Thursday 22 December 2011



क्या तुमने कभी देखा है
किसी सागर को रंग बदले हुए 
क्या सच में ऐसा ही होता है, 
या ब्रह्म है ये मेरे अंतस का..... 
सुबह सवेरे जब सूरज आता है अपनी लालिमा 
लिए तब बिखर जाती  है
एक सुनहरी सी चादर समंदर के लहरों पर 
और जैसे-जैसे दिन चढ़ता जाता है......
तब जैसे सूरज की तपिश से पिघलता जाता है आसमान 
और कर देता हैं इस सुनहरी चादर को नीला
उसी सूरज के ढलने तक... 
एक ही दिन में, न जाने कितने स्वरूप बदल जाते हैं 
इस एक ही मंजर के ..
.मगर हर घड़ी बदलते स्वरूप की इस पीढ़ा को
 कोई नहीं सुन पाता 
सोचा है कभी क्यूँ ?
क्यूंकि शायद रोज़ के कोलहाल से भरी ज़िंदगी
कभी मौका ही नहीं देती 
कि कभी सागर किनारे बैठकर सोच भी सको,
 कि क्यूँ खारा है 
आखिर इतना 
समंदर का पानी 
क्यूँ मन की तरंगो की तरह मचलती लहरें
.रात के सनाटे में अकसर बदल जाती है 
जैसे सागर की चीख़ों में मगर खुद में ही मग्न लोग कभी
महसूस ही नहीं कर पाते इस समंदर में उठती
आवेग और पीढ़ा से भरी लहरों कि आह का अंतर्नाद   क्यूँ ???
क्यूंकि शायद कुछ बातें खामोशी के साथ ही अच्छी लगती है ... :)  

10 comments:

  1. bahut sunder samander ki terh gehre bhav..............

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  2. " खुद में ही मग्न लोग कभी महसूस ही नहीं कर पाते इस समंदर में उठती आवेग और पीढ़ा से भरी लहरों कि आह का अंतर्नाद .. क्यूँ "???

    बहुत गहराई है !

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  3. Bahut sundar aur bhavpoorna kavita...Pallavi ji apne samudra ke vibhinna rangon ko jivan ke sath jod kar bakhubi shabdon me piroya hai...
    Hemant

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  4. सागर की चीख़ों में मगर खुद में ही मग्न ,
    महसूस ही नहीं कर पाते इस समंदर में उठते ,
    आवेग और पीड़ा से भरी लहरों कि आह का अंतर्नाद क्यूँ.... ???
    क्यूंकि शायद कुछ बातें खामोशी के साथ ही अच्छी लगती है ... :)
    या दुसरे के पीड़ा से अलग रखने में ही आनन्द आता हो..... ???

    बहुत गहरी सोच लिए उत्तम रचना.... :)

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  5. सागर में जो रंग दिखते हैं वे अपने मन में प्रस्फुटित होते रंग होते हैं

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  6. क्यूंकि शायद कुछ बातें खामोशी के साथ ही अच्छी लगती है ..

    very true....

    beautifully expressed.

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  7. आपको कविताओं का ब्लॉग पहले ही बना लेना चाहिए था...बहुत ही खूबसूरत लिखा है...Beautiful!

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  8. वाकई लोगों को भावनाओं को समझने में रुचि नहीं है। आपने समंदर की रेत के दिनभर में बदलते रंगों को उकेर कर इसे मानव भावनाओं के साथ जोड़ कर संयुक्‍त अहसास बयान किया है।

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