Thursday 29 August 2013

ख़याली पुलाव या एक वृक्ष, क्या है ज़िंदगी ?

ख़याली पुलाव कितने स्वादिष्ट होते है ना 
झट पट बन जाते है
इतनी जल्दी तो इंसटेंट खाना भी नहीं बन पाता 
मगर यह ख़याली पुलाव तो, 
जब तब, यहाँ वहाँ, कहीं भी आसानी से उपलब्ध हो जाते है 
बस एक वजह चाहिए होती है इन्हें पकाने की 
वो मिली नहीं कि पुलाव तैयार है
....................................................................

लेकिन क्या सचमुच ख़्याल, पुलाव की ही तरह होते है 
मुझे तो ऐसा लगता है, 
जैसे ख़्याल 
किसी पेड़ पर लगे पत्तों की तरह होते हैं 
आपका अपना अस्तित्व एक वृक्ष का रूप होता है 
और आपके ख़्याल उस वृक्ष की पत्तियाँ 
जब ख्यालों का कारवाँ बढ़ता है 
तब न जाने कितने ख़यालों के पंछी आकर
आपकी आँखों में अपना बसेरा बना लेते हैं 
और किसी चित्रपट पर चल रहे किसी चलचित्र की तरह 
दृश्य दर दृश्य एक के बाद एक ख़्याल बदलता चला जाता है 
फिर अचानक से एक वास्तविकता की आँधी आती है 
और अपने साथ उड़ा ले जाती है 
आपके ख़्वाबों और ख़्यालों के सारे पंछियों को 
 तब आँखें वीरान सी रह जाती है
ख़्यालों के पंछियों के घरौंदों से लदा वृक्ष 
पतझड़ के बाद पत्तों से रिक्त वृक्ष की तरह रह जाता है 
अकेला, उजाड़, सुनसान 
मगर मन में आस और आँखों में प्यास 
उस एक उम्मीद की किरण को मरने नहीं देती 
और फिर एक बार किसी नई चाहत की नमी पाकर 
ख्यालों का वृक्ष फिर उसी तरह हरा भरा होने लगता है 
जैसे 
बारिश के बाद आयी नई नई कोपलों की हरियाली 
शायद ज़िंदगी इसी को कहते हैं....

19 comments:

  1. सच्चे और निर्मल भाव । हर एक नई कोपल एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत ही तो होती है

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  2. प्रभावी के साथ प्रवाही भाषा कहना अनुचित न होगा

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  3. यह भी सही है -एक कवि के ख़याल और एक शेखचिल्ली के, कितना अंतर!

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  4. सही कहा यही उम्मीद तो सब कुछ है.... जो हमें फिर से प्रेरित करती है बहुत बढ़िया .....

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  5. अक्सर हकीकत पहले पहल ख्वाब ही होती है !!
    जीवन के लिए उम्मीद जरुरी है !

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  6. ख्याल की कार्यप्रणाली का सुंदर नक्शा खींचा गया है. सकारात्मक सोच का महत्व साफ उभर कर आता है. बहुत खूब.

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  7. यही उम्मीद जीवंतता को बनाए रखती है ।

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  8. मगर मन में आस और आंखो में प्‍यास ........ सच कहा

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  9. बारिश के बाद आई नई नई कोपलों की हरियाली शायद जिंदगी इसी को कहते है...बहुत खूब लिखा

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  10. ख्याल उड़ते हुए बादलों की तरह भी होते हैं जिनके पीछे साफ़ आसमान भी चमकता है |

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  11. वाह...बेहद सुंदर शब्दों से पिरोया है जिंदगी को...एक सुंदर रचना...

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  12. उम्मीद पर दुनिया कायम है

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  13. कोई सन्‍देह नहीं कि वास्‍तविकता की आन्‍धी में सारे खयाल, विचार, सपने बह जाते हैं। ठूंठ से वीरान रह जाते हैं सभी। तब भी एक चाहत जन्‍म लेती है। एक आस उठती है। इसी को जीवन कहते हैं। अच्‍छा लगा यह कविता पढ़कर।

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  14. वाह ! खयाली पुलाव तो बहुत बढ़िया है बहुत बधाई पल्लवी ।

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  15. ख्याली ही सही ... पर ये पुलाव पकाने जरूरी हैं ऊर्जा के लिए ...

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  16. शायद जिंदगी इसी को कहते हैं ....सही है ख्याली पुलाव भी जरूरी हैं
    सुंदर रचना

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