कब तक तुम अपनी चाहत का वास्ता दे-देकर
अपने प्यार का यह रंग चढ़ाते रहोगे मुझ पर...कब तक ?
आखिर क्यूँ, किस लिए दिखाते हो तुम मुझे अपने प्यार का यह रंग, यह हक
क्या सिर्फ इसलिए कि हमने प्यार किया है
क्या सिर्फ इसलिए हक की बात किया करते हो तुम हर रात
मगर सच तो यह है कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती.....
लेकिन बावजूद इसके शायद यह प्यार ही है,
कि तुम्हारी कही हर बात का कितना अक्षरसः पालन करती हूँ मैं
यह तो तुम्हें भी पता होगा, लेकिन अवहेलना ना कर पाना भी उस ही हक का परिणाम है
जिसके कारण जाने कैसे मेरी रूह तक, सागर किनारे पड़ी रेत की तरह
सब कुछ अपने अंतस में सोखती चली जाती है।
जाने क्यूँ लोग नारी जीवन की तुलना धरती से किया करते है
मैं तो इस जीवन की तुलना सागर से करना चाहूंगी
जो बिना कोई उफ़्फ़ तक किए सब कुछ अपने अंदर सोखता चला जाता है
न जाने कितनी जिन्दगानियाँ समा चुकी है अब तक इस सागर में
मगर सागर तब भी ऊपर से कितना शांत नज़र आता है...
जबकि उसके अंतस में न जाने कितनी अतृप्त आत्माओं की आवाज़ें शोर मचाती होंगी
तब भी ऐसी दिल चीर देने वाली आवाज़ों को अपने अंदर समेटे हुए भी
वह ऊपर से कितना शांत दिखाई देता है
और क्यूँ ना देखे जिसके पास खारे पानी की कमी नहीं
उसके आँसू या उसके संतापों की पराकाष्ठा भला किसी साधारण से इंसान को कैसे नज़र आयेगी...
देखना एक दिन उसी सागर की तरह मैं भी शांत नज़र आऊँगी
जिस दिन अति हो जाएगी उस सागर के धैर्य की
उस दिन तुम देखना, उस सागर के अंदर का कोलाहल एक ऐसा तूफान ले आयेगा
की सारी धरती जल मग्न हो जाएगी, उस दिन ही शायद प्रलय आयेगी
तब न यह धारती, धरती नहीं रहेगी, वह खुद सागर कह लाएगी.....
बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति है.
ReplyDeletenari ki tulna hoti rahegi..:)
ReplyDeletebehtareeen...
वाह सुन्दर विचार है।
ReplyDeleteसही मे नारी एक सागर है। अच्छी रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteMY RECENT POST...:चाय....
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर विचार ,,
MY RECENT POST...:चाय....
sundar racna ,behad bhavpoorn
ReplyDeleteBahut shandar abhivyakti...sagar ki hi tarah gambhirata liye huye...
ReplyDeleteHemant
नारी जीवन तेरी हाय यही कहानी....
ReplyDeleteआंचल में दूध और आंखों में पानी.....
नारी की मन:स्थिति का भावभरा चित्रण।
आखिर धैर्यता की भी एक सीमा होती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. मनोदशा और मनोभावों का चित्रण
bahut hi sunderta se naari jeevan ko darshya hai.........
ReplyDeleteजाने क्यूँ लोग नारी जीवन की तुलना धरती से किया करते है
ReplyDeleteमैं तो इस जीवन की तुलना सागर से करना चाहूंगी
जो बिना कोई उफ़्फ़ तक किए सब कुछ अपने अंदर सोखता चला जाता है ..
धरती भी तो यही करती है ... बिना सोचे सब कुछ धारण करती जाती है ...
गहरी प्रभावी रचना ...
औरत की तुलना ना सागर से और ना धरती से .... औरत सजीव है .... आत्मा है - दिल है - दिमाग है ... क्यों इस हद तक का इन्तजार करे कि उसे विध्वंसक गतिविधियां अपनानी पड़े .... !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteनारी मन सागर ही है........भीतर पैठोगे तो मोती पाओगे.....
अनु
देखना एक दिन उसी सागर की तरह मैं भी शांत नज़र आऊँगी
ReplyDeleteजिस दिन अति हो जाएगी उस सागर के धैर्य की
उस दिन तुम देखना, उस सागर के अंदर का कोलाहल एक ऐसा तूफान ले आयेगा
की सारी धरती जल मग्न हो जाएगी, उस दिन ही शायद प्रलय आयेगी
पल्लवी जी नारी के मन की पीड़ा और जज्बातों को बयान करती सुन्दर रचना ..धरती भी तो सब डांवा डोल कर देती है जब भार बढ़ता है उस के अन्दर भी खुलते हुए अंगारे हैं उबलने लगते हैं चाहे सागर हो या धरती कोई नारी की परीक्षा न ले की प्रलय आ जाए
भ्रमर ५
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