सागर किनारे एकांत में
अकेले बैठकर कभी सोचा है
मन रूपी समंदर के तट पर आती
हुई यादों की हर लहर
छूकर गुज़र जाती है
मन को,
जैसे साहिल को छूकर गुज़र जाती हैं लहरें
और लौटते हुए
दे जाती है, एक नम एहसास,
जिसकी नमी अंतस में उतर कर
न सिर्फ मन को, बल्कि आँखों
को भी कर जाती है गीला
फेर्क सिर्फ इतना होता है कि,
यादों की लहर का पानी
कभी पानी मीठा होता है, तो कभी खारा
दूर.... कहीं किसी सागर किनारे
उठती हुई ऊँची लहरों का पानी
जब हल्की बारिश सी बूंदों की तरह
भिगो जाता है तन
तब न सिर्फ तन, बल्कि मन भी
तृप्त हो जाता है,
जैसे प्यासे रगिस्तान को मिला हो पानी
जैसे वात्सल्य के लिए तरसते शिशु को मिली हो ममता
जैसे भक्त को मिले हो भगवान
जैसे दो प्यार करने वाले प्रीमियों को बरसों जुदाई के बाद मिला हो मिलन
इसे ज्यादा भी और कुछ हो सकती है क्या तृप्ति कि परिभाषा .......
सराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें
पहले आपके बारे में पढ़ा, फिर आपके अनुभव पढ़े .........
ReplyDeleteअच्छा लगा ...आपकी शब्दावली ही नहीं भावात्मक ताल भी पूरे सुर में है और तृप्ति की परिभाषा के लिए बधाई !
भावात्मक रचना
ReplyDeleteजैसे दो प्यार करने वाले प्रेमियों को बरसों जुदाई के बाद मिला हो मिलन
ReplyDeleteइसे ज्यादा भी और कुछ हो सकती है क्या तृप्ति कि परिभाषा .
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
कल 06/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर पल्लवी जी...
ReplyDeleteबधाई.
वाह-वाह क्या बात है , मुझे बेहद आनंदमय और रोचक लगी |
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeletebahut sundar man ki gaharayi se likhi pyarbhari rachana hai...
ReplyDeleteSend Order Cake Delivery Online in India
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