दिन खट के जब घर में कदम रखती हो
चेहरे पर न शिकन कोई न थकान का कोई अंश
बच्चों के संग बच्चा बन जब हँसती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....

रात को भी अपने घर का सारा काम निपटा
पति के साथ प्रताड़ना सहकर भी
उसी पति का ख्याल रखती हो
उसकी लंबी हो आयु कि दुआ कर
हर रात अपना सब कुछ अर्पण करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....

घर से बेघर किये जाने पर भी
दूसरों के संग मन हल्का कर फिर से जी उठती हो
आंखों में नमी हंसी लबों पर
इस जुमले को तुम ही साकार करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो.....

अपने दम पर जीने वाली
अपने बच्चों को खुद कमाकर खाने वाली
एक जीवट स्त्री होकर भी
जाने क्यों तुम इतने जुल्मों सितम सहा करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो.....

नजाने किस मिट्टी से बनता है वो रब तुमको
जो हजार झंझवातों को सहकर भी तुम
हंसने मुस्कुराने का हुनहर रखती हो
कहाँ से लाती हो इतनी हिम्मत
कि सौ बार टूट के बिखरती हो
फिर भी हर सुबह खुद को समेट कर
एक नए दिन के साथ एक नयी शुरुआत करती हो
जानेमन तुम कमाल करती हो....