Thursday 12 July 2012

ख़्यालों की दुनियाँ ...


दिन भर की भागा दौड़ी और किसी न किसी काम में उलझे रहने के कारण 
जब रात को थक कर जा लेटता है यह शरीर 
तब अक्सर वो मन के जागने का समय होता है 
उस वक्त जाने कैसे सारा दिन की थकान के बाद भी 
शरीर भले ही शिथिल सा निढाल हो जाये 
मगर मन, उसको तो जैसे उसी वक्त रात का आकाश मिलता है 
खुल कर ख़्यालों में उड़ने के लिए 
उनींदी सी आंखे जब अंधेरे कमरे में सफ़ेद छत को निहाराते हुए 
 सारे दिन का लेखा जोखा सोच रही होती है
तब बीच-बीच में उसी छत पर पड़ता बाहरी वाहनों का प्रकाश 
सहसा ऐसा महसूस होने लगता है 
जैसे सूने पड़े मरुस्थल से जीवन रूपी पौधे पर ऊर्जा के कुछ छींटे 
जो सूने जीवन के पौधे को थोड़ी ऊर्जा दे जाते है 
कि कहीं वो मर ही न जाये 
तब एक वक्त ऐसा भी आता है 
जब उस सोच का भार उठाती पलकें बंद होने को मजबूर हो जाती है
और तब जैसे अचानक वक्त एक बच्चे की तरह 
भागकर इस सुबह से रात तक के सफर की यह दौड़ जीत लेता है
और झट से सुबह हो जाती है  
जैसे न जाने कब से उसे बस इस ही एक पल का इंतज़ार हो 
कि कब यह पलकें बंद हो
और कब वो दौड़कर रोज़ की भांति यह रात से सुबह तक की होड़ जीत ले  
वास्तव में होता भी यही है, 
हर रोज़ घड़ी के अलार्म सी बजती घंटी
 जब सुबह-सवरे मुझे हड़बड़ाहट से जगाती है 
तब अक्सर मन में यह ख़्याल आता है
कि स्मृतियाँ रात भर नींद को धुनती रहती है 
और सुबह तक तैयार कर देती है नए सिरे से इंतज़ार की एक नयी रेशमी चादर 
शायद जीना इसी का नाम है ....  

13 comments:

  1. शायद नहीं .... यक़ीनन जीना इस ही का नाम है .... !!

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  2. खुल कर ख़्यालों में उड़ने के लिए
    उनींदी सी आंखे जब अंधेरे कमरे में सफ़ेद छत को निहाराते हुए
    सारे दिन का लेखा जोखा सोच रही होती है

    बहुत सुंदर मन के भावो की प्रस्तुति,,,,

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  3. सही कहा आपने ऐसा ही होता है
    बहुत सुन्दर रचना...

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  4. अच्छी कविता . खयालो की दुनिया में ही अब जिंदगी बसती है .

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  5. ख्यालों की दुनिया में ... जीना इसी का नाम है ...!

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  6. सुबह तक तैयार कर देती है नए सिरे से इंतज़ार की एक नयी रेशमी चादर
    शायद जीना इसी का नाम है ....

    अच्‍छी अभिव्‍यक्ति .. सही है !!

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  7. बिलकुल :) :)
    अच्छी कविता है पल्लवी जी :) :)

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  8. जीवन में आत्मचिंतन और आत्ममंथन को व्यक्त कराती सार्थक बाते कहती रचना .

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  9. Bahut achchhe aur sadhe shabdon me apne jivan ke uhapoh ko chitrit kiya hai...Pallavi ji achchhi rachna....
    Hemant

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  10. हर रोज़ घड़ी के अलार्म सी बजती घंटी
    जब सुबह-सवरे मुझे हड़बड़ाहट से जगाती है
    तब अक्सर मन में यह ख़्याल आता है
    कि स्मृतियाँ रात भर नींद को धुनती रहती है
    और सुबह तक तैयार कर देती है नए सिरे से इंतज़ार की एक नयी रेशमी चादर
    शायद जीना इसी का नाम है ....

    बहुत अच्छा आत्म अवलोकन किया है आपने.
    श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है

    'या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी'

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  11. कि स्मृतियाँ रात भर नींद को धुनती रहती है
    और सुबह तक तैयार कर देती है नए सिरे से इंतज़ार की एक नयी रेशमी चादर
    शायद जीना इसी का नाम है ....

    ....बिलकुल सच..जीना इसी को कहते हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  12. यही है ज़िंदगी ... बहुत भावपूर्ण, बधाई.

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