यूं तो आज तुमसे मिले बिछड़े कई साल होने को आए
मगर आज भी ऐसा लगता है
जैसे आज की ही बात हो
यूं होने को तो बात तुमसे आज भी होती है, रोज़
जब कभी भी मैं तन्हा होती हूँ
उस वक्त तुमसे बात क्या
मैं तो तुम्हें देख भी सकती हूँ और छू भी सकती हूँ
क्यूंकि तुम कोई मेरा गुज़रा हुआ कल नहीं हो
बल्कि मेरे अंदर का एहसास हो
जिसे सिर्फ मैं ही महसूस कर सकती हूँ
क्यूंकि एहसास कभी मरा नहीं करते
लेकिन फिर भी नजाने क्यूँ
तुम्हारे इतने करीब होते हुए भी
मेरे मन के अंदर तुमसे कहने वाली बहुत सी बातें है
जो परत-दर-परत मेरी दिल की दीवारों पर हर रोज़
किसी रंग की भांति चढ़ती जाती हैं
शायद यह सोचकर की कभी तो मिलोगे तुम,
तब सब कहूँगी तुमसे
एक-एक बात बताऊँगी तुम्हें
और तब तुम्हें दिखाऊँगी मैं अपने दिल के वो बात रूपी सारे रंग
जो शायद मैं तुम से मिलने की आस में,
अपने दिल पर बस चढ़ती गयी थी
जो आज एक दीवार पर पड़ी किसी रंग की एक पपड़ी के रूप में
तुम्हारे सामने गिरने को आतुर है
मगर सुनो डर भी बहुत लगता है मुझे, कहीं ऐसा न हो
की तुम लौटकर वापस ही ना आओ, या हम अब कभी मिल ही ना पायें
तो फिर क्या होगा, तब कहीं ऐसा न हो की
यह दीवार पर पड़ी कई परतों से बनी एक पपड़ी दीवार समेत ही गिर जाये
और शेष रह जाये महज़ वो खाली खंडहर
जो कभी तुम्हारी यादों से सजी एक खूबसूरत इमारत हुआ करती था ....
तो फिर क्या होगा, तब कहीं ऐसा न हो की
ReplyDeleteयह दीवार पर पड़ी कई परतों से बनी एक पपड़ी दीवार समेत ही गिर जाये
और शेष रह जाये महज़ वो खाली खंडहर
जो कभी तुम्हारी यादों से सजी एक खूबसूरत इमारत हुआ करती था ....
ये डर क्यों ? सदा खुले रखें मन के द्वार और कभी न हो संवादहीनता .
सुंदर अभिव्यक्ति. उपरोक्त ब्लॉग का नाम भी दूसरे ब्लॉग की तरह से हिन्दी और अंग्रेजी में करें.
ReplyDeleteएक-एक बात बताऊँगी तुम्हें
ReplyDeleteऔर तब तुम्हें दिखाऊँगी मैं अपने दिल के वो बात रूपी सारे रंग
जो शायद मैं तुम से मिलने की आस में,
अपने दिल पर बस चढ़ती गयी थी
behtreen bhavmayi prastuti ke liye badhai
तुम्हारे इतने करीब होते हुए भी
ReplyDeleteमेरे मन के अंदर तुमसे कहने वाली बहुत सी बातें है
जो परत-दर-परत मेरी दिल की दीवारों पर हर रोज़
किसी रंग की भांति चढ़ती जाती हैं
शायद यह सोचकर की कभी तो मिलोगे तुम,
तब सब कहूँगी तुमसे
एक-एक बात बताऊँगी तुम्हें
और तब तुम्हें दिखाऊँगी मैं अपने दिल के वो बात रूपी सारे रंग
जो शायद मैं तुम से मिलने की आस में,
अपने दिल पर बस चढ़ती गयी थी so wonerful.......mujhe laga jaise aapne mere dil ki bat kah di ho ...... fursat se ek bar fir aaoongi aapki purani posts parhne .......
wonderful*
ReplyDelete:) अच्छी कविता है.... :)
ReplyDeleteप्रेम के मजबूत नीव पर टिकी इमारतें गिरा नहीं करतीं - वो दुनिया के लिए मिसाल बन जातीं हैं - ताजमहल की तरह ।
ReplyDeleteशानदार कविता ।
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