जीवन के इस मोड़ पर
आज भले ही तुम
मुझे ना पहचानो या
पहचान कर भी
अंजान बन जाओ
क्यूंकि शायद आज
इस बेरहम समाज के खोखले बंधनों
ने तुम्हें मजबूर कर दिया है
खुद से एक अजनबी की ज़िंदगी
जीने के लिए
जिसके चलते
तुम्हारे
जीवन में मेरा कोई अस्तित्व
ही नहीं बाकी रहा है अब,
इस बेरहम समाज के खोखले बंधनों
ने तुम्हें मजबूर कर दिया है
खुद से एक अजनबी की ज़िंदगी
जीने के लिए
जिसके चलते
तुम्हारे
जीवन में मेरा कोई अस्तित्व
ही नहीं बाकी रहा है अब,
तुमने भले ही,
मिटा दिया हो मेरे वजूद को
अपनी ज़िंदगी से
हमेशा के लिए
हमेशा के लिए
जैसे रेत पर लिखे नाम को
को समंदर की लहर मिटा जाती है
मगर मेरे मन रूपी समंदर में
तुम्हारे साथ
गुज़ारे हुए लम्हों की रूमानी लहरें
आज भी
उसी अंदाज़ में उठा करती है
जैसे मचल जाते हैं किनारे साहिलों को छूने के लिए
उसी अंदाज़ में उठा करती है
जैसे मचल जाते हैं किनारे साहिलों को छूने के लिए
और मैं उन लहरों में,
अपनी यादों की कश्ती लिए
बस डूबती
चली जाती हूँ। ....
आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट ' आरसी प्रसाद सिंह ' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteतुम्हारे साथ
ReplyDeleteगुज़ारे हुए लम्हों की रूमानी लहरें
आज भी
उसी अंदाज़ में उठा करती है
जैसे मचल जाते हैं किनारे साहिलों को छूने के लिए
और मैं उन लहरों में,
अपनी यादों की कश्ती लिए
बस डूबती
चली जाती हूँ। ....
वाह क्या बात है !
अभी तक तो आपके लेख पढ़ते थे और अब कविताएं भी गजब ढा रही हैं :)
बेहद खूबसूरत कविता।
सादर
कभी न खत्म होने वाला अहसास...
ReplyDeleteएक निवेदन
ReplyDeleteकृपया निम्नानुसार कमेंट बॉक्स मे से वर्ड वैरिफिकेशन को हटा लें।
इससे आपके पाठकों को कमेन्ट देते समय असुविधा नहीं होगी।
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http://www.youtube.com/watch?v=L0nCfXRY5dk
मन की भावनाओ को बहुत ही खूबसूरती से
ReplyDeleteपिरोया है शब्दों मे ..आभार
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ReplyDeleteकल 08/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
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ReplyDeleteयशवंत जी ममता जी,एवं अर्चना आप सभी का हार्दिक धन्यवाद... कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें...
ReplyDeleteकहा जाता है कि जो प्रेमभाव में डूबता है वही पाता है. आपके भीतर की कवियित्री का रूप समाने आया है. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteतुम्हारे साथ
ReplyDeleteगुज़ारे हुए लम्हों की रूमानी लहरें
आज भी
उसी अंदाज़ में उठा करती है
जैसे मचल जाते हैं किनारे साहिलों को छूने के लिए
और मैं उन लहरों में,
अपनी यादों की कश्ती लिए
बस डूबती
चली जाती हूँ। ....
bahut sundar
www.poeticprakash.com
तुम्हारे साथ
ReplyDeleteगुज़ारे हुए लम्हों की रूमानी लहरें
आज भी
उसी अंदाज़ में उठा करती है
वाह ...बहुत खूब ।
bahut sundar post.....
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