Saturday, 22 February 2014

प्रेम

प्रेम क्या है ! इस बात का शायद किसी के पास कोई जवाब नहीं है। क्योंकि प्रेम की कोई निश्चित परिभाषा भी तो नहीं है। प्रकृति के कण–कण में प्रेम है। साँझ का सूरज से प्रेम, धरती का अंबर से प्रेम, पेड़ का अपनी जड़ों से प्रेम, जहां देखो बस प्रेम ही प्रेम। प्रेम एक शाश्वत सत्य है।
प्रभु की भक्ति भी भक्त का प्रेम है। देश भक्ति भी प्रेम है। मानवीय रिश्तों में प्रेम है। हवाओं में प्रेम है नज़ारों में प्रेम है। मौसम में भी तो है प्रेम। वसंत ऋतु से लेकर फागुन तक केवल प्रेम ही प्रेम तो है। राधा और कृष्ण का प्रेम। गोपियों और कान्हा का प्रेम फिर समझ नहीं आता जब चारों और केवल प्रेम ही प्रेम है।
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तो फिर यह घृणा कहाँ से आई।
यह ईर्ष्या कब कहाँ और कैसे समाज पर छायी।
प्रभु ने तो यह दुनिया प्रेममयी खीर ही बनाई।
फिर क्यूँ हमने इसमें घोल दी अपने स्वार्थ की खटाई।
जो नित नए दिन के साथ जीवन में घुल मिलकर बहता जाता है
बन नदी की पावन धार।
क्यूँ उसी प्रेम को बाँध दिया हमने,
देकर नाम कटार(समाज) 
जहां जन्में केवल जाती, धर्म, फसाद।
ना रही भक्ति न रही शक्ति
हावी हो गया ढोंग व्यापार।
जिसके चलते नष्ट हो गया विश्वास का कारोबार।
लिये घूमता है अब हर कोई 
लेकर स्वार्थ कटार।
बगुले की भांति अब सभी ताड़ में रहते है।
जब जिस को मिल जाए अवसर
वार करके ही दम लेते है।
तड़प देखकर मछली की अब
सब आनंद ही लेते हैं।
नेता हों या अभिनेता अब सब अभिनय ही करते हैं।
दया धर्म अब डूब मरने को चुल्लू भर पानी को तरसते हैं

25 comments:

  1. स्वार्थ ने प्रेम का स्वरुप ही बदल दिया है.... वैचारिक भाव

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    1. wo prem nahi jiska swarup badalta ho.prem to saswat hota hai ,akarshan ka swareup badalta rahta hai.

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  2. अब सब केवल अपने बारे में सोचते हैं .... स्वार्थ भर गया है सबके मन में ... इसीलिए प्रेम नहीं बस अभिनय रह गया है .

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    1. koi apne bare me nahi sonchata hai,sabhi dusre k bare me sonchate hain isliye to nafrat ki kaynat zinda.

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  3. प्रेम अधिकार से प्रभावित होने लगता है तो अपनी निश्छलता खोने लगता है।

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    1. prem adhikar se pare hota hai.jahan adhikar hai wahan prem nahi hota.prem mila hua hai use paane ki justju fakat bharam hai.

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  4. प्रेम के पंख कटे
    लोग कहां-कहां बंटे

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  5. वाह ! एक बहुत ही सार्थक, सशक्त एवँ खरी बात कहती सटीक रचना ! बहुत बढ़िया !

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    1. wahi rachna sarthak hoti hai jo aapse khud sampark kar le

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  6. माना बहुत सी नकारात्मकता है सब ओर.....
    मगर सब के बीच अपने सर्वाइवल के लिए जूझता "प्रेम " अब भी कहीं फल फूल रहा है....
    बहुत अच्छी रचना..

    अनु

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    1. prem nahi admi jujhata hai .admi prem ko na jana na pahchana magar likha bahut.

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  7. खुराफ़ाती दिमाग़ का राज है -भवनाएँ खदेड़ दी गईँ -प्रेम कहाँ रहे बेचारा !

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    1. jin bhaonaon ko khader di gaye wo bhi bhaonayen hi thi.prem to wahi hai jahan hona chahiye mar admi behara ho gaya.

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  8. शानदार रचना....

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  9. सब कुछ स्वार्थ से जुड गया है आज कल .. प्रेम भी अछूता नहीं रहा ...

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    1. swayamb ko sadhna swarth hai,magar iskr arth badal gaye hain

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  10. Replies
    1. sirf do sabd.admi ko sabdon se nahi hona chahiye.

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  11. प्रेम और घ्रणा दोनों ही मन में निवास करती हैं, यह हम पर निर्भर है कि हम किसको चुनते हैं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  12. .बहुत सार्थक सोच...एक एक पंक्ति गहन अहसासों से परिपूर्ण और दिल को छू जाती है

    आग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
    शब्दों की मुस्कुराहट पर ...खुशकिस्मत हूँ मैं एक मुलाकात मृदुला प्रधान जी से

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  13. बहुत खूब...सुंदर प्रस्तुति|||

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