माना के रिश्ता था कभी हमारे बीच प्यार का मगर क्या सच में वो प्यार ही था
या हम उसे प्यार समझ बैठे थे
मगर आज ज़िंदगी के जिस मोड पर खड़े हम
तुम ही बताओ क्या वो सच में प्यार था।
दो अंजान लोग विचारों के माध्यम से मिले,मिलकर साथ चले
विचारों के मिलन से ही नज़दीकियाँ बढ़ी तो क्या विचारों का मिलाप ही प्यार है ???
न.... मुझे तो नहीं लगता कि एक सी सोच और भावना का होना ही प्यार कहलाता है
क्यूंकि ऐसे तो न जाने कितने लोग होंगे इस जहां में जिनसे मेरी तुम्हारी सोच मिलती होगी
तो क्या हमे उन सब से प्यार हो जाएगा
गर ऐसा होता तो शायद आज इस दुनिया का नक्शा ही कुछ ओर होता, !!!
नहीं, तुम्हें नहीं लगता ना ऐसा.....मैं जानती हूँ, तुम मन ही मन मुस्कुरा रहे हो,
शायद हंस भी रहे हो सोच-सोच कर कि कैसे पागल लड़की है यह
कुछ भी सोचती है कुछ भी कहती है
भला प्यार का सोच से क्या वासस्ता है ना !!! यही सोच रहे हो न तुम ?
शायद तुम ही सही हो मुझे भी यही लगता है
प्यार का सोच से कोई वास्ता हो ही नहीं सकता
क्यूंकि प्यार तो उनके बीच में भी देखा है मैंने
जिनकी सोच नदी के दो किनारों कि तरहा होती है ,
मगर तब भी प्यार सांस लेता है, उनकी रूह में कहीं न कहीं,
तो फिर हमारे बीच जो कुछ था, वो प्यार था या जो आज है वो प्यार है
हमारी सोच और भावनायें तो कल भी मिलती थी और आज भी मिलती है।
मगर मैं इस रिश्ते को कोई नाम देना नहीं चाहती। न प्यार का और न ही दोस्ती का,
जाने क्यूँ मैं आज तक समझ ही नहीं सकी कि लोग जब प्यार में बिछड़ जाते है,
तो आगे जाकर वो इस रिश्ते को दोस्ती का नाम देकर क्यूँ चलाया करते है
क्यूँकि प्यार दोस्ती में नहीं बदल सकता है। हाँ दोस्ती ज़रूर प्यार में बदल जाती है।
इसलिए में अपने इस रिश्ते को इन नामों के माया जाल से बचाकर रखना चाहती हूँ।
मेरी नज़र में हमारे बीच जो भी है वो ना तो प्यार है, न दोस्ती
सिर्फ विचारों और भावनाओं का रिश्ता है हमारा
तो क्या ज़रूरी है इसे कोई न कोई नाम दिया ही जाये
क्या बिना किसी रिश्ते का नाम दिये, दो लोग आपस में अपने सुख दुख नहीं बाँट सकते।
क्या ज़रूर है दो इन्सानों के बीच बने आपसी समझ के रिश्ते को कोई नाम देना
क्या बिना किसी रिश्ते कि मोहौर लगे दो
इन्सानों को उनकी आपसी समझ के बल पर जो कि हर रिश्ते कि नीव होती है
उन्हे जीने का अधिकार नहीं दिया जा सकता
यूं भी मकान बन जाने के बाद तो लोग सिर्फ मकान को देखते है
क्यूंकि नीव को कोई नहीं नाम नहीं होता
तो फिर रिश्तों में नाम क्यूँ ....
नीव को कोई नहीं नाम नहीं होता
ReplyDeleteपर मकान का अस्तित्व वही संभालता है
सुन्दर रचना
is post par mujhe gulzaar sahaab ka likha wo geet yaad aagaya .... pyaar ko pyaar hi rehne do koi naam na do ... :)
ReplyDeleteप्यार के अहसास का अच्छी पड़ताल . हर कोण से . सुँदर .
ReplyDeleteमेरी नज़र में हमारे बीच जो भी है वो ना तो प्यार है, न दोस्ती
ReplyDeleteसिर्फ विचारों और भावनाओं का रिश्ता है हमारा
तो क्या ज़रूरी है इसे कोई न कोई नाम दिया ही जाये
behtreen abhivyakti , bahut umda marmik prastuti
बहुत बढिया
ReplyDeleteइसलिए में अपने इस रिश्ते को इन नामों के माया जाल से बचाकर रखना चाहती हूँ।
ReplyDeleteमेरी नज़र में हमारे बीच जो भी है वो ना तो प्यार है, न दोस्ती
सिर्फ विचारों और भावनाओं का रिश्ता है हमारा
तो क्या ज़रूरी है इसे कोई न कोई नाम दिया ही जाये
.AKSAR RISHTO KI "CHHIPPI" LAGANE PAR SARAL SE RISHTE APNI SARALTA KHO DETE HAIN.
ReplyDelete♥
आदरणीया पल्लवी जी
सस्नेहाभिवादन !
सुंदर रचना है…
क्या बिना किसी रिश्ते का नाम दिये, दो लोग आपस में अपने सुख दुख नहीं बाँट सकते ?
क्या ज़रूरी है दो इन्सानों के बीच बने आपसी समझ के रिश्ते को कोई नाम देना ?
क्या बिना किसी रिश्ते की मोहर लगे दो इन्सानों को उनकी आपसी समझ के बल पर जो कि हर रिश्ते कि नीव होती है ; जीने का अधिकार नहीं दिया जा सकता ?
याद आ गया मुझे भी यह गीत -
# प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो …
वैसे , सच कहूं तो आपकी एक कविता में कई कविताएं अंतर्निहित हैं …
साधुवाद !
भावपूर्ण सृजन के लिए आभार !
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
थोड़ी देर से ,कारण सबको पता है....
ReplyDeleteजाने क्यूँ मैं आज तक समझ ही नहीं सकी कि लोग जब प्यार में बिछड़ जाते है,
तो आगे जाकर वो इस रिश्ते को दोस्ती का नाम देकर क्यूँ चलाया करते है ....
क्यूँकि प्यार दोस्ती में नहीं बदल सकता है। हाँ दोस्ती ज़रूर प्यार में बदल जाती है।
सत्य कथन अच्छे भी लगे.... !!