Saturday 25 May 2013

ज़िंदगी की सारी खुशियाँ जैसे मौन हो कर रह गयी...

ज़िंदगी की सारी खुशियाँ जैसे मौन हो कर रह गयी
वो छोटे-छोटे खुशनुमा पल
वो गरमियों की छुट्टियों में चंगे अष्टे खेलना
वो रातों को सितारों की चादर तले देखना
वो करना बात कुछ आज की, कुछ कल के सपनों को देखना

वो लगाना आँगन में झाड़ू और पानी का फिर फेंकना
प्यासे पेड़ों को पानी दे, वो पत्थरों पर खींच के खांचा
फिर लंगड़ी-लंगड़ी खेलना
वो कैरी का पना
वो पुदीने की चटनी
वो भर भर उंगली से चाटना

वो नानी के घर आँगन तले नीबू का रस निकालना
वो बना के शिकंजी झट शक्कर उसमें फिर घोलना
वो गन्ने का रस
वो जलजीरे के मटके
वो छागल का पानी
वो ठेले पे बिकते थे खीरे के टुकड़े
यूं लगते थे जैसे हो हीरे के टुकड़े
वो माँ का, आँचल से पसीना पोंछना

ज़िद कर-कर के खाना, वो मटके की कुल्फी
वो घड़ी-घड़ी शरबत बना के पीना
वो रसना
वो रूहफ़्ज़ा
वो शर्बत-ए-आजम
वो ठंडी बर्फ से फिर कॉफी बनाना

मगर अब ना नानी का घर है
क्यूंकि कुछ न कुछ सीखने की फिकर है
न रहा शर्बत तो क्या,? कोल्ड ड्रिंक्स क्या भला शर्बत से कम है!!!
चटनी का क्या है, सॉस जो यहाँ है।

माँ के आँचल से चेहरा छिला है।
वेट टिशू भला किस मर्ज की दवा है।
आइसक्रीम भला किसे कब बुरा लगा है।
पर मटके न जाने कब से बेधुला है।

गर्मी बहुत है कि खेलना मना है
इसलिए शायद
यह वीडियो गेम और अब आई पेड चला है।
लगता है अब तो ऐसे, जैसे घर में हिन्दी बोलना भी गुनाह है :-)
सच इस सब में जैसे ज़िंदगी ही गुम हो के रह गयी
के यूं लगता है अब तो जैसे
ज़िंदगी की सारी खुशियाँ मौन हो कर रह गयी ... 

25 comments:

  1. nice,FIRAK ENGLISH AUR BACCHAN JI BHI TO ENGLISH KE HI THE, BADI KHUSHI HUYEE

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  2. वो बचपन के दिन भी क्या दिन थे,,,

    बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,


    RECENT POST : बेटियाँ,

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  3. संवेदनशील मन के लिए तो यादें ही सहारा हैं ..
    शुभकामनायें !

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  4. Kitna sab yaad kara gayin aap aaj sunday ke subah :)

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  5. मन बावरा पुरानी वीथियों में ही बसना चाहता है .......

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  6. रह गई हैं बस यादें = जाने कहाँ आ गए हम,कहाँ जायेंगे !!!

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  7. भावपूर्ण बढ़िया मनभावन रचना ...

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  8. अब बचपन भी बदल गया है ....ये सब बातें किस्से कहानी लगती हैं .... अच्छी प्रस्तुति

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  9. समय के अंतर को भावनाओं के आँचल में उतारा है ...
    बीते अतीत की यादें हर कदम पे याद आती हैं ... कहानियों की तरह बन के रह गई हैं वो बातें अब ...

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  10. वो कैरी का पना,वो पुदीने की चटनी

    वाह!मुहँ में पानी आ गया

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  11. जिन्‍दगी मौन हो कर ही रह गई है, ऐसे हालातों में।

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  12. आज के बच्‍चो को शायद ही पता हो चंगे अष्‍टे स्‍टापू...

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  13. यादें जब भी याद आती हैं ...सुहाने पल साथ लाती हैं !!!!
    शुभकामनायें!

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  14. EVOLUTION OF MAN अभी भी हो रहा है।

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. बहुत ही खूबसूरत कविता ...अहसास ही अहसास


    मैं अपने बचपन में और पीछे जाती हूँ


    वो खुली छत
    आसमां पर
    खिले हुए तारे
    कभी कोई ध्रुव तारे को देखा
    कभी सप्त ऋषि
    तारों को गिनना
    और बातों ही बातों में
    खरबूजे के सूखे बीजों को
    खाते हुए
    अपनी ही बातों में खो जाना
    ज़मीन पर पीछे बिछौने
    का तो बुरा हाल हो जाता था ...............(और भी बहुत कुछ.....फिर कभी :) )

    26 May 2013 08:47

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  17. बहुत उम्दा रचना, भिगो दिया बचपन के रस में आपने ...............हम सबको ****

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  18. यादों के मेले में उछलता कूदता बचपन

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  19. फेस्बूक पर संदेश द्वारा मिली R.D Saxena जी की यह टिप्पणी बहुत याद आता है न ! जो संवेदनशील रहे उन सभी को याद आता है ! जो सादगीपूर्ण आडम्बरहीन रहे , उन सभी को याद आता है ! लेकिन किया क्या जाए ? न तो वे दिन लौट कर आ सकते है न वो ज़माना ! अब हम सभी भौतिकवादी हो गए ! आर्थिक गणित में खो गए ! अंतहीन दौड़ में दौड़ पड़े ! अब भी बगीचा है लेकिन इस दौड़ में दौड़ते हुए हम बगीचे में नहीं सुस्ता सकते ! बस, हो सके तो नयी पीढी को उस दौर से चुराया स्नेह का थोड़ा सा अंश दे दो ! मिठास दे दो ! थोड़ा गाँव सा अहसास दे दो ! थोड़ी सी देशज गंध दे दो ! सवाल यह कि इनमे से कुछ देने के लिए हमारी झोली में कुछ बचा भी है ? या हमने ही उसे नष्ट कर दिया !!

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  20. केवल उन दिनों की यादें ही बाकी हैं...बचपन के दिन फिर याद दिला दिये...

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