Thursday, 25 July 2013

ऐसा तो ना था मेरा सावन ...


देखो ना सावन आने वाला है
यूं तो सावन का महीना लग गया है
मगर मैं भला कैसे मान लूँ कि सावन आगया है 
क्यूंकि प्रिय ऐसा तो ना था मेरा सावन 
जैसा अब के बरस आया है
  मेरे मन की सुनी धरती 
 तो अब भी प्यासी है, उस एक सावन की बरसात के लिए 
जिसकी मनोरम छवि अब भी 
रह रह कर उभरती है
मेरे अंदर कहीं 
जब मंदिरों में मन्त्रौच्चार से गूंज उठता था 
मेरा शहर 
बीलपत्र और धतूरे की महक से
महक जाया करता था मेरा घर 
वो आँगन में पड़ा करते थे 
सावन के झूले 
वो हरियाली तीज पर 
हाथों में रची हरी भरी मेंहदी की खुशबू 
वो अपने हाथो से बनाना राखियाँ 
वो एक कच्चे धागे से बंधे हुए  
अटूट बंधन
जाने कहाँ खो गया है अब यह सब कुछ  
अब कुछ है 
तो महज़ औपचारिकता
नदारद है 
वो अपनापन
जैसे सब बह गया इस साल
न अपने बचे, न अपनापन
तुम ही कहो ना प्रिय यह कैसा सावन 
जहां अब 
कहीं कोई खुशी दूर तक दिखायी नहीं देती  
अगर कुछ है 
तो वो है केवल मातम 
जहां अब बाज़ार में फेनी और घेवर की मिठाइयाँ नहीं 
बल्कि मासूम बच्चों के खाने में घुला जहर बिक रहा है
जहां अब सावन की गिरती हुई बूंदों से 
मन को खुशी नहीं होती  
बल्कि अपनों के खोने का डर ज्यादा लगता है
मेंहदी की ख़ुशबू अब 
खून की बू में बदल गयी है
सावन के झूले अब बच्चों की अर्थियों में बदल रहे है     
ऐसा तो ना था मेरा सावन, कभी ना था, जैसा अबके बरस दिख रहा है.... :(  


14 comments:

  1. सावन के मौसम का वातावरण बदल रहा है ... पुरानी बातें अब कहां ... अब तो लगता है राजनीति मौसम पे भी हावी हो रही है ...

    ReplyDelete
  2. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 27/07/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. समय के साथ जाने कितना कुछ बदल गया है ..... संवेदनशील भाव

    ReplyDelete
  4. सावन तो वही है हम बदल गए हैं |बढ़िया रचना है |
    आशा

    ReplyDelete
  5. सब कुछ बदल गया है, फिर सावन भी बदलेगा ही, बहुत सुंदर रचना

    पुस्तक चर्चा -१,,,,,,, मेरे गीत (सतीश सक्सेना )
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

    ReplyDelete
  6. सावन के रंगों को हमने ही दिया है अंधेरा।

    ReplyDelete
  7. बहुत बडिया लिखा है

    ReplyDelete
  8. ये सावन तो मन को छू गया

    ReplyDelete
  9. सच में अब पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा है...बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  10. रसभरे सावन की दुर्दशा पर संवेदना शब्‍दों की फुहार....बढ़िया,सुन्‍दर।

    ReplyDelete
  11. दिन जो पखेडू होते.... पिंजरे मे मैं रख लेता...

    ReplyDelete