Saturday, 20 July 2013

कविता ...एक कोशिश


कुछ मत सोचो 
न कोई रचना, ना ही कविता
मैं यह सोचूँ 
काश के तुम बन जाओ कविता 
जब चाहे जब तुमको देखूँ 
जब चाहे जब पढ़ लूँ तुमको 
ऐसी हो रसपान कविता 

हो जिसमें चंदन की महक पर  
लोबान सी महके वो कविता 
हो जिसमें गुरबानी के गुण 
रहती हो गिरजा घर में वो, 
प्रथनाओं में लीन कविता 

सपनीली आँखों में चमके 
तारों सी रोशन हो कविता 
हो उदास अगर कोई भी मन 
बन मुस्कान उन अधरों पर  
देखो फिर मुसकाये वो कविता 

भूख से रोते बच्चे को देखकर  
झट रोटी बन जाये कविता 
माँ की लोरी में घुलकर फिर   
मीठी नींद सुलाये कविता  
बेटी सी मासूम कविता 
पिता का मान सम्मान कविता 
कहलाए वो तेरी भी और मेरी भी बन जाये कविता....

21 comments:

  1. कविता कविता कहते कहते ये तो कविता ही बना डाली :-)) .......बढ़िया ।

    ReplyDelete

  2. बेहतरीन रचना जी, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  3. kash aise hi ban jati kavita... :) bahut khub... behtareen :)

    ReplyDelete
  4. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

    ReplyDelete
  5. अत्यंत सजीव एवं भावपूर्ण रचना ...बहुत बधाई

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  8. एक दम दिल से निकली बेहतरीन

    ReplyDelete
  9. वाह! आपने तो कविता के कई रूप दिखा दिए।
    कृप्या यहाँ http://rajeevranjangiri.blogspot.in/ भी पधारें।

    ReplyDelete
  10. असल कविता तो यही होती है जो समय के अनुसार आपसी संबंध बना लेते हैं ... भाव मय रचना ...

    ReplyDelete
  11. अंतिम पक्तियां बहुर सुन्दर है
    latest post क्या अर्पण करूँ !
    latest post सुख -दुःख

    ReplyDelete
  12. बहुत ही प्यारी और नेक ख्याल कविता ...!!

    ReplyDelete
  13. खुबसूरत मनभावन कविता जीवन के रंगों में रची

    ReplyDelete
  14. वाह बहुत सुंदर, ढेरो रूप कविता के,

    यहाँ भी पधारे
    गुरु को समर्पित
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  15. आपकी कविता के मायने ही कुछ और है .... बहुत ही सुन्दर व भावपुर्ण अभिव्यक्ति.... बधाई..

    ReplyDelete
  16. बहुत ही उत्तम भाव ! अन्यथा न लें तो एक पाठक पर्सनल व्यू के रूप मे बोलना चाहूँगा कि अच्छी लय में होते हुए भी बीच-बीच मे लय टूट रहा है ।
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  17. जी ज़रूर दयानन्द जी, इसमें अन्यथा लेने की तो कोई बात ही नहीं है। पाठकों के नज़रिये से ही तो अपनी गलतियों पर ध्यान जाता है और आगे बढ़ने एवं अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए इस रचना को एक कोशिश का नाम दिया है। आपने मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी से मेरा मार्गदर्शन किया उसके लिए आभार...उम्मीद है आप से आगे भी संवाद बना रहेगा। धन्यावाद...

    ReplyDelete