Saturday, 10 December 2011

अटूट विश्वास



प्यार में एक बार विश्वास 
क्या टूट जाये तो  
ज़िंदगी ही बेगानी,
 बेमानी सी नज़र आने लगती है,
मगर उस प्यार और विश्वास का 
क्या जिसके बारे 
में मैं जानता हूँ कि  
मैं भले ही उनके साथ 
विश्वासघाती क्यूँ न 
बन जाऊँ मगर वो मेरा 
 साथ निभाये गे खुदा की तरह
कहकर बेटा, यदि ज़िंदगी
के समंदर 
में कुछ उठती 
हुई तूफ़ानी लहरों को 
 पार करना है, तो थाम लो हाथ मेरा, 
और मैं बडा ही स्वार्थी बन कहता हूँ  
 हाथ आप मेरा नहीं,
 मैं आपका थामना चाहता हूँ ,
 क्यूँकि शायद मुझको खुद पर ही विश्वास नहीं,
 कब छोड़ दूँ मैं आपका साथ और हाथ,
 मगर आप पर है, 
मुझको सम्पूर्ण विश्वास,
 कि मैं भले ही छोड दूँ  
आपका हाथ,
 मगर आप कभी नहीं छोड़ोगे मेरा हाथ,
क्यूँकि आपका और मेरा रिश्ता,
 तो समंदर की लहरों और साहिल का सा है , 
जो कुछ भी नहीं 
ले जाती आपने साथ
बल्कि महफूज़ करके सभी 
को छोड़ जाती है,
 साहिल पर बिना किसी
  शर्त के यही तो रिश्ता है, न मेरा 
आपसे 
है न मम्मा है न पापा ....!!! 


13 comments:

  1. बहुत सच कहा है... बहुत ही भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

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  2. मर्मस्पर्शी रचना!!

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  3. Bahut prabhavshali rachna Pallavi ji..dil ko chhune vali...
    Poonam

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  4. साहिल पर बिना किसी
    शर्त के यही तो रिश्ता है, न मेरा
    आपसे
    है न मम्मा है न पापा ....!!!

    सच तो यही है कि माता-पिता का प्यार अटूट और शर्त रहित होता है।

    सादर

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  5. असली प्यार :)

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  6. पक्का विश्वास!!!

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  7. बिलकुल सच कहा आपने.....

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  8. अत्यंत भावपूर्ण.......

    बहुत अच्छा लिखा है आपने....


    मनोज

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  9. आप सभी पाठकों एवं मित्रों का हार्दिक धन्यवाद...कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें ....

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  10. V Nice बहुत अच्छा .

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  11. Bahut hi achchhi, bhavnatmak kavita aur bahut saral shabdon me....
    Hemant

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  12. mahendra singh parihar11 December 2011 at 09:32

    बहुत अच्छा लिखा है आपने

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  13. mahendra singh parihar11 December 2011 at 09:35

    छोटे छोटे से विषयों पर इतना गंभीर चिंतन मर्मस्पर्शी है |

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