प्यार में एक बार विश्वास
क्या टूट जाये तो
ज़िंदगी ही बेगानी,
बेमानी सी नज़र आने लगती है,
मगर उस प्यार और विश्वास का
क्या जिसके बारे
में मैं जानता हूँ कि
मैं भले ही उनके साथ
विश्वासघाती क्यूँ न
बन जाऊँ मगर वो मेरा
साथ निभाये गे खुदा की तरह
कहकर बेटा, यदि ज़िंदगी
के समंदर
में कुछ उठती
हुई तूफ़ानी लहरों को
पार करना है, तो थाम लो हाथ मेरा,
और मैं बडा ही स्वार्थी बन कहता हूँ
हाथ आप मेरा नहीं,
मैं आपका थामना चाहता हूँ ,
क्यूँकि शायद मुझको खुद पर ही विश्वास नहीं,
कब छोड़ दूँ मैं आपका साथ और हाथ,
मगर आप पर है,
मुझको सम्पूर्ण विश्वास,
कि मैं भले ही छोड दूँ
आपका हाथ,
मगर आप कभी नहीं छोड़ोगे मेरा हाथ,
क्यूँकि आपका और मेरा रिश्ता,
तो समंदर की लहरों और साहिल का सा है ,
जो कुछ भी नहीं
ले जाती आपने साथ
बल्कि महफूज़ करके सभी
को छोड़ जाती है,
साहिल पर बिना किसी
शर्त के यही तो रिश्ता है, न मेरा
आपसे
है न मम्मा है न पापा ....!!!
बहुत सच कहा है... बहुत ही भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना!!
ReplyDeleteBahut prabhavshali rachna Pallavi ji..dil ko chhune vali...
ReplyDeletePoonam
साहिल पर बिना किसी
ReplyDeleteशर्त के यही तो रिश्ता है, न मेरा
आपसे
है न मम्मा है न पापा ....!!!
सच तो यही है कि माता-पिता का प्यार अटूट और शर्त रहित होता है।
सादर
असली प्यार :)
ReplyDeleteपक्का विश्वास!!!
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने.....
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण.......
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने....
मनोज
आप सभी पाठकों एवं मित्रों का हार्दिक धन्यवाद...कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें ....
ReplyDeleteV Nice बहुत अच्छा .
ReplyDeleteBahut hi achchhi, bhavnatmak kavita aur bahut saral shabdon me....
ReplyDeleteHemant
बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteछोटे छोटे से विषयों पर इतना गंभीर चिंतन मर्मस्पर्शी है |
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