tag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post6015670134616817274..comments2024-03-17T00:44:08.471-07:00Comments on Pasand: उम्मीद...Pallavi saxenahttp://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-69622258822757613002012-06-22T07:49:47.910-07:002012-06-22T07:49:47.910-07:00मकान घर सा हो जाएगा
तभी तो वह मुकाम पायेगामकान घर सा हो जाएगा<br />तभी तो वह मुकाम पायेगाM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-80770393999481835862012-06-20T22:58:49.385-07:002012-06-20T22:58:49.385-07:00प्यार का पेंट पोत डालिए दीवारों पर...मकान खिल जाएग...प्यार का पेंट पोत डालिए दीवारों पर...मकान खिल जाएगा....घर हो जाएगा....<br />:-)<br /><br /><br />अनुANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-75981800669831030112012-06-20T11:05:09.495-07:002012-06-20T11:05:09.495-07:00पहला प्रेम ही स्थायी होता है। कोई समझे बैठा है,कोई...पहला प्रेम ही स्थायी होता है। कोई समझे बैठा है,कोई जाने कब समझेगा।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-15750679930082260982012-06-20T10:26:35.569-07:002012-06-20T10:26:35.569-07:00यह ख्वाब सा लगता है आज के भौतिक युग में कि मकान घर...यह ख्वाब सा लगता है आज के भौतिक युग में कि मकान घर सा हो जाए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-35388920380528606072012-06-20T01:59:23.020-07:002012-06-20T01:59:23.020-07:00उम्मीद पे दुनिया कायम रहती है ... वो मकां घर जरूर ...उम्मीद पे दुनिया कायम रहती है ... वो मकां घर जरूर बनेगा ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7811991376374843697.post-20919344979835657092012-06-20T01:28:07.008-07:002012-06-20T01:28:07.008-07:00बोझल कदमों से चलकर लौटकर चली आती हूँ मैं अपने घर,
...बोझल कदमों से चलकर लौटकर चली आती हूँ मैं अपने घर,<br />जो अभी घर बना नहीं, अभी तो बस मकान ही है<br />क्यूंकि घर शब्द में तो जैसे आत्मा बस्ती है <br />और मकान एक बेजान मृत शरीर सा सुनाई देता है <br />इसलिए शायद उसे भी मेरी तरह इंतज़ार है<br />नहीं नहीं उम्मीद <br />एक दिन मकान से घर बन जाने का .... <br /><br /><br /><br />बहुत सुन्दर भाव बसे हैं कविता में....<br /><br />बहुत अच्छी रचनाamrendra "amar"https://www.blogger.com/profile/00750610107988470826noreply@blogger.com