गीली मिट्टी के बर्तन सी ज़िंदगी
जैसे हो हमारा बचपन
जिसे कुम्हार अपने हाथों से
सहेज कर बनाता है एक घड़ा और एक सुराही
दोनों को ही डाल देता है आग मे
तपाकर पक्का करने के लिए
बिना किसी भेद के क्यूंकि
उसे अपने दोनों ही बर्तन प्यारे है
वह तो दोनों को ही
आग में तपा कर पक्का करना चाहता है
चाहे वो सुराही हो या घड़ा
और ना ही आग ही भेद करती है दोनों को
पक्का कर मजबूती प्रदान करने में
तो फिर क्यूँ हम भेद करने
लगते है जीवन रूपी आग में
एक स्त्री को ज्यादा पक्का करने के लिए
क्या एक पुरुष को भी
उस ही जीवन अग्नि में तपकर
उतना ही पक्का होना ज़रूरी नहीं
जितना की एक स्त्री के लिए है
तो फिर क्यूँ भूल जाते हैं हम
जब वही आग जरूरत से ज़्यादा हो जाये
तो जला भी सकती है उन्हीं बर्तनो को
मगर एक स्त्री को जीवन रूपी आग में
एक बेटी के रूप में, तो कभी एक बहु के रूप में
छोड़कर जैसे भूल ही जाते हैं हम
और छोड़ देते हैं उसे सदा के लिए
उस आग में जलने को
जिसमें वह चुप रहकर भी जलती है
और यदि बोलना चाहे कुछ
तो जला दी जाती
क्यूँ नारी जीवन बचपन से लेकर
अतिम सांस तक एक अग्नि परीक्षा
ही बना रहता है और जब तक
एहसास हो हमें उस तपिश का
तब तक शेष रह जाता है
केवल धुआँ और राख़
कभी भावनाओं के रूप मे,
तो कभी मिटे हुए अस्तित्व को याद करने के लिए ....
केवल धुआँ और राख़
कभी भावनाओं के रूप मे,
तो कभी मिटे हुए अस्तित्व को याद करने के लिए ....
केवल धुआँ और राख़
ReplyDeleteकभी भावनाओं के रूप मे,
तो कभी मिटे हुए अस्तित्व को याद करने के लिए ....
nari jeevan ki trasdi ka sunder chitran kiya hai............
ReplyDeleteक्यूँ नारी जीवन बचपन से लेकर
ReplyDeleteअतिम सांस तक एक अग्नि परीक्षा
ही बना रहता है... आरम्भ से यह सौगात मिली उसे
sach kaha aapne. kashmokash ko sunder shabdo se sajaya hai. apni sthiti badalne k liye naari ko khud hi us aag se apne aap ko baahar nikaalna hoga....
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ये हमारे समाज का कडुवा रूप है ... नारी पे हर हुक्म चालान पुरुष समाज अपना हक समझता है ... भावों को शब्द दिए हैं आपने ...
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमगर एक स्त्री को जीवन रूपी आग में
ReplyDeleteएक बेटी के रूप में, तो कभी एक बहु के रूप में
छोड़कर जैसे भूल ही जाते हैं हम
और छोड़ देते हैं उसे सदा के लिए
उस आग में जलने को
bilkul mamshaprshi.....ak behatareen rachana.
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश । धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिंदी दुनिया
Bahut Sundar , samvedna bhari hakeekat par ummeed hai ki raakh ke dher me dabi huyi chingaariyaan phooteingee ek din - Aabhaar Yogesh Sharma
ReplyDeleteBahut Sundar , samvedna bhari hakeekat par ummeed hai ki raakh ke dher me dabi huyi chingaariyaan phooteingee ek din - Aabhaar Yogesh Sharma
ReplyDeleteबहुत सुंदर सन्देश देती रचना,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
समर्थक बन गया हूँ,आप भी बने,खुशी होगी,....
ReplyDeleteसहज प्रतीक की मार्फ़त सब कुछ कह दिया .समाज से संवाद करती सार्थक रचना .
ReplyDeleteमेरे इस ब्लॉग पर भी आकर आपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत करने के लिए आप सभी पाठकों एवं मित्रों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूं हीं संपर्क बनाए रखें...आभार
ReplyDeleteआपकी कविताओं का रंग भी गाढ़ा है. बहुत खूब.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteBahut achhi kavita pallavi ji..
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