Wednesday, 21 March 2012

है कोई जवाब ?


कहते हैं खुशी बांटने से बढ़ती है और ग़म बाटने से घटता है
यह भी कहा जाता है कि अति हर चीज़ कि बुरी होती है
फिर चाहे वो प्यार ही क्यूँ न हो
कितना कुछ कहा जाता है न इस प्यार के बारे में
लेकिन यदि कभी यही प्यार बेवफाई कि वजह बन जाये तो,
तुम मुझे पूरी शिद्दत से चाहो और मैं तुम्हे धोखा दे जाऊन तो
तो क्या तब मुझे माफ कर सकोगे तुम क्यूंकि प्यार में तो कोई शर्त नहीं होती
प्यार तो नाम है त्याग का,प्यार में सिर्फ पाना प्यार नहीं होता
बल्कि प्यार में अपना सर्वस्व देदेना प्यार कहलाता है

जैसे की तुमने मुझे दिया
लेकिन यदि फिर भी बहक जाये मेरे कदम तो क्या माफ कर सकोगे तुम
नियति के खिलाफ जाकर मेरे साथ इंसाफ कर सकोगे तुम
यूं तो बिना किसी अपराध के अग्नि परीक्षा सदियों से सदा औरत ही देती आई है
लेकिन यदि आज में अपना अपराध मानकर, लूँ तुम्हारे प्यार की परीक्षा
तो क्या सब कुछ भुला कर मुझे माफ कर सकोगे तुम
यूं तो आज ज़माना बराबरी का है, मगर क्या तुम मेरा यह सच जानकर भी
मुझे वैसे ही चाह सकोगे जैसे कभी पहले चाहा था तुमने

मैं जानती हूँ कहना बहुत आसान होता है मगर निभा पाना उतना ही मुश्किल
क्यूंकि हो तो तुम भी आखिर एक इंसान ही कोई भगवान नहीं हो ,
तुम्हारे अंदर भी एक दिल है जो धड़कता है, दिमाग है, जो सोचता है जज़्बात हैं जो मचलते है
मगर क्या इन सब को परे रखकर केवल प्यार का दामन थाम
क्या तुम दे पाओगे मेरा साथ मेरे सच के साथ
क्या निभा पाओगे शादी के फेरों में दिया गया अपना वो वचन
कि हर पल हर स्थिति में तुम दोगे मेरा साथ,

शायद नहीं क्यूंकि दुनिया का हर पुरुष प्यार करना तो बहुत अच्छे से जानता है
मगर प्यार निभाना केवल स्त्रियॉं को आता है
यकीन न हो मेरी बात का यदि तो इतिहास उठाकर देखलों
प्यार में समझौता और सहनशीलता कि मूरत केवल स्त्री को ही कहा जाता है
मगर जब यही बात किसी पुरुष पर आती है तो मात्र एक धोबी के कहने भर से
एक पतिवृता स्त्री को घर से बेघर कर दिया जाता है जंगलों में भटकने के लिए
आखिर कब तक कृष्ण बहलाते रहेगे यह कहकर राधा का मन
कि मैं इसलिए विवाह किया रुक्मणी से प्रिय
क्यूंकि विवाह में दो लोगों कि जरूरत होती है, और हम तो एक ही है ना

आखिर क्यूँ और कब तक चलेगा
यह प्यार में समर्पण, सहनशीलता, और त्याग का यह एक तरफा खेल
अरे वह तो फिर भी भगवान थे, रही होगी उनकी कोई मजबूरी
जिसके चलते उठाना पड़े होंगे उनको यह कदम शायद...मगर मैं तो इंसान हूँ,
और इस नाते मुझे शिकायत है सदियों से चले आरहे इस एक तरफा खेल से
मानती हूँ भूल मेरी है गुनहगार भी मैं ही हूँ मगर तभी प्यार है मुझे तुमसे
अब तुम्हारी बारी है जवाब तुमको देना है।
क्या अब भी मेरे सच के साथ तुम्हें कुबूल है मेरा प्यार

रही बात मेरी तो मेरे दिल के अंदर बने तुमसे कि गई बेवफाई
के जख्मो से खून का रिसना तो बादस्तूर अब भी जारी है
भले ही वो एक भूल थी मेरी,जिसके चलते
भावनाओं ने ही भावनाओं के तूफानों में झोंक दिया मेरा अस्तित्व को  
मगर मुझे तुम से प्यार तब भी था और अब भी है
इसलिए शायद कदम बढ़ना तो चाहते है मेरे, मगर बढ़ नहीं पा रहे,

जाने क्यूँ अंजाने में ही सही जख्म भी मैंने ही दिया है तुमको,
मगर तब भी दर्द मुझे ही हो रहा है
फिर भी ना जाने मुझे ऐसा क्यूँ लगता है, कि मैं मर चुकी हूं
मगर मुरदों को तो दर्द नहीं हुआ करता न फिर मुझे क्यूँ हो रहा है
क्यूंकि शायद यूं तो मेरी आत्मा मर ही चुकी है
मगर उसी आत्मा कि शांति के लिए शरीर का मिट्टी में मिलना अभी शेष है......  

5 comments:

  1. कहते हैं खुशी बांटने से बढ़ती है और ग़म बाटने से घटता है यह भी कहा जाता है कि अति हर चीज़ कि बुरी होती है फिर चाहे वो प्यार ही क्यूँ न हो कितना कुछ कहा जाता है न इस प्यार के बारे में लेकिन यदि कभी यही प्या...
    बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......

    my resent post


    काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

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  2. प्यार से भी जरुरी कई काम हैं, प्यार सब कुछ नहीं आदमी के लिए....शायद "अति" के बाद प्यार को "दीवानापन" कहा जाता है....दीवानापन अर्थात पागलपन.....मेरे हिसाब से पागलपन ठीक नहीं......क्योंकि "अति हर चीज़ कि बुरी होती है
    फिर चाहे वो प्यार ही क्यूँ न हो......." महज एक टिपण्णी है अन्यथा ना लें,
    आभार ..............

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    1. अन्यथा लेने की तो कोई बात ही नहीं आप आये मेरी इस पोस्ट पर और जो कुछ भी आपने महसूस किया वही लिखा यही मेरे लिए बहुत है और यही मेरी चाह कि जो भी मेरी पोस्ट पर आये वो अपने विचारों से मुझे अवगत कराये न की कोई बनावटी टिप्पणी दे जाये आभार...

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  3. कुछ कुछ आध्यात्मिक दर्शन प्राप्त हुआ।

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  4. कुछ बात तो ठिक है मगर कुछ गलत भी क्‍योंकि कहने और करने में बहुत अन्‍तर होता है जो बात आप कह सकते हैं वक्‍त आने पर आप स्‍वयं ही इस बात को नहीं समझ पाते ऐसा अक्‍सर होता है राय देने वाले को भी कभी कभी राय की जरूरत पड जाती है और ये तो जीवन है किसी को प्‍यार मिलता है किसी को नहीं किसी को अपना प्‍यार त्‍याग कर निभाना पडता है तो किसी को साथ रहकर हर इन्‍सान की कहानी एक नहीं है सो प्‍यार का भी कोई अन्‍त नहीं कोई टिप्‍पणी नहीं

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