Saturday 17 December 2011

अतीत....

कहते है, अतीत सभी का होता है 
 किसी का अच्छा 
तो किसी का बुरा 
अतीत के आईने से झाँकती यादें 
जैसे हिलते हुए पानी में  
धीरे-धीरे उतरता हुआ सा 
कोई प्रतिबिंब
जो, आहिस्ता-आहिस्ता 
साफ होता चला जाता है 
जैसे दर्पण हो कोई 
अतीत यदि मधुर हो  
तो अनायास ही उभर आती है 
उस प्रतिबिंब पर 
एक मोहक सी मुस्कान
जैसे पूर्णिमा के दिन 
जब चाँद अपने पूरे रुबाब पर 
हो कर बिखेरता है
सागर की लहरों पर अपनी मदमती छटा 
तो ऐसा लगता है
 जैसे लहरों ने औढ
लिया हो कोई सुनहरी आवरण 
मगर जब वही अतीत हो
 भयावह  
तो वही पूरनमासी बन जाती है, 
अमावस की रात
तब वही खूबसूरत लहरें 
धर लेती हैं काली नागन का रूप 
और डस लेती हैं, न सिर्फ 
वर्तमान को
बल्कि भविष्य को भी,
यह सब देख
 जब उतर 
आता है आँखों की नदीया में
 भरा खरा पानी 
तब उस खारे पानी से मिल
 बन जाता है 
 दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
जिसमें बना प्रतिबिंब
 डराता ही नहीं,
बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को  .... 

10 comments:

  1. बन जाता है
    दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
    जिसमें बना प्रतिबिंब
    डराता ही नहीं,
    बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को ....

    सच को झलकाती पंक्तियाँ

    सादर

    ReplyDelete
  2. आता है आँखों की नदीया में
    भरा खरा पानी
    तब उस खारे पानी से मिल
    बन जाता है
    दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
    जिसमें बना प्रतिबिंब
    डराता ही नहीं,
    बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को ...aisa hi hota hai...

    ReplyDelete
  3. जब उतर
    आता है आँखों की नदीया में
    भरा खरा पानी
    तब उस खारे पानी से मिल
    बन जाता है
    दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
    जिसमें बना प्रतिबिंब
    डराता ही नहीं,
    बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को ....

    ....यही जीवन का कटु सत्य है...

    ReplyDelete
  4. कल 19/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. Samvedanaon aur shabdon ka adbhut kolaj...Pallavi ji hardik badhai...bahut prabhavshali rachna..
    Hemant

    ReplyDelete
  6. जब उतर
    आता है आँखों की नदीया में
    भरा खरा पानी
    तब उस खारे पानी से मिल
    बन जाता है
    दर्द और पीड़ा का एक और समंदर
    जिसमें बना प्रतिबिंब
    डराता ही नहीं,
    बल्कि चिढ़ाता भी है इंसानी वजूद को ....
    गहरे उतरते शब्‍द ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  7. तब उस खारे पानी से मिल
    बन जाता है
    दर्द और पीड़ा का एक और समंदर

    शाश्वत को प्रतिबिंबित करती सुन्दर रचना...
    सादर....

    ReplyDelete
  8. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    ReplyDelete