Monday 16 January 2012

किताब ज़िंदगी की ...


ज़िंदगी की किताब में 
एहसासों के पन्ने होते है  
जिन पन्नो पर कभी लिखी 
होती है मन की अभिव्यक्ति
तो कभी कुछ
कहे अनकहे से जज़्बात 
खुद से ही करी हुई हजारों बातें 
सागर से गहरे एहसास 
जिनसे समय के साथ बने 
न जाने कितने अनुभव लिखे होते हैं  
कभी कुछ अच्छे, तो कुछ बुरे भी 
और हर एक पन्ने पर लगा होता है एक बूक मार्क 
कभी एक मुस्कान का, तो कभी आँसुओं का  
जिनसे निर्माण हुआ कुछ भूली बिसरी यादों का 
इरादों का, कुछ सपनों का,कुछ अपनों का  
हर एक पन्ने पर बुना हुआ एक सपना 
जो था कभी अपना 
मगर अब देखो तो लगता है 
जैसे किसी मकड़ी का टूटा हुआ सा जाल 
जिसके टूट जाने पर भी उसमें जकड़ी हुई है एक मकड़ी 
क्यूंकि सपनों का मोह कभी छूटता ही नहीं 
और इसे पहले कोई छुड़ा सके अपना मोह 
अपने ही किसी सपने से 
पलट जाता है ज़िंदगी की किताब का एक और पन्ना 
फिर कोई नई उम्मीद और नाय सपना लिए 
कोशिश करने लगते है हम
हर एक नए पन्ने पर नए सिरे से 
ज़िंदगी की किताब का एक और नया पन्ना
लिखने के लिए 
मगर कितनी अजीब किताब है यह ज़िंदगी 
जिसे केवल खुद ही पढ़ा जा सकता है 
यदि दो भी किसी को पढ़ने के लिए यह किताब   
तो जाने क्यूँ उस पढ़ने वाले को हर एक पन्ना 
जैसे कोरा कागज़ ही नज़र आता है 
और हम यह आस लिए तांकते
रह जाते की शायद
यही हो वो जो समझ सके हमें
हमारी इस किताब के जरिये ही सही
मगर इसी नाकाम कोशिश में
एक दिन भर जाती है यह पूरी किताब
ज़िंदगी की ......
पल्लवी   

6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत किताब है .....जिंदगी की.

    ReplyDelete
  2. और हम यह आस लिए तांकते
    रह जाते की शायद
    यही हो वो जो समझ सके हमें
    हमारी इस किताब के जरिये ही सही
    मगर इसी नाकाम कोशिश में
    एक दिन भर जाती है यह पूरी किताब
    ज़िंदगी की ...... बिल्कुल सही कहा पल्लवी जी………सुन्दर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  3. सच में जीवन एक किताब है ...अब हम पर निर्भर करता है कि हम इसमें क्या लिखते हैं और कैसे लिखते हैं ..!

    ReplyDelete
  4. मगर कितनी अजीब किताब है यह ज़िंदगी
    जिसे केवल खुद ही पढ़ा जा सकता है
    यदि दो भी किसी को पढ़ने के लिए यह किताब
    तो जाने क्यूँ उस पढ़ने वाले को हर एक पन्ना
    जैसे कोरा कागज़ ही नज़र आता है ...अपनी किताब इतनी मोटी होती है कि क्या कोई किसी और को पढ़े ! और अपनी किताब भी कई बार तिलस्मी लगती है - भुल्भुलैये सी

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर लिखा है आपने...बधाई

    ReplyDelete